कश्मीर प्रशासन ने शिया समुदाय की मांगें मानीं, तीन दशकों बाद श्रीनगर में आज मुहर्रम जुलूस

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 27-07-2023
कश्मीर प्रशासन ने शिया समुदाय की मांगें मानीं, तीन दशकों बाद श्रीनगर में आज मुहर्रम जुलूस
कश्मीर प्रशासन ने शिया समुदाय की मांगें मानीं, तीन दशकों बाद श्रीनगर में आज मुहर्रम जुलूस

 

आवाज द वाॅयस /श्रीनगर

जम्मू-कश्मीर की एलजी सरकार ने आखिरकार शिया समुदाय की पुरानी मांग मान ली. इसने तीन दशकों बाद श्रीनगर में गुरु बाजार से डलगेट तक पारंपरिक मार्ग पर आठवीं मुहर्रम को जुलूस निकालने की शिया समुदाय को अनुमति दे दी. एक आधिकारिक बयान में यह जानकारी दी गई है. 

कश्मीर के संभागीय आयुक्त विजय कुमार बिधूड़ी ने कहा, शिया समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, प्रशासन ने गुरुवार जुलूस की अनुमति देने का फैसला किया है.उन्होंने कहा, मैं शिया भाइयों और कश्मीरी जनता को बधाई देता हूं जो अपने स्नेह के लिए जाने जाते है.
 
उन्होंने कहा कि यह वर्तमान शांतिपूर्ण माहौल में उनके योगदान के कारण है, जिसने प्रशासन के लिए यह ऐतिहासिक निर्णय लेना सुविधाजनक बना दिया है.
 
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प्रशासन को सभी समूहों के शिया मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों और गुरुबाजार की स्थानीय समिति के साथ कई दौर की बातचीत के बाद सभी हितधारकों से आश्‍वासन मिला है कि पवित्र धार्मिक आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित और संपन्न होगा.
 
प्रशासन ने कहा, सभी सुरक्षा व्यवस्थाएं की जाएंगी. आम जनता, विशेष रूप से शिया समुदाय के सदस्यों को सूचित किया जाता है कि किसी को भी गुरु बाजार से निकाले जाने वाले जुलूस को छोड़कर अन्‍य मार्ग पर व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से कोई जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
 
कहा गया है कि आदेशों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति से कानून के अनुसार बहुत सख्ती से निपटा जाएगा.गुरुवार को कार्य दिवस को ध्यान में रखते हुए और आम लोगों को परेशानी से बचाने के लिए जुलूस का समय सुबह होगा.
 
इस बारे में पूर्वी अफ्रीकी देश तंजानिया से शिया उलेमा ए हिद के उपाध्यक्ष मौलाना हसनअली राजाणी ने बताया कि सरकार से कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में 8वें मुहर्रम पर जुलूस निकालने की अनुमति देने को लेकर लंबे समय से बातचीत रही थी.
 
इसे 90 के दशक में आतंकवाद की शुरुआत के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया था. मौलाना हसनअली राजाणी ने कहा कि पहले कई अन्य राज्यों के उलेमा ने कश्मीर में जुलूस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
 
समाचार एजेंसी कश्मीर न्यूज ट्रस्ट ने बताया कि शिया नेताओं और संभागीय के बीच जब पहले दौर की बैठक हुई तो कश्मीर प्रशासन ने इसमें दिलचस्पी दिखाई थी. उसके बाद ही यह उम्मीद बंधी थी कि श्रीनगर जिला प्रशासन 8वीं मुहर्रम के जुलूस इजाजत दे सकता है.
 
संभागीय प्रशासन के कुछ अधिकारी शहीदगंज से डलगेट तक 8वीं मुहर्रम के पारंपरिक जुलूस की अनुमति देने के पक्ष में दिखे थे.बता दूं कि घाटी में आतंकवाद फैलने के बाद 1989 में तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने मुहर्रम की 8 वीं और 10 वीं तारीख को दो बड़े जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया था.
 
अब तक, कुछ शिया आबादी वाले इलाकों में केवल छोटे शोक जुलूस की ही अनुमति मिलती रही है. संपर्क करने पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस संबंध में निर्णय लेने का शिया समुदाय के साथ पहले दौर की बैठक में ही ले लिया गया था.
 
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इस बीच, श्रीनगर के मेयर जुनैद आजम मट्टू ने भी सरकार से मुहर्रम जुलूस को पारंपरिक मार्गों पर निकालने की अनुमति देने की अपील की थी. उनका कहा था कि हम जानते हैं कि स्थिति सामान्य है और जब स्थिति सामान्य होगी तो इस बार मातम मनाने वालों को जुलूस निकालने की इजाजत दी जाएगी.
 
मौलाना हसनअली राजाणी ने कहा कि धार्मिक जुलूस को धार्मिक बनाए रखें और इसे राजनीति का रंग देकर अराजकता फैलाने का प्रयास न करें. ऐसे प्रबंध मुसलमानों के सभी धार्मिक समारोह के लिए किए जाएं. 
 
मौलाना हसनअली राजाणी ने कहा कि सरकार को यह भी देखना चाहिए कि इतने बड़े धार्मिक समारोह में कुछ लोग भावुक हो जाते हैं.  जिसे सरकार को नजरअंदाज कर के अपनी उदारता दिखानी चाहिए ताकि कश्मीर में हालात अच्छे बने रहें.