पल्लब भट्टाचार्य
2014 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) नियुक्त होने के बाद से अजित डोभाल ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को पूरी तरह से नया रूप दिया है. उन्होंने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रति देश की प्रतिक्रिया को फिर से परिभाषित किया है. उनकी नेतृत्व क्षमता एक सख्त और निर्णायक सुरक्षा नीति के निर्माण में महत्वपूर्ण रही है, जिससे भारत की सीमा-पार खतरों के प्रति प्रतिक्रिया की शैली में मौलिक परिवर्तन आया है.
डोभाल के कार्यकाल से पहले, 2001 का संसद पर हमला, 2006 की मुंबई लोकल ट्रेन बमबारी और 2008 के मुंबई हमलों जैसे बड़े आतंकी हमलों के बाद भारत की प्रतिक्रिया मुख्यतः रक्षात्मक रही थी.
इन प्रतिक्रियाओं में कूटनीतिक दबाव और खुफिया जानकारी साझा करना शामिल था, लेकिन पाकिस्तान की संलिप्तता के स्पष्ट प्रमाण होने के बावजूद भारत ने सैन्य प्रतिकार से परहेज किया.
उदाहरण के लिए, 2008 के मुंबई हमलों के बाद भारत ने सैन्य कार्रवाई के बजाय पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की नीति अपनाई, जो ज्यादा प्रभावी सिद्ध नहीं हुई. पाकिस्तान की गुप्त एजेंसियों ने आतंकवाद को समर्थन देना जारी रखा, जिसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला.
पदभार संभालते ही डोभाल ने एक अधिक आक्रामक रणनीति — "आक्रामक रक्षा" (Offensive Defence) — को आगे बढ़ाया, जो पूर्व सक्रिय हमलों और उच्च जोखिम वाली खुफिया अभियानों पर आधारित है.
यह बदलाव 2016 में उरी हमले के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट हवाई हमले में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया. यह दोनों कार्रवाइयाँ भारत की पहले की संयम की नीति से एक निर्णायक विचलन थीं.
डोभाल की रणनीति का उद्देश्य आतंकवादी ढांचे की पूरी श्रृंखला को ध्वस्त करना है, जिसमें स्लीपर सेल, फंडिंग नेटवर्क और सीमा पार की लॉजिस्टिक सप्लाई शामिल हैं.
2025 का पहलगाम हमला, पुलवामा के बाद भारत में सबसे घातक आतंकी हमला, इस नीति की सबसे बड़ी परीक्षा बनकर सामने आया. पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और ISI की मिलीभगत से अंजाम दिए गए इस हमले में 26 नागरिकों की मृत्यु हुई, जिनमें कई पर्यटक शामिल थे.
इसके जवाब में डोभाल ने ऑपरेशन सिंदूर की योजना और क्रियान्वयन का नेतृत्व किया, जो पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित आतंकी शिविरों पर एक सटीक सैन्य अभियान था.
इस ऑपरेशन की विशेषता स्वदेशी रक्षा प्रणालियों का प्रयोग था, जैसे आकाश मिसाइल प्रणाली और ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, जो आत्मनिर्भर भारत पहल के अंतर्गत भारत की रक्षा तकनीक में बढ़ती आत्मनिर्भरता को दर्शाते हैं.
इसके साथ ही, रूस से आयातित S-400 त्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम, फ्रांसीसी कंपनी सफ्रान द्वारा विकसित हैमर स्मार्ट बम, और यूरोपीय कंसोर्टियम MBDA द्वारा बनाए गए SCALP मिसाइल (या स्टॉर्म शैडो) ने भी अभियान में सक्रिय भूमिका निभाई.
2016 और 2019 के पहले के सैन्य अभियानों से भारतीय सेना ने बहुमूल्य अनुभव प्राप्त किया, जिसके कारण पहलगाम हमले के महज़ दो सप्ताह के भीतर की गई भारत की प्रतिक्रिया इतनी सटीक और प्रभावशाली रही.
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के रक्षा क्षेत्र में MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) क्षेत्र की अहम भूमिका को भी उजागर किया. 12,000 से अधिक MSMEs भारत की रक्षा आपूर्ति श्रृंखला में योगदान दे रहे हैं, जो तेज प्रोटोटाइपिंग और लागत-प्रभावी निर्माण में दक्ष हैं. इससे भारत की विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हुई है और रणनीतिक स्वायत्तता बढ़ी है.
तकनीकी सफलता: आकाश और ब्रह्मोस जैसे स्वदेशी सिस्टम ने वास्तविक युद्ध परिस्थितियों में प्रभावी प्रदर्शन किया, जिससे इनके निर्यात की विश्वसनीयता बढ़ी.
आर्थिक लाभ: इन प्रणालियों में उपयोग होने वाले MSME उत्पादों की मांग बढ़ी, जिससे आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिला.
रणनीतिक प्रभाव: इस ऑपरेशन ने भारत की एक भरोसेमंद रक्षा साझेदार के रूप में छवि को मजबूत किया. आर्मेनिया और फिलीपींस जैसे देशों ने भी इन प्रणालियों में रुचि दिखाई.
प्रधानमंत्री द्वारा दी गई पूर्ण स्वतंत्रता (Carte Blanche) के बाद अजित डोभाल के निर्देशन में सेना, नौसेना और वायुसेना का समन्वित अभियान भारत की सैन्य क्षमता का स्पष्ट प्रमाण था।
अजित डोभाल के नेतृत्व ने भारत की सुरक्षा रणनीति को मूल रूप से नया आकार दिया है, जिसमें सैन्य शक्ति को रणनीतिक उद्देश्य से जोड़ा गया है. उनकी नीति ने आतंकवाद के खिलाफ तेज और निर्णायक कार्रवाई की एक नई मिसाल पेश की है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि भारत की प्रतिक्रियाएँ संतुलित और प्रभावशाली दोनों हों.
जैसे-जैसे भारत आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत अपनी रक्षा निर्माण क्षमता को मजबूत कर रहा है, डोभाल की विरासत को एक ऐसी नीति के रूप में याद किया जाएगा जिसने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण को फिर से परिभाषित किया.
डोभाल के कार्यकाल का स्पष्ट संदेश रहा है: भारत अब किसी भी आतंकी कार्रवाई को बिना सशक्त जवाब के नहीं छोड़ेगा. उनकी नीति ने न केवल भारत की सुरक्षा को मजबूत किया है, बल्कि एक आत्मनिर्भर रक्षा क्षेत्र का मार्ग भी प्रशस्त किया है — जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बनेगा.
जैसा कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट ने कहा था, "धीरे बोलो और एक बड़ी लाठी रखो; तुम बहुत आगे जाओगे." यह विचारधारा डोभाल की रणनीति में स्पष्ट रूप से झलकती है और भारत को वैश्विक भू-राजनीति में एक सशक्त शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है.