मलिक असगर हाशमी/नई दिल्ली/सीवान
चुनाव के मैदान में जीत का दावा करना और जीत कर दिखाना, दोनों में ज़मीन-आसमान का अंतर होता है। यह अंतर तब और गहरा जाता है जब दावेदार खुद मैदान में उतरकर, अपने प्रतिद्वंद्वी के ख़िलाफ़ ताल ठोंक रहा हो। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव की सबसे चर्चित सीटों में से एक, सीवान की रघुनाथपुर सीट पर भी यही हो रहा है। कभी बाहुबली और 'माफिया डॉन' कहे जाने वाले पूर्व सांसद सैयद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब इस बार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के टिकट पर अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं। ओसामा के मैदान में उतरने से यह सीट सिर्फ़ एक चुनावी जंग नहीं, बल्कि एक विचारधारा की लड़ाई बन गई है।
पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में, जब जेडीयू के विकास कुमार सिंह ने जीत हासिल की थी, तब ओसामा शहाब और उनके समर्थकों ने दबी ज़ुबान में दावा किया था कि उन्हें टिकट नहीं मिलने के कारण ही उनके समर्थकों ने आरजेडी को धूल चटाने में भूमिका निभाई थी। अब, जब खुद ओसामा मैदान में हैं, तो सबकी नज़र इस बात पर है कि क्या वह अपने पिता की राजनीतिक विरासत को मज़बूत कर पाएंगे या फिर विपक्ष के 'माफिया' टैग के बोझ तले दब जाएंगे।
ओसामा शहाब के मैदान में उतरने से उनके विपक्षी उनपर सीधा हमला बोल रहे हैं। सबसे मुखर रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जिन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ओसामा पर सीधा वार किया था।
आरोप साफ़ है: अगर ओसामा जीत गए तो वह शहाबुद्दीन की माफिया विरासत को बिहार में बढ़ाएंगे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी सीवान की जनसभा में सीधे ओसामा को निशाना बनाते हुए कहा, "सौ शहाबुद्दीन भी अब बाल बांका नहीं कर सकते।" उन्होंने लालू-राबड़ी को जवाब देने के लिए सीवान वालों से ओसामा और शहाबुद्दीन की विचारधारा को नहीं जीतने देने की अपील की।
यह सब ऐसे समय हो रहा है जब ओसामा को न केवल जेडीयू के दिग्गज विकास कुमार सिंह उर्फ जीशु सिंह से सीट छीनने के लिए ज़मीन पर संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि विपक्षी दलों के 'माफिया डॉन' वाले आरोपों की सफ़ाई देते-देते उनकी हालत पतली हो रही है। हालांकि, ओसामा मीडिया से बात करने से परहेज़ करते हैं। उजीरादेई के शिवशंकर प्रसाद आवाज द वाॅयस से बातचीत में कहते हैं, "वो मीडिया से बात नहीं करते। आप लोगों से बात करेंगे और उनके मुंह से कुछ उल्टा-सीधा निकल गया तो मामला गड़बड़ा जाएगा।"
दिलचस्प है कि 31 वर्षीय ओसामा ने अपने हलफ़नामे (एफ़िडेविट) में खुद को दसवीं पास और समाजसेवी बताया है, जबकि उनकी पत्नी एमबीबीएस डॉक्टर और गृहणी हैं। हलफ़नामे के अनुसार, ओसामा पर दो आपराधिक मामले लंबित हैं।

चुनाव प्रचार की एक झलक रघुनाथपुर के पंजवार गाँव के रविदास जाति के एक टोले में देखने को मिली। 24 अक्तूबर का दिन था और शाम ढल रही थी। दोपहर तीन बजे से ओसामा के इंतज़ार में बैठे लोग उकता गए थे। रविदास जाति की महिलाएँ, जिन्हें शाम का चूल्हा जलाना था और जानवरों को चारा डालना था, इस उम्मीद में बैठी थीं कि उनके टोले में कुछ 'होने' वाला है।
समूह में बैठी मीना देवी कहती हैं, "जब आएगा तो मालूम चलेगा कि कौन आ रहा है? अभी तक तो मालूम नहीं कौन आ रहा है। बस चावल मिलता है। गरीब आदमी को कुछ नहीं मिलता।"
शाम साढ़े पाँच बजे के आसपास, गुलाबी कुर्ते में ओसामा अपनी महँगी गाड़ियों के क़ाफ़िले के साथ यहाँ पहुँचते हैं। उनके साथ निवर्तमान विधायक हरिशंकर यादव भी थे, जिन्होंने शहाबुद्दीन की सिफ़ारिश पर मिली अपनी सीट ओसामा को लड़ने के लिए बेहिचक दे दी है।
रघुनाथपुर सीट पर 6 नवंबर को पहले चरण में वोटिंग होनी है। यह सीवान जिले की एक ऐसी सीट है, जिस पर आरजेडी का परंपरागत वर्चस्व रहा है। 2020 और 2015 के पिछले दो विधानसभा चुनावों में आरजेडी के उम्मीदवार हरि शंकर यादव ने ही जीत दर्ज की थी।
यह सीट सीवान लोकसभा के अंदर आठ विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। 2024 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू की विजयलक्ष्मी देवी ने शहाबुद्दीन की पत्नी और निर्दलीय उम्मीदवार हेना शहाब को 92,857 वोटों से हराया था, लेकिन उस चुनाव में रघुनाथपुर विधानसभा ही एकमात्र क्षेत्र था जहाँ आरजेडी (जिसके टिकट पर तब हेना नहीं लड़ रही थीं) को जेडीयू पर बढ़त मिली थी। रघुनाथपुर में शहाबुद्दीन परिवार का पैतृक गाँव, हुसैनगंज का प्रतापपुर भी शामिल है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यादव, राजपूत और मुस्लिम बहुल इस सीट को ओसामा का राजनीतिक करियर शुरू करने के लिए चुना गया है। जनसांख्यिकी (2020 के अनुसार): कुल पंजीकृत मतदाता लगभग 2,96,780 थे। मुस्लिम मतदाता करीब 23.2%, अनुसूचित जातियाँ 11.49% और यादव मतदाता अनुमानतः 9.6% थे।
ओसामा का सीधा मुक़ाबला जेडीयू के विकास कुमार सिंह उर्फ जीशु सिंह से है, जो नीतीश कुमार के साथ समता पार्टी के समय से जुड़े हुए हैं। पेशे से व्यवसायी जीशु सिंह अपनी सभाओं में लोगों को 'शहाबुद्दीन की समानांतर सरकार' के दिनों की बार-बार याद दिला रहे हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक,जीशु सिंह ने कहा, "ओसामा विरासत की बदौलत आतंक की राजनीति करते हैं। वो एके 47 के साथ पैदा हुए हैं. पहले सीवान में फ़ैशन था कि लोग बंदूक की नली गाड़ी से निकालकर चला करते थे, लेकिन नीतीश सरकार ने इस आतंकराज से सिवान को मुक्त कराया।" उन्होंने दावा किया कि लोग दोबारा वैसा ख़ौफ़ नहीं चाहते और उनके पक्ष में वोट करेंगे, क्योंकि "विकास की राजनीति आतंक पर भारी पड़ेगी।"
शहाबुद्दीन के समर्थक आज भी उनसे भावनात्मक लगाव रखते हैं और उन्हें 'एमपी साहब' के तौर पर याद करते हैं, भले ही 2021 में कोविड महामारी के दौरान उनकी मौत हो गई हो। अख़्तर साई जैसे समर्थक कहते हैं कि "एमपी साहब का बेटा ही अच्छा होगा।
एमपी साहब ने ही हम लोगों की देखभाल की। आजकल तो नेता जीत जाते हैं तो लौटकर वापस भी नहीं आते।" निवर्तमान विधायक हरिशंकर यादव से स्थानीय नाराज़गी के बावजूद, यह एंटी इनकम्बेंसी ओसामा के ख़िलाफ़ जाती नहीं दिखती, क्योंकि समर्थक नन्हे हुसैन कहते हैं, "एमपी साहब के बेटे को ही इस बार लाएँगे। पूरे बिहार में बदलाव लाना है।"
हुसैनगंज बाज़ार की बेहद संकरी और ख़स्ताहाल सड़कें, धूल भरा आसमान और दमघोंटू जाम यहाँ के रोज़ाना के मुद्दे हैं। युवक ज़फर अली कहते हैं, "रोड की क्वालिटी यहाँ देख लीजिए। एयर क्वालिटी देख लीजिए। यही यहाँ का मुद्दा है। हम तो जब से पैदा हुए तब से ऐसी ही रोड देखी।"
भोजपुरी भाषी बेल्ट के नौजवान फ़िल्म तकनीक का विकास भी चाहते हैं, ताकि उन्हें रोज़गार के लिए दिल्ली, मुंबई या गोरखपुर न जाना पड़े। वहीं, रघुनाथपुर के मतदाता मोहन राम नीलगाय से फ़सलों को हो रहे नुक़सान से मुक्ति चाहते हैं।
रघुनाथपुर विधानसभा, जो कि घाघरा नदी की समृद्ध जलोढ़ समभूमि में स्थित एक कृषि प्रधान क्षेत्र है, में इस बार का चुनाव आरजेडी और एनडीए के बीच एक कड़े संघर्ष की ओर संकेत करता है, जहाँ गठबंधन की रणनीति और मतदाता लामबंदी निर्णायक भूमिका निभाएगी। बीते लोकसभा चुनाव से आरजेडी से दूर हुआ शहाबुद्दीन परिवार फिर से आरजेडी के क़रीब आया है।
अब 6 नवंबर को होने वाले मतदान के बाद ही पता चलेगा कि क्या आरजेडी का साथ ओसामा शहाब को जीत दिला पाएगा और सीवान में शहाबुद्दीन परिवार की राजनीतिक विरासत का नया अध्याय शुरू होगा, या फिर विकास की राजनीति आतंक पर भारी पड़ेगी।