दोस्ती से शिक्षा तक: तनवीर अहमद की टीम ने 6000 बच्चों का भविष्य संवारा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 03-11-2025
From dropout to doctor and engineer: The story of Tanveer Ahmed and his friends who lit the flame of education in slum areas.
From dropout to doctor and engineer: The story of Tanveer Ahmed and his friends who lit the flame of education in slum areas.

 

झारखंडकी राजधानी रांची का नाम सुनते ही मन में हरीयाली,पहाड़ और तेजी से बदलता शहर आता है आवाज द वॉयस की खास प्रस्तुति द चेंज मेकर्स सीरीज झारखंड की राजधानी रांची से हमारे सहयोगी जेब अख्तर ने तनवीर अहमद पर यह विस्तृत न्यूज़ रिपोर्ट की है.

लेकिन इसी शहर का एक सच यह भी है कि यहां बड़ी आबादी झुग्गी-झोपड़ियों और स्लम बस्तियों में रहती है. इन बस्तियों का जीवन कभी भी एक नोटिस या प्रशासनिक फैसले से हिल सकता है. 
 
साल 2010 के आसपास जब इस्लाम नगर और बाबा खटाल जैसे इलाकों को अतिक्रमण के नाम पर उजाड़ा गया, तब सैकड़ों परिवार अचानक बेघर हो गए. इसका सबसे बड़ा असर बच्चों पर पड़ा. जिन बच्चों के हाथ में किताबें होनी चाहिए थीं, वे सिर पर छत ढूंढने की जद्दोजहद में भटकने लगे. कई बच्चों की परीक्षा छूट गई, कई का स्कूल- कॉलेज हमेशा के लिए छूट गया.
 
लेकिन इस अंधेरे में एक चिराग जला. रांची के तनवीर अहमद ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर इन बच्चों का हाथ थामा. उन्होंने सोचा कि जब हालात ने बच्चों की ज़िंदगी से स्कूल छीन लिया है तो क्यों न दोस्त बनकर उनकी पढ़ाई वापस लौटाई जाए. इसी सोच से शुरू हुआ सफर — दोस्ती से शिक्षा तक.
 
घर-घर जाकर दोस्ती का पैग़ाम
 
तनवीर अकेले नहीं थे. उनके साथ मो. खलील, कमर सिद्दीकी, शमीम अख्तर, मो. जावेद और मजहर हुसैन जैसे साथी खड़े हुए. यह टोली बस्ती के हर घर में गई. उन्होंने बच्चों और परिवारों से दोस्ती की. बच्चों को समझाया कि स्कूल लौटना ज़रूरी है और परिवारों को भरोसा दिलाया कि वे उनके साथ हैं. लेकिन सिर्फ़ समझाना काफी नहीं था. सबसे बड़ी बाधा पैसों की थी.
 
फीस भरने, किताबें खरीदने, यूनिफ़ॉर्म सिलवाने — हर मोर्चे पर पैसों की कमी थी. ऐसे में तनवीर और उनके दोस्तों ने एक नया रास्ता निकाला. रमज़ान में दी जाने वाली ज़कात का 10 से 20 प्रतिशत हिस्सा उन्होंने गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए जुटाना शुरू किया.
 
इससे शुरुआत में ही 85 बच्चों को गोद लिया गया. उनकी फीस, कॉपी-किताब और ज़रूरी खर्चे पूरे किए गए. लेकिन मुश्किलें इतनी आसानी से कहां खत्म होती हैं. बहुत से बच्चे पढ़ाई में पिछड़ने लगे, फेल होने लगे और फिर से ड्रॉप आउट का खतरा मंडराने लगा.
 
होमवर्क गाइडेंस सेंटर और मुफ़्त ट्यूशन
 
तब तनवीर अहमद और उनकी टोली ने नया रास्ता निकाला — होम कोचिंग ट्यूशन. यानी जहां बच्चे रहते हैं, वहीं उनके लिए मुफ़्त कोचिंग का इंतज़ाम. ताकि वे स्कूल की पढ़ाई में पिछड़ें नहीं. क्लास 9वीं से 12वीं तक के छात्रों के लिए अलग बैच बने. स्लम एरिया में होमवर्क गाइडेंस सेंटर खोले गए. इस पहल से बच्चों का आत्मविश्वास लौटा और स्कूल जाने की लय भी.
 
इसी बीच, ज़रूरतमंद बच्चों के लिए स्कॉलरशिप की शुरुआत की गई. जो बच्चे पढ़ाई में बेहतर कर रहे थे, उन्हें सम्मानित किया गया. यह बच्चों के लिए सिर्फ आर्थिक मदद नहीं बल्कि पढ़ाई के लिए प्रेरणा भी बन गई.
6000 से ज़्यादा बच्चों का सहारा आज यह कारवां फ्रेंड्स ऑफ वीकर सोसाइटी (FWS) के नाम से जाना जाता है.
 
बीते 12-13 सालों में तनवीर अहमद और उनके साथियों ने 6000 से अधिक बच्चों की पढ़ाई का बोझ हल्का किया है. फीस, किताब, यूनिफ़ॉर्म से लेकर प्रोफेशनल कोर्स तक — हर स्तर पर मदद पहुंचाई है.
सोसाइटी का काम सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है. हर साल सर्दियों में बच्चों को गरम कपड़े और स्वेटर बांटे जाते हैं.
 
रमज़ान और दूसरी आपात स्थितियों में ज़रूरतमंदों तक राशन और खाने-पीने की सामग्री पहुंचाई जाती है. साथ ही, समय-समय पर मुफ़्त मेडिकल कैंप भी लगाए जाते हैं. गरीब बच्चों का स्कूल में दाखिला छूट न जाए, इसके लिए डोर-टू-डोर ऑन-स्पॉट एडमिशन प्रोग्राम भी चलाया जाता है. वहीं अल्पसंख्यक छात्रों के लिए सरकारी स्कॉलरशिप योजनाओं की जानकारी देने के लिए कैंप आयोजित किए जाते हैं.
 
सपनों को मिले नये पंख
 
फ्रेंड्स ऑफ वीकर सोसाइटी की असली ताक़त उन कहानियों में है, जो कभी अधूरी रह जातीं अगर यह मदद न मिलती. हिंदपीढ़ी (रांची) के मुजाहिद का सपना था इंजीनियर बनने का. कड़ी मेहनत से उन्होंने 2013 में आईआईटी की परीक्षा पास कर ली. लेकिन घर की आर्थिक हालत इतनी कमज़ोर थी कि दाखिला नहीं हो सका. वे टूटे नहीं और अगले साल फिर से परीक्षा पास की. तब तनवीर और उनकी टीम आगे आई और उनका एडमिशन कराया. आज मुजाहिद एक इंजीनियर हैं.
 
इसी तरह रामगढ़ के मो. आरिफ और लातेहार के नफीस अख्तर का डॉक्टर बनने का सपना पूरा हुआ. आज दोनों टाटा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस कर रहे हैं। इनके दाखिले से लेकर हर साल की फीस तक, सोसाइटी ने संभाला.
 
जमशेदपुर के अल-कबीर इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहे जावेद अंसारी की पढ़ाई भी तभी जारी रह सकी जब वीकर सोसाइटी ने उनकी फीस अदा की और उनका नामांकन कटने से बचा.
 
तनवीर अहमद कहते हैं, "हमारा मिशन है रांची और झारखंड के उन वंचित मुस्लिम बच्चों तक उम्मीद पहुंचाना, जो मुख्यधारा से दूर होते जा रहे हैं. हम मानते हैं कि शिक्षा ही वह चाबी है, जिससे उनका भविष्य संवर सकता है." सोसाइटी के प्रयास से ड्रॉप आउट की संख्या लगातार कम हुई है. बहुत से बच्चे, जो गरीबी की वजह से पढ़ाई छोड़ने वाले थे, आज इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में दाखिल हैं.
 
बिना सरकारी मदद, सिर्फ दोस्ती और भरोसा
 
सबसे बड़ी बात यह है कि यह पूरा काम बिना किसी सरकारी मदद के हो रहा है. तनवीर अहमद और उनके साथी पिछले 12-13 साल से लगातार जुटे हुए हैं. उन्होंने शिक्षा को सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे दोस्ती और भरोसे के रिश्ते से जोड़ा.
 
आज रांची और उसके आसपास के इलाकों के लगभग दो हजार बच्चों का भविष्य सीधे तौर पर इस टोली की मेहनत और लगन से चमक रहा है.
 
यह कहानी बताती है कि जब दोस्ती, ईमानदारी और सामूहिक कोशिशें मिलती हैं, तो न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई बचाई जा सकती है, बल्कि उनके सपनों को भी पंख दिए जा सकते हैं. तनवीर अहमद और उनकी टीम ने यही साबित कर दिखाया है — कि शिक्षा सचमुच उम्मीद की सबसे बड़ी रोशनी है.