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कभी अपराध के लिए बदनाम जमशेदपुर की आज़ाद बस्ती आज उम्मीद की पहचान बन चुकी है, और इसके पीछे हैं मुख्तार आलम खान व उनके साथियों की मेहनत. कोरोना काल में शुरू हुआ उनका “ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट” आज जरूरतमंदों के लिए भोजन, ब्लड डोनेशन, दवाइयों, शिक्षा और मदद का केंद्र बन गया है, जिसने इस बस्ती की छवि को इंसानियत और सेवा का प्रतीक बना दिया है. आवाज द वाॅयस की खास प्रस्तुति द चेंज मेकर्स सीरिज के लिए झारखंड की राजधानी रांची से हमारे सहयोगी जेब अख्तर ने मुख्तार आलम पर यह विस्तृत न्यूज स्टोरी की है.
एक समय था जब झारखंड के जमशेदपुर में आज़ाद बस्ती का नाम सम्मान के साथ नहीं लिया जाता था. लोग इसे वैसा ही इलाका समझते थे, जैसा धनबाद का वासेपुर- अपराध, डर और नकारात्मक छवि से भरा हुआ. लेकिन वक्त बदला. आज उसी आज़ाद बस्ती का नाम लोग गर्व से लेते हैं. और इस बदलाव की वजह हैं; मुख्तार आलम खान और उनके साथी सैयद मतीनुल हक अंसारी, मोहम्मद मोइनुद्दीन अंसारी, सैय्यद आसिफ अख्तर वैगरह की कोशिशें.
मुख्तार आलम और उनके ये साथी आज हर उस जगह दिखते हैं, जहां गरीब, कमजोर और जरूरतमंद लोग मदद के लिए पुकारते हैं. चाहे मरीजों को ब्लड और दवाइयों की ज़रूरत हो, भूखे को भोजन कराना हो, या फिर पढ़ाई-लिखाई और प्रतियोगी परीक्षाओं में बच्चों को आगे बढ़ाना हो; मुख्तार आलम का काम अब उम्मीद की पहचान बन चुका है.
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कोरोना से शुरू हुआ सफर
साल 2019-20 में जब कोरोना लॉकडाउन ने सबकी जिंदगी रोक दी, तब मुख्तार आलम ने अपने मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ मिलकर ठाना, “अब सिर्फ तमाशबीन नहीं बने रहना, मदद करनी है.” उन्होंने आज़ाद बस्ती और आसपास के इलाकों में अनाज, कपड़े और दवाइयां बांटनी शुरू कीं. जो लोग गंभीर हालत में थे, उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. कभी ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतज़ाम करना पड़ा, तो कभी ब्लड डोनर जुटाना पड़ा. उस दौर में जब ज्यादातर लोग घरों में कैद थे, मुख्तार और उनकी टीम जरूरतमंदों के लिए सबसे आगे खड़े थे. लॉकडाउन खत्म हुआ, लोग सामान्य जिंदगी की ओर लौटे. लेकिन मुख्तार आलम ने ठान लिया, “यह काम रुकेगा नहीं.”
भूख से लड़ाई- MGM अस्पताल में भोजन सेवा
लॉकडाउन के बाद उन्होंने फैसला किया कि जरूरतमंद मरीजों और उनके परिजनों के लिए भोजन सेवा शुरू की जाए. मुख्तार आलम और उनके साथियों ने इसके लिए बकायदा एक ट्रस्ट बनाया, जिसका नाम रखा गया- ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट, जमशेदपुर. काम करने के लिए ट्रस्ट की ओर से सबसे पहले जमशेदपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल MGMको चुना गया. मुख्तार इसकी वजह बताते हैं, “यहां ज्यादातर मरीज दूर-दराज़ गांवों से आते हैं. इलाज तो हो जाता है, लेकिन रहने-खाने में दिक्कत होती है. कम से कम सप्ताह में दो दिन उन्हें मुफ्त भोजन मिले, यही सोचकर शुरुआत की. हर हफ्ते दो दिन, 500 से ज्यादा मरीज और उनके परिजन तृप्त होकर खाना खाते हैं.“ यह सिलसिला आज तक जारी है और मुख्तार की पहचान बन चुका है.
खून और दवाइयां, जिंदगी बचाने का संकल्प
भोजन के बाद अगला कदम था- मुफ्त दवाई और ब्लड डोनेशन. जरूरतमंद मरीजों के लिए दवा का इंतज़ाम शुरू किया गया. फिर रक्तदान शिविर आयोजित कर मरीजों की जिंदगी बचाने की मुहिम चलाई गई. आज तक हज़ारों यूनिट ब्लड मुख्तार आलम और उनकी टीम ने उपलब्ध कराया है. और खास बात यह कि ये सब काम बिना किसी शुल्क, बिना किसी भेदभाव के होते हैं. आर्थिक मदद कहां से आती हैं? इस सवाल पर मुख्तार आलम खुलकर बताते हैं, कुछ खर्च हम अपनी जेब से करते हैं, कुछ समाज के लोग मदद करते हैं. रमज़ान के महीने में मुस्लिम समाज से मिलने वाली ज़कात की रकम भी गरीबों की सेवा में लगाई जाती है.
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अनुसूचित आदिवासी जनजाति सबर के बीच काम
इसके साथ ही मुख्तार आलम और उनके साथी सूबे की अनुसूचित आदिवासी जनजाति सबर के सहयोग के लिए भी सक्रिय हैं. महीने में एक बार सबर जनजाति के बच्चों को आसपास के गांव से शहर लाकर घुमाया जाता है और उनके बीच उपहार बांटे जाते हैं. कुछ ही महीनों पहले सदर अस्पताल में इलाजरत टुना सबर और उसकी पत्नी सुमी सबर की मदद के लिए ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट ने पहल की. टीम ने अस्पताल पहुंचकर दंपती से मुलाकात की और उन्हें हेल्थ सप्लीमेंट पाउडर, दवाइयां और फल प्रदान किए. इलाज में हर संभव सहयोग देने का भरोसा भी जताया गया. इतना ही नहीं, हर साल क्रिसमस के मौके पर मुख्तार आलम साथियों के साथ सबर परिवारों के बीच पहुंचते हैं. बच्चों को गर्म कपड़े, टोपी, कॉपी, पेंसिल, जूते-मोजे और खाने-पीने की चीजें उपहार में दी जाती हैं. यह कोशिश बताती है कि ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट की सेवाएं केवल शहर तक ही सीमित नहीं, बल्कि दूर-दराज़ की बस्तियों और आदिवासी इलाकों तक भी फैली हुई हैं.
बहरहाल, सिर्फ मदद ही नहीं, मुख्तार और उनके साथियों ने सोचा कि आज़ाद बस्ती की नकारात्मक छवि को कैसे मिटाई जाये. इसके लिए उन्होंने NEET, Civil Services, CA और Judiciary जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल टैलेंटेड युवाओं को आजाद बस्ती में बुलाकर बच्चों को प्रेरित करना शुरू किया. इसका असर दिखा. अब उसी बस्ती से बच्चे बड़े सपने देखने लगे और उन्हें पूरा भी करने लगे.
सबसे बड़ा चमत्कार 2024 में हुआ, जब आज़ाद बस्ती के फल बेचने वाले मोहम्मद अब्बास की बेटी कहकशां परवीन ने NEET UG में 720/720 अंक हासिल कर देशभर में टॉप स्कोरर बनकर सबको हैरान कर दिया. यह सिर्फ उसके परिवार ही नहीं, बल्कि पूरे जमशेदपुर और खासकर आज़ाद बस्ती के लिए इंस्पिरेशन बन गया.

ब्लड डोनेशन का कीर्तिमान
साल 2025 में ईद मिलाद-उल-नबी के मौके पर आज़ाद मैरिज हॉल में आयोजित मेगा ब्लड डोनेशन कैंप में 303 यूनिट ब्लड इकट्ठा किया गया. इस मौके पर झारखंड सरकार के अतिरिक्त सचिव मुख्य अतिथि थे. उन्होंने कहा, “ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट ने हमेशा बिना भेदभाव के समाज की सेवा की है. किसी को जरूरत पड़ने पर सबसे पहले यही संगठन ब्लड सप्लाई करता है.“
मुख्तार आलम और उनकी टीम आज इंसानियत की मिसाल पेश करते हुए हर मोर्चे पर काम कर रही है. उन्होंने अलग-अलग जगह पीने के ठंडे पानी की व्यवस्था की, सर्दियों में गरीबों के बीच कंबल बांटे और अलाव की व्यवस्था की. प्राकृतिक आपदाओं के समय तुरंत मदद पहुंचाई और मेधावी बच्चों को पढ़ाई के लिए वित्तीय सहयोग दिया. बच्चों को खेलकूद की सामग्री उपलब्ध कराई और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल युवाओं को सम्मानित किया. इतना ही नहीं, रिक्शा चालकों को खुद का रिक्शा दिलाकर आत्मनिर्भर बनाया और छोटे व्यापारियों को सहयोग देकर उनका व्यवसाय खड़ा किया. जरूरतमंदों के लिए हेल्प डेस्क भी तैयार किया गया. इन तमाम सामाजिक कार्यों के बीच सबसे बड़ा गौरव का क्षण वह था जब 2023 में गणतंत्र दिवस पर उनके संगठन ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट को जिला प्रशासन की ओर से समाज सेवा के लिए सम्मानित किया गया.
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ट्रस्ट बना उम्मीद का केंद्र
बहरहाल, ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट के अध्यक्ष मतीनुल अंसारी हैं और सचिव खुद मुख्तार आलम हैं. जबकि सय्यद आसिफ अख्तर ट्रस्टी हैं. आज जितने भी काम होते हैं, सब इसी बैनर से किए जाते हैं. जमशेदपुर की आज़ाद बस्ती को लोग अब “नेगेटिव जगह” नहीं बल्कि “उम्मीद की जगह” मानते हैं. यह बदलाव आसान नहीं था, लेकिन मुख्तार आलम खान और उनके साथियों ने साबित कर दिया कि अगर नीयत साफ हो और जज़्बा सच्चा, तो कोई मोहल्ला, कोई इलाका, कोई इंसान पिछड़ा नहीं रह सकता. मुख्तार आलम की कहानी सिर्फ जमशेदपुर की नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक सबक है, कि खुद को बदलो, समाज भी बदल जाएगा.
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