वी.पी. मेनन: सरदार पटेल के मूक शिल्पकार और आधुनिक भारत के अनसंग आर्किटेक्ट

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 02-11-2025
V.P. Menon: The silent craftsman of Sardar Patel and the unsung architect of modern India.
V.P. Menon: The silent craftsman of Sardar Patel and the unsung architect of modern India.

 

मलिक असगर हाशमी

जब आज भारत लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मना रहा है, तब पूरे देश में उनके जीवन, उनकी दूरदृष्टि और भारत के एकीकरण में उनकी ऐतिहासिक भूमिका पर विमर्श हो रहा है.परंतु इस उत्सव और चर्चा के बीच एक नाम ऐसा है जो शायद आम भारतीय की स्मृति में धुंधला पड़ गया है.वह व्यक्ति जिसने पटेल के साथ मिलकर भारत के राजनीतिक एकीकरण की नींव रखी, 565 रियासतों को एक राष्ट्र के सूत्र में पिरोयाऔर जिसके हस्ताक्षर आज़ाद भारत के नक्शे के हर कोने में दर्ज हैं.वह व्यक्ति थे वाप्पला पंगुन्नि मेननया जैसा उन्हें स्नेह से कहा जाता था, वी.पी. मेनन.

f1893 में केरल के ओट्टापालम में जन्मे वी.पी. मेनन का जीवन किसी किंवदंती से कम नहीं था.उन्होंने स्कूल छोड़ दियाऔर अपने जीवन की शुरुआत कोलार गोल्ड माइन्स में एक मज़दूर के रूप में की.लेकिन उनके भीतर सीखने और आगे बढ़ने की तीव्र इच्छा थी.उन्होंने टाइपिंग सीखी, क्लर्की की नौकरी कीऔर धीरे-धीरे ब्रिटिश प्रशासन के गृह विभाग तक पहुँच गए.

 1914 में जब वे सिमला में एक टाइपिस्ट बने, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यही व्यक्ति एक दिन भारत के राजनीतिक नक्शे को पुनर्परिभाषित करेगा.उनकी विश्लेषणात्मक सोच और समाधान खोजने की अद्भुत क्षमता ने ब्रिटिश वायसरायों का ध्यान आकर्षित किया.धीरे-धीरे वे प्रशासन में ऊँचे पदों तक पहुँचे और लॉर्ड माउंटबेटन जैसे अधिकारियों के विश्वासपात्र बन गए.

dअपनी तेज़ बुद्धि, सौम्य व्यक्तित्व और गहन राजनीतिक समझ के कारण वी.पी. मेनन ब्रिटिश प्रशासन में उच्च रैंक हासिल करने वाले पहले भारतीयों में से एक बने.

भारत की स्वतंत्रता के बाद जब सरदार वल्लभभाई पटेल को गृह मंत्रालय और रियासतों के एकीकरण का जिम्मा सौंपा गया, तब उन्होंने जिस व्यक्ति पर सबसे अधिक भरोसा किया, वह वी.पी. मेनन थे.पटेल के शब्दों में, “यदि वी.पी. न होते, तो भारत का नक्शा कुछ और होता.” मेनन न केवल पटेल के सचिव थे, बल्कि उनके रणनीतिक सलाहकार, संकट-प्रबंधक और विश्वासपात्र भी थे.

जब-जब किसी रियासत का शासक भारत में विलय से इंकार करता, पटेल अपने ‘राजदूत’ मेनन को भेजते.वे मुस्कराते हुए शासकों से संवाद करते, उन्हें भारत के भविष्य की तस्वीर दिखातेऔर अपनी कूटनीति से उन्हें समझाते कि भारत में शामिल होना ही उनका और उनके लोगों का हित है.यह वही मेनन थे जिन्होंने 565 रियासतों को एक संघ में जोड़ने वाला ‘विलय पत्र’ (Instrument of Accession) तैयार किया.उन्होंने इसे स्वयं अपने टाइपराइटर पर टाइप किया,मात्र चार घंटे में.यह वही दस्तावेज़ बना जिसके आधार पर रियासतें भारतीय संघ का हिस्सा बनीं.

मेनन का काम आसान नहीं था.रियासतों के शासक अपनी सत्ता, ऐश्वर्य और अहंकार में डूबे थे.हैदराबाद के निज़ाम, जूनागढ़ के नवाब, कश्मीर के महाराजा या त्रावणकोर के दीवान,सभी अपने-अपने ढंग से स्वतंत्र रहना चाहते थे.मेनन को इन सबको मनाना था.कभी समझाकर, कभी समझौते से, और जब आवश्यकता पड़ी तो दृढ़ संकल्प से.

उन्होंने राजाओं को प्रिवी पर्स (पेंशन) का प्रस्ताव दिया, उन्हें उनके महल और उपाधियाँ रखने की अनुमति दी, लेकिन भारत की एकता पर कोई समझौता नहीं किया.जब जूनागढ़ के मुस्लिम नवाब ने पाकिस्तान से जुड़ने का निर्णय लिया, तो मेनन और पटेल ने सैन्य कार्रवाई का रास्ता अपनाया.

जब हैदराबाद के निज़ाम ने स्वतंत्र रहने की जिद की, तब उन्होंने ऑपरेशन पोलो का अनुमोदन किया.और जब कश्मीर पर पाकिस्तानी कबायली हमलावरों ने हमला किया, तो यही मेनन थे जिन्होंने नींद में सोए महाराजा हरि सिंह को जगाकर विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाए.मेनन की कूटनीति और पटेल की दृढ़ता ने मिलकर भारतीय उपमहाद्वीप के विघटन को रोका और एक अखंड भारत की नींव रखी.

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जनवरी 1948 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए पटेल. साथ में मेनन को भी देखा जा सकता है.

वी.पी. मेनन जितने तेज दिमाग के थे, उतने ही सुसंस्कृत और सौम्य भी.वे अपने सैविल रो सूट्स और क्यूबा सिगार के लिए मशहूर थे.उनकी शालीनता और सधी हुई बातचीत ने उन्हें राजाओं और ब्रिटिश अधिकारियों के बीच एक अनोखी विश्वसनीयता दिलाई.

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 बंग़लुरु का घर ‘शेल्टर’

उनका बंग़लुरु का घर ‘शेल्टर’ कहलाता था.एक सुंदर कोना जहाँ,उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए.उस घर की सबसे प्रिय जगह थी उनकी पक्षीशाला.रंग-बिरंगे कैनरी पक्षियों से भरी हुई.शायद वे हर सुबह उन पक्षियों को देखकर उन राजाओं को याद करते होंगे जिन्हें उन्होंने भारत के आकाश में एक ही झंडे के नीचे उड़ने के लिए राज़ी किया था.

सरदार पटेल के निधन के बाद वी.पी. मेनन का सितारा धीरे-धीरे ढलने लगा.जवाहरलाल नेहरू की सरकार में उनका प्रभाव घटा दिया गया.इतिहासकारों का मानना है कि उन्हें राजनीतिक विमर्श से लगभग मिटा दिया गया.लेकिन उन्होंने कभी शिकायत नहीं की.1950 के दशक में वे बंग़लुरु लौट आए और लेखन में जुट गए.

gउनकी दो किताबें —द स्टोरी ऑफ़ द इंटीग्रेशन ऑफ़ द इंडियन स्टेट्सऔरट्रांसफ़र ऑफ़ पावर — आज भी भारत के राजनीतिक इतिहास की सबसे प्रमाणिक कृतियों में गिनी जाती हैं.31 दिसंबर 1965 को 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ.उनका अंतिम संस्कार साधारण और निजी था,वैसा ही जैसा उनका व्यक्तित्व था: शांत, गहरा और विनम्र.

वी.पी. मेनन वह व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के एकीकरण का प्रारूप तैयार किया, उसे अमल में लाया, और फिर पीछे हट गए ताकि इतिहास का श्रेय किसी और को मिल सके.

उन्होंने सत्ता नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत की कल्पना को साधा.इतिहासकार नारायणी बसु ने ठीक ही लिखा है कि “पटेल की दृढ़ता और मेनन की सूझबूझ का मिश्रण ही भारत के राजनीतिक एकीकरण की सफलता का सूत्र था.”

आज जब भारत सरदार पटेल की जयंती मना रहा है, तो यह भी याद रखना ज़रूरी है कि लौहपुरुष के पीछे एक ऐसा मूक शिल्पकार खड़ा था, जिसने चुपचाप भारत को जोड़ने का महान कार्य किया.