For the first time after independence, the tricolor was hoisted in four tribal villages of North Maharashtra
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उत्तर महाराष्ट्र के एक सुदूर गांव जहां अब तक बिजली नहीं पहुंची और मोबाइल सिग्नल भी हवा की तरह खो जाता है, वहां गणेश पावरा ने देशभक्ति की मिसाल पेश करते हुए स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर एक वीडियो डाउनलोड कर सीखा कि तिरंगे को किस तरह बांधा जाए कि वह बिना रुकावट शान से लहराए.
शुक्रवार को, गणेश पावरा ने करीब 30 बच्चों और गांव वालों के साथ मिलकर अपने गांव उदाड्या में पहली बार झंडा फहराया। यह गांव नंदुरबार जिले की सतपुड़ा पहाड़ियों के बीच बसा है.
मुंबई से करीब 500 किलोमीटर और सबसे नजदीकी तहसील से लगभग 50 किलोमीटर दूर बसे इस छोटे से गांव में करीब 400 लोग रहते हैं, लेकिन यहां कोई सरकारी स्कूल नहीं है. पावरा एक गैर-सरकारी संस्था ‘वाईयूएनजी फाउंडेशन’ द्वारा संचालित एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हैं.
‘वाईयूएनजी फाउंडेशन’ के संस्थापक संदीप देओरे ने कहा, ‘‘यह इलाका प्राकृतिक सुंदरता, उपजाऊ मिट्टी और नर्मदा नदी से समृद्ध है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां तक पहुंचना काफी मुश्किल होता है.
इस क्षेत्र में तीन वर्षों से शिक्षा संबंधी गतिविधियों को क्रियान्वित कर रहे फाउंडेशन ने इस साल स्वतंत्रता दिवस पर उदाड्या, खपरमाल, सदरी और मंझनीपड़ा जैसे छोटे गांवों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया.
फाउंडेशन द्वारा संचालित चार स्कूलों में पढ़ने वाले 250 से ज्यादा बच्चे शुक्रवार को झंडा फहराने के कार्यक्रम में शामिल हुए, साथ ही गांव के स्थानीय लोग भी मौजूद रहे.
इन गांवों में न तो कोई सरकारी स्कूल है और न ही ग्राम पंचायत का दफ्तर, इसलिए पिछले 70 साल में यहां कभी झंडा नहीं फहराया गया.
देओरे ने कहा कि इस पहल का मकसद सिर्फ ‘‘पहली बार झंडा फहराना’’ नहीं था, बल्कि लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के बारे में जागरूक करना भी था.
देओरे ने कहा, ‘‘यहां के आदिवासी बहुत आत्मनिर्भर जीवन जीते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे सभी हमारे संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को जानते हों.