हिंदुस्तान के हुनरमंद -6: रेहान कई पुर्जों को जोड़कर बनाते हैं वुड कार्विंग आर्ट

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-03-2023
रेहान कई पुर्जों को जोड़कर बनाते हैं वुड कार्विंग आर्ट
रेहान कई पुर्जों को जोड़कर बनाते हैं वुड कार्विंग आर्ट

 

अर्चना

माइक्रोसाफ्ट के शलाका पुरुष बिल गेट्स ने हाल ही में कहा कि भारत की प्रगति और विकास देखकर वे अभिभूत हैं. उन्होंने इसके लिए मोदी सरकार की दूरदर्शिता और भारत में बढ़ते नवाचार को श्रेय दिया. नवाचार सिर्फ तकनीक ही नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि या कला किसी भी क्षेत्र में हो सकता है. फ्यूजन और नवाचर कला के क्षेत्र में भी नए आयाम जोड़ता है. रेहान खान का वुड कार्विंग के क्षेत्र में नवाचार नई बुलंदियों तक ले गया है.

रेहान खान ने अपने वालिद दिलशाद अहमद से वुड कार्विंग सीखी. उनके पिता वुड कार्विंग में भी नित नए प्रयोग करते रहते थे. वुड कार्विंग कलाकृतियों को नया लुक देने के लिए वे सिर्फ काष्ठ कला तक ही सीमित नहीं रहे.

उन्होंने इस कला अन्य तत्वों और पदार्थों को भी बेहिचक रुचिपूर्ण ढंग से समाहित किया. इसीलिए उनकी कलाकृतियां बरबस ही लोगों का ध्यान आकृष्ट कर लेती हैं. उनकी कलाकृतियों में मेटल और प्लास्टिक वर्क भी दिखाई पड़ता है. उनका कारोबार अब देस की सीमाएं लांघकर परदेस तक जा पहुंचा है. दुनिया में लाखों लोग उनके काष्ठ हस्तशिल्प के कद्रदान हो गए हैं.

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शिल्पकार रेहान ने बताया कि वह अपनी वुड कार्विंग को अमेरिका, कनाड़ा, फ्रांस, इटली, जर्मनी, वेस्टइंडीज, साउथ अफ्रीका, मिश्र समेत दुनिया भर के 20 देशों में पहुंचा चुके हैं. इस कला की सबसे अधिक मांग मैसूर और मुंबई में है. उन्होंने बताया कि अब तक वह करीब 400 लोगों को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना चुके है. उन्होंने बताया कि उन्हें अपने काम को बढ़ाने में सरकारों का पूरा सहयोग मिलता है.

रेहान बताते हैं कि कुछ कलाकृतियों के लिए उनके पिता दिलशाद अहमद को नेशनल अवार्ड मिल चुका है. इसलिए देश भर के विभिन्न हिस्सों में लगने वाली प्रदर्शनी व मेलों में जाने का मौका मिलता है, जहां उनके काम को सराहने वाले तो मिलते ही हैं, अच्छी बिक्री भी हो जाती है.

अब पूरा परिवार इसी धंधे में

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शिल्पकार रेहान ने बताया कि अब पूरा परिवार इसी धंधे में लगा हुआ है. पुश्तैनी कारोबार में भाई उस्मान, इरशाद, शादाब भी इसी पेशे से जुड़े हैं. पिता दिलशाद अहमद अब मार्गदर्शन करते हैं. उन्होंने बताया कि सहारनपुर में ही अपनी वर्कशॉप लगा रखी है. वहां भी आधा दर्जन से अधिक लोग काम करते हैं. हर महीने 50 से 60 हजार रुपए तक की इनकम हो जाती है.

रेहान कहते हैं कि सरकारों को इस कला को आगे बढ़ाने के लिए योजनाएं तैयार करनी चाहिए. युवाओं को इसी ओर आने के लिए स्टाइपेंड आदि की व्यवस्था करे ताकि लोग इस पेशे को अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकें. क्योंकि जब सीखने के साथ लोगों को कुछ पैसे जेब खर्च के मिलेंगे, तो उनका झुकाव इस ओर जरूर होगा.

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