मुसलमानों के हाथों बना लोहे का रथ, भगवान जगन्नाथ की होगी भव्य यात्रा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-06-2025
Iron chariot made by Muslims, Lord Jagannath's journey will be grand file photo
Iron chariot made by Muslims, Lord Jagannath's journey will be grand file photo

 

जावेद अख्तर/ कोलकाता

जब देशभर में धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण की खबरें आम हो रही हैं, ऐसे में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले के फरखा गांव से हिंदू-मुस्लिम एकता की एक प्रेरणादायक मिसाल सामने आई है. यहां 27 जून को निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा इस बार एक लोहे के रथ पर निकलेगी, जिसे तीन मुस्लिम युवकों — मरसलीन शेख, असीम खान और आमिर अल शेख — ने मिलकर तैयार किया है.

यह दृश्य सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की जीवंत तस्वीर है, जो बताता है कि धर्म की दीवारों से कहीं अधिक मजबूत होते हैं दिलों के रिश्ते.

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फरखा ब्लॉक के निशिंद्र ठाकुर गांव में रथ यात्रा की परंपरा वर्षों पुरानी है, लेकिन कुछ समय के लिए यह आयोजन बंद हो गया था. पिछले साल इसे फिर से शुरू किया गया और इस वर्ष ग्रामीणों ने तय किया कि भगवान जगन्नाथ लोहे के रथ पर सवार होंगे.

रथ निर्माण की जिम्मेदारी शिक्षिका तनुश्री मिश्रा को सौंपी गई, जिन्होंने गांव की कई हिंदू दुकानों से संपर्क किया, लेकिन किसी ने रथ बनाने में रुचि नहीं दिखाई. ऐसे में उन्होंने मरसलीन शेख की ग्रिल वेल्डिंग दुकान का रुख किया.

मरसलीन ने असीम खान और आमिर अल शेख के साथ मिलकर महज ढाई दिनों में छह फीट ऊंचा और ढाई फीट लंबा, 55 किलो लोहे का रथ तैयार कर दिया. यह रथ महज एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय समाज की वह खूबसूरत परंपरा है जहां मज़हब से ऊपर उठकर इंसानियत और भाईचारा पहले आता है.

मरसलीन कहते हैं, “हम सब एक-दूसरे के त्योहारों में शरीक होते हैं. यह रथ सिर्फ भगवान जगन्नाथ का नहीं, बल्कि हमारी साझी संस्कृति और मोहब्बत का प्रतीक है.” असीम और आमिर भी बताते हैं कि गांव में ईद हो या दुर्गा पूजा, मुहर्रम हो या दीवाली — सभी त्योहार मिलजुल कर मनाए जाते हैं.

इस आयोजन की संयोजिका तनुश्री मिश्रा भावुक होकर कहती हैं, “जब कोई हिंदू भाई रथ बनाने को तैयार नहीं हुआ, तब इन मुस्लिम भाइयों ने दिल से इसे बनाया. मुझे लगा जैसे भगवान ने स्वयं इनके हाथों से अपना रथ बनवाना चाहा.”

गांव के लोगों का कहना है कि यहां हर धर्म, हर पर्व में आपसी सहभागिता है और यह माहौल किसी राजनीतिक प्रचार की देन नहीं, बल्कि दिलों की मेहनत और आपसी सम्मान का परिणाम है.

रथ यात्रा भारत के प्रमुख धार्मिक उत्सवों में से एक है, जिसका सबसे बड़ा आयोजन पुरी, ओडिशा में होता है. इस वर्ष यह उत्सव 27 जून, शुक्रवार को मनाया जाएगा और कोलकाता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रथ की रस्सी खींचकर इसका उद्घाटन करेंगी.

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फरखा गांव की यह घटना यह साबित करती है कि भारत की आत्मा आज भी जीवित है. गंगा-जमुनी तहज़ीब केवल किताबों में नहीं, बल्कि गांव की गलियों, रिश्तों और व्यवहार में आज भी सांस ले रही है.

जब सियासी ताकतें समाज को बांटने की कोशिश कर रही हैं, तब यह छोटा सा गांव प्यार, सहभागिता और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनकर पूरे देश को राह दिखा रहा है। यही असली भारत है — वह भारत जो नफरत नहीं, मोहब्बत बोता है.