नौशाद अख्तर
इस्लामी नववर्ष की शुरुआत पर, मक्का स्थित पवित्र काबा को उसका नया किस्वा — यानी काले रेशमी आवरण — पहनाया गया.यह अवसर न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि इस्लामी कला, आध्यात्मिक समर्पण और तकनीकी उत्कृष्टता का जीवंत प्रतीक भी है.वर्ष 1447हिजरी (2025ईस्वी) के लिए तैयार किया गया यह किस्वा सौंदर्य, भक्ति और परंपरा का एक अद्वितीय संगम है, जिसका कुल वजन 1415किलोग्राम है और जिसे तैयार करने में 11महीने की कड़ी साधना लगी है.
अत्याधुनिक कौशल और सदियों पुरानी परंपरा का मेल
किंग अब्दुलअज़ीज़ कॉम्प्लेक्स फॉर किस्वा मैन्युफैक्चरिंग द्वारा निर्मित इस बार का किस्वा इस्लामी वस्त्र कला के उच्चतम स्तर को दर्शाता है.जुलाई 2024में आरंभ हुई इस परियोजना में बेहतरीन डिज़ाइनरों, सुलेखकों और कपड़ा विशेषज्ञों ने कुरान की आयतों और सजावटी बेल्टों को रेशम पर उकेरने का कार्य आरंभ किया.
पूरी प्रक्रिया — जिसमें कपड़े की कटाई, बुनाई, कढ़ाई और संयोजन शामिल है — को कठोर गुणवत्ता नियंत्रण और आध्यात्मिक परिशुद्धता के साथ अंजाम दिया गया.
क्या है इस किस्वा की विशेषताएं?
इस वर्ष के किस्वा में 47हस्तनिर्मित रेशम पैनल हैं, जिन पर 68कुरआनी आयतें कढ़ी गई हैं.इन आयतों को रेशम के कपड़े पर सोने से मढ़े चांदी के धागों से सिल दिया गया है.पूरे किस्वा में प्रयुक्त सोने-चांदी के धागों का वजन ही सैकड़ों किलोग्राम है.
कढ़ाई में शामिल प्रमुख शिलालेखों में हैं:
कुरान की आयतें जो दया, एकता और समर्पण को दर्शाती हैं
"ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुन रसूलुल्लाह" जैसे आस्था के घोष
अल्लाह के नाम: "अर-रहमान", "अर-रहीम", जो उसकी करुणा और अनंत दया को रेखांकित करते हैं
किस्वा की परतों की आध्यात्मिक प्रतीकात्मकता
इस किस्वा की बाहरी परत चमकदार काली रेशम से बनी है, जो पवित्रता और गहराई का प्रतीक है.भीतर की परतों में हरा रेशम (शांति का प्रतीक), सफेद सुकरी और सादा कपास (संरचनात्मक मजबूती) और लाल सादा रेशम (आंतरिक गर्मी व सम्मान) शामिल हैं.यह डिज़ाइन केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक भावनाओं और प्रतीकों से ओतप्रोत है.
कब और कैसे होता है किस्वा परिवर्तन?
1 मुहर्रम 1447 हिजरी यानी 25 जून 2025 (भारत में 1 मुहर्रम 26 जून 2026 को है)की रात को ईशा की नमाज़ के बाद, पवित्र काबा पर नया किस्वा औपचारिक रूप से चढ़ाया गया.यह वह क्षण होता है जो इस्लामी कैलेंडर के नववर्ष का प्रतीक भी है.
इस प्रक्रिया में दर्जनों कारीगर और तकनीशियन शामिल होते हैं, जो मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि किस्वा को बिना किसी त्रुटि के स्थानांतरित और स्थापित किया जाए.यह अनुष्ठान पहले हज के दौरान अराफात के दिन होता था, लेकिन अब इसे हिजरी नववर्ष के पहले दिन पर स्थानांतरित कर दिया गया है, ताकि यह इस्लामी साल की आध्यात्मिक शुरुआत का प्रतिनिधित्व करे.
विश्वव्यापी प्रसारण और आध्यात्मिक गर्व
इस आध्यात्मिक समारोह को पूरी दुनिया में मक्का लाइव चैनल के ज़रिए प्रसारित किया गया, जिससे करोड़ों मुसलमानों ने अपने घरों में बैठकर इस ऐतिहासिक क्षण को महसूस किया.यह न केवल एक अनुष्ठान है, बल्कि एक ऐसा दृश्य है जो दिलों में श्रद्धा और आंखों में आँसू भर देता है.
हर वर्ष किस्वा का परिवर्तन केवल कपड़े की अदला-बदली नहीं है, यह एक आध्यात्मिक संदेश है — नई शुरुआत, पुरानी विरासत की याद, और अल्लाह की रहमत की नवीनीकरण.2025का किस्वा, अपनी कारीगरी, सामग्री और भावनात्मक गहराई में, एक जीवंत इतिहास है जो भविष्य की पीढ़ियों को पवित्रता, समर्पण और कला की पराकाष्ठा का अनुभव कराता है.
काबा पर चढ़ाया गया यह किस्वा दरअसल इंसानी भक्ति और अल्लाह की महानता के बीच रेशमी पुल है — एक ऐसा आवरण जो केवल दीवारों को नहीं, दिलों को ढकता है.