नई विश्व व्यवस्था नहीं, नई विश्व नैतिकता चाहिए: राम माधव की नई किताब का संदेश

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-06-2025
We don't need a new world order, we need a new world morality: Message of Ram Madhav's new book
We don't need a new world order, we need a new world morality: Message of Ram Madhav's new book

 

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आतिर खान

हम सबसे अच्छे और सबसे बुरे समय में जी रहे हैं. आज की दुनिया एक विरोधाभास है: बाहरी तौर पर संतोषजनक, लेकिन सतह के नीचे बहुत अस्थिर. वैश्विक तनाव, हिंसक संघर्ष और राजनीतिक विखंडन शांति और प्रगति की हमारी साझा भावना को चुनौती देते हैं.

"ये दुनिया में क्या हो रहा है?"

यह सवाल हमें तब परेशान करता है, जब हम मिसाइलों को आसमान में उड़ते हुए देखते हैं. घरों और जिंदगियों को नष्ट करते हुए देखते हैं. चाहे वह इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता टकराव हो या दुनिया भर में अन्य टकराव. संघर्ष अक्सर शांत मानवीय जीत पर हावी होता है.

बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवा और गरीबी में कमी, ये उपलब्धियाँ पृष्ठभूमि में चली जाती हैं. युद्ध और अराजकता के शोर में खो जाती हैं. ऐसे क्षणों में इतिहास खुद को फिर से स्थापित करता है.

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पिछले युद्धों के आघात और सभ्यताओं की नाजुक विरासत हमें याद दिलाती है कि शांति का आवरण कितना पतला होता है.  पुरानी कहावत है- दुनिया उतनी ही अच्छी या बुरी है, जितनी हम इसे देखना चुनते हैं.

आज के भू-राजनीतिक माहौल में,  शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एक दुर्लभ अपवाद बन गया है. असुरक्षा, अविश्वास और भौतिक लाभ से प्रेरित सत्ता की खोज एक अथक चक्र बन गई है, जो वास्तविक संवाद और सहयोग के अवसरों को दबा रही है.
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अराजकता, या उसके ख़तरनाक रूप से नज़दीक कुछ, अब एक उभरता हुआ आदर्श प्रतीत होता है, जिसे कभी 'पश्चिमी उदार विश्व व्यवस्था' कहा जाता था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तैयार की गई और शीत युद्ध के अंत में मजबूत हुई यह व्यवस्था स्पष्ट रूप से कमज़ोर हो रही है. तो, आगे क्या होगा ?

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भविष्य को आकार देने में भारत को कैसी भूमिका निभानी चाहिए ? ये सवाल रणनीतिक विचारक राम माधव की नई किताब द न्यू वर्ल्ड: 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था और भारत के दिल में हैं, जिन्हें अक्सर भारत के राजनीतिक अधिकार से जोड़कर देखा जाता है.

यह किताब उभरते वैश्विक परिदृश्य और इसके भीतर भारत के संभावित रास्तों का समयोचित और सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत करती है.इस पुस्तक की व्यापक प्रशंसा हो रही है  कि इसमें असहज लेकिन ज़रूरी सवालों का सामना किया गया है.

अगर पश्चिमी उदारवादी व्यवस्था वास्तव में अपने अंत के करीब है, तो इसकी जगह क्या होना चाहिए? और भारत खुद को कैसे स्थापित कर सकता है?फ्रांसिस फुकुयामा, सैमुअल हंटिंगटन और तारिक अली जैसे विचारकों ने वैश्विक संघर्ष की जड़ों पर लंबे समय से बहस की है - चाहे वह विचारधारा हो, संस्कृति हो या धर्म.

फिर भी, कुछ लोगों ने एक नए विश्व व्यवस्था के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण का प्रस्ताव दिया है - जो सुलह, नैतिकता और आपसी सम्मान पर आधारित हो. माधव उस कमी को पूरा करते हैं.

अगली वैश्विक व्यवस्था को स्थायी मानवीय मूल्यों पर आधारित होना चाहिए, न कि केवल सत्ता संरचनाओं पर.. अतीत की गलतियों को स्वीकार किया जाना चाहिए और उन्हें सुधारा जाना चाहिए.

सभ्यतागत विरासतों को संरक्षित किया जाना चाहिए. अवशेषों के रूप में नहीं, बल्कि जीवित परंपराओं के रूप में जो दुनिया को सह-अस्तित्व की ओर ले जा सकती हैं, न कि विजय की ओर. एक बहुध्रुवीय दुनिया में अगर परमाणु हथियार संपन्न ईरान अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है तो पाकिस्तान भी ऐसा ही करेगा. जो हंस के लिए अच्छा है वह हंस के लिए भी अच्छा होना चाहिए. अधिनायकवाद अतीत की बात होनी चाहिए.

अपनी पुस्तक में माधव लिखते हैं:“भारत के रुख ने दर्जनों देशों को संघर्ष में पक्ष लेने से मना करने और संयुक्त राष्ट्र में तटस्थ रहने के लिए प्रोत्साहित किया है - जो पश्चिमी शक्तियों के लिए बहुत बड़ी निराशा है.”

शक्ति समूहों में शामिल होने से इनकार करना एक शांत लेकिन शक्तिशाली कूटनीतिक बदलाव को दर्शाता है - जो वैश्विक मंच पर भारत के बढ़ते आत्मविश्वास को दर्शाता है.
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पुस्तक के विमोचन के अवसर पर, माधव ने एक साहसिक और दूरदर्शी राष्ट्रीय आख्यान के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया - जिसे वे "ब्रांड भारत" कहते हैं. यह केवल छवि निर्माण नहीं , बल्कि भारत के लिए एक गहरी अपील है कि वह तेजी से खंडित हो रही दुनिया में अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित करे.

आज, निजी निगमों का प्रभाव कई सरकारों के बराबर है. रूढ़िवादिता विश्व स्तर पर फिर से उभर रही है. गैर-राज्य अभिनेताओं ने अभूतपूर्व शक्ति हासिल कर ली है. ऐसी दुनिया में, पुराने अमेरिकी-प्रभुत्व वाले ढांचे को आसानी से पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है.

एक बहुध्रुवीय दुनिया न केवल अपरिहार्य है - यह पहले से ही यहाँ है. फिर भी, माधव बहुध्रुवीयता के एक सरल दृष्टिकोण के खिलाफ चेतावनी देते हैं. "यह मानने में एक बुनियादी दोष है कि सभी ध्रुवों में समान शक्ति होनी चाहिए. विभिन्न राष्ट्र अलग-अलग ताकत लाते हैं - और कभी-कभी, वे विषमताएँ पारंपरिक महाशक्तियों को भी अप्रभावी बना सकती हैं."

उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को अपने लिए समानता की तलाश नहीं करनी चाहिए. नैतिक शासन के माध्यम से नेतृत्व करना चाहिए - जिसे वे "धर्मतंत्र" कहते हैं. पश्चिमी नौकरशाही की प्रक्रियात्मक कठोरता के विपरीत, धर्मतंत्र का अर्थ है वही करना जो सही है.

शासन को नैतिक और सभ्यतागत मूल्यों में स्थापित करना. पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोलते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस भावना को दोहराया: "पुस्तक उदार व्यवस्था और उस पहचान को दर्शाती है जिसे भारत को बनाए रखना चाहिए.

भारत का उदय सौम्य है. किसी के लिए हानिकारक नहीं. हमने खुद को अच्छाई के लिए एक ताकत साबित किया है." 14 अध्यायों में, द न्यू वर्ल्ड इस विकसित वैश्विक व्यवस्था में भारत के स्थान के लिए एक व्यापकरूपरेखा तैयार करता है - जिसमें भू- रणनीति, आर्थिक लचीलापन, पर्यावरणीय जिम्मेदारी और सामाजिक परिवर्तन शामिल हैं.
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वैश्विक अव्यवस्था के दौर में, माधव हमें याद दिलाते हैं कि भविष्य को सिर्फ़ नीतियाँ या सत्ता  नहीं बल्कि सिद्धांत भी आकार देते हैं. उनका संदेश स्पष्ट है: नैतिक दिशा-निर्देश के बिना, राष्ट्र दिशाहीन होते हैं, और विश्व व्यवस्था, चाहे जैसी भी हो, हमेशा अस्थिर ही रहेगी.

हम इतिहास के एक निर्णायक दौर से गुज़र रहे हैं. जैसे-जैसे पुरानी संरचनाएँ ढह रही हैं, एक नया वैश्विक प्रतिमान जन्म लेने के लिए संघर्ष कर रहा है. द न्यू वर्ल्ड में, राम माधव न केवल विश्लेषण, बल्कि एक खाका भी पेश करते हैं - जो भारत से अपनी नैतिक विरासत को अपनाने, अपनी अनूठी आवाज़ को मुखर करने और एक ऐसे विश्व को आकार देने में मदद करने का आह्वान करता है जो आधिपत्य से ज़्यादा सद्भाव को महत्व देता है.

इस खंडित युग में, शायद हमें जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वह एक नई विश्व व्यवस्था नहीं है - बल्कि एक नई विश्व नैतिकता है.

(लेखक आवाज द वाॅयस के प्रमुख संपादक हैं)