मलिक असगर हाशमी
पाकिस्तान एक बार फिर उस चौराहे पर आ खड़ा हुआ है, जहां से उसका लोकतंत्र बार-बार फौजी बूटों तले रौंदा गया. प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की अध्यक्षता में हुई हालिया कैबिनेट बैठक में एक हैरान करने वाला फैसला सामने आया—जनरल सैयद आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल की उपाधि दे दी गई. यह वही जनरल हैं जो हाल ही में भारतीय सेना के “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान न केवल असफल रहे, बल्कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ा.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि आख़िर कौन-सी “असाधारण सेवा” दी है जनरल मुनीर ने, जिसके एवज़ में उन्हें पाकिस्तान के इतिहास में केवल दूसरी बार यह सर्वोच्च सैन्य रैंक दिया गया?
भारतीय सेना द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर के तहत 9 आतंकी ठिकाने ध्वस्त किए गए,12 एयरबेस पर सटीक बमबारी की गई,पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली को पूरी तरह पंगु कर दिया गया,चीन निर्मित सैन्य उपकरण और 5.7 फाइटर जेट्स समेत 100 से अधिक ड्रोन नष्ट कर दिए गए और 70 से ज्यादा पाक सैनिकों की जान गई।
इसके बाद पाकिस्तान सरकार ने तत्काल युद्धविराम की अपील की—यह इशारा करता है कि सैन्य नेतृत्व रणनीतिक रूप से कितना विफल रहा. ऐसे में जनरल मुनीर को फील्ड मार्शल बनाना कई सवालों को जन्म देता है.
पाकिस्तान के इतिहास में अब तक केवल एक व्यक्ति—जनरल अयूब खान—को फील्ड मार्शल की उपाधि दी गई थी. अब जनरल मुनीर को यह सम्मान ऐसे समय में दिया गया है जब:देश की आर्थिक हालत चरमरा चुकी है,IMF के सामने भीख जैसी शर्तों पर ऋण लिया जा रहा है,अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फजीहत हो रही है,भारत और अफगानिस्तान से संबंध बेहद तनावपूर्ण हैं और देश के भीतर जनता में गहरा असंतोष है.
क्या यह पदोन्नति पेशेवर योग्यता का परिणाम है या सत्ता पर सेना की पुनर्बहाली का संकेत?
प्रसिद्ध गायक अदनान सामी ने इस फैसले पर कटाक्ष करते हुए X (पूर्व ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें गधों के झुंड को संबोधित करते हुए एक आदमी दिखता है. कैप्शन में लिखा गया:“जनरल मुनीर का पाकिस्तान सरकार को संबोधित स्वीकृति भाषण, जो उन्होंने फील्ड मार्शल बनने के बाद अपने श्रोताओं को दिया.”
यह टिप्पणी महज व्यंग्य नहीं, बल्कि उस गहरी निराशा की झलक है जो पाकिस्तान के आम नागरिक और प्रवासी अब महसूस करने लगे हैं.जनरल मुनीर की यह पदोन्नति 1958 की उस ऐतिहासिक घटना की याद दिलाती है, जब फील्ड मार्शल अयूब खान ने लोकतांत्रिक सरकार को बर्खास्त कर दिया था और संविधान रद्द कर मार्शल लॉ लागू कर दिया था.
आज के हालात लगभग उसी तरह के हैं:जनता सरकार से असंतुष्ट,सेना पर भरोसा घटता जा रहा है और लोकतंत्र की नींव हिल रही है.ऐसे में क्या फील्ड मार्शल का यह तमगा सेना को फिर से वैधानिक और राजनीतिक छाया सरकार का दर्जा देने की साजिश है?
जनरल मुनीर की यह ‘तरक्की’ दरअसल पाकिस्तान के लोकतंत्र की डिमोशन है. इस उपाधि से न उनकी तनख्वाह बढ़ी है, न संवैधानिक अधिकार, लेकिन इससे यह संदेश ज़रूर गया है कि पाकिस्तान की सियासत अब फिर से वर्दी के साए में जा रही है.
अगर यही रुझान जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में पाकिस्तान के नागरिकों को एक बार फिर फौजी हुकूमत का दौर देखना पड़ सकता है. सवाल यह नहीं कि क्या ऐसा होगा—बल्कि यह है कि इस बार क्या जनता फिर चुप रहेगी?
जनरल मुनीर को फील्ड मार्शल बनाना सिर्फ एक पदोन्नति नहीं, बल्कि पाकिस्तान की लोकतांत्रिक परंपराओं पर एक गहरी चोट है. यह कदम एक और सैन्य अधिनायकवाद की आहट है, और अब पाकिस्तान को तय करना है—वह भविष्य की ओर देखेगा या फिर अतीत की छाया में सिमटता चला जाएगा.