गुलाम कादिर
' The Indian Spy: The True Story of the Most Remarkable Secret Agent of World War II 'यह किताब हर भारतीय को पढ़ना चाहिए. ताकि पता तो चले देशद्रोही ज्योति मल्होत्रा और एक देशभक्त जासूस में कितना अंतर होता है.यहां एक ऐसे देशभक्त जासूस के बारे में बताया जा रहा है.
जब द्वितीय विश्व युद्ध की बात होती है, तो ध्यान अक्सर यूरोपीय मोर्चों, हिटलर की हार, स्टालिन की चालों या चर्चिल की रणनीति पर केंद्रित होता है. परंतु इस वैश्विक संघर्ष के पर्दे के पीछे कई ऐसे गुमनाम नायक थे, जिनकी साहसिक कहानियाँ इतिहास के पन्नों में दब गईं. ऐसे ही एक असाधारण नायक थे — भगत राम तलवार.
भगत राम तलवार इतिहास के इकलौते पंचगुना (Quintuple) जासूस थे, जिन्होंने एक साथ ब्रिटेन, रूस, जर्मनी, इटली और जापान — इन पाँच शक्तिशाली देशों के लिए जासूसी की. लेकिन असल में वह इनमें से किसी के प्रति वफादार नहीं थे. उनकी निष्ठा थी भारत की आज़ादी और कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति.
उनकी रहस्यमयी और रोमांचकारी कहानी को दुनिया के सामने पहली बार लेखक मिहिर बोस ने अपनी चर्चित पुस्तक “Silver: The Spy Who Fooled the Nazis” में रखा. इसी किताब में भगत राम तलवार के कोडनेम “Silver” का ज़िक्र आता है — एक ऐसा नाम, जो दुनिया की सबसे पेचीदा जासूसी पहेलियों में दर्ज हो गया.
क्रांतिकारी से जासूस बनने की यात्रा
भगत राम तलवार का जन्म 1908 में ब्रिटिश भारत के नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रांत (अब पाकिस्तान) के एक समृद्ध पंजाबी आर्य समाजी परिवार में हुआ था.उनके परिवार की ब्रिटिश सरकार से दूरी तब शुरू हुई जब 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया.
कुछ वर्षों बाद, भगत राम के भाई हरी किशन तलवार को ब्रिटिश गवर्नर की हत्या की कोशिश के आरोप में फांसी दे दी गई.
इस घटना ने भगत राम को गहरे स्तर पर झकझोर दिया और उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के साथ मिलकर क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट आंदोलन में सक्रिय भागीदारी शुरू की.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भागने में प्रमुख भूमिका
1941 में भगत राम तलवार को एक बेहद गोपनीय और जोखिम भरा मिशन सौंपा गया — नेताजी सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश निगरानी से बाहर निकालना.बोस ने एक मूक-बधिर मुस्लिम तीर्थयात्री "मोहम्मद जियाउद्दीन" का वेश धारण किया, जबकि तलवार उनके सेक्रेटरी "रहमत खान" बन गए.
दोनों ने पेशावर होते हुए अफगानिस्तान और फिर सोवियत रूस जाने की योजना बनाई. बाद में असफल हो गई. अंततः बोस बर्लिन पहुँचे और वहाँ से हिटलर से भारत की आज़ादी के लिए समर्थन माँगा.
भगत राम तलवार का जासूसी करियर
बर्लिन में ही भगत राम तलवार का जासूसी करियर शुरू हुआ. जर्मन खुफिया एजेंसी ने उन्हें एक प्रशिक्षित एजेंट बनाया. उन्हें एक रेडियो ट्रांसमीटर दिया गया और नकद इनामों से नवाज़ा गया.
उनकी कार्यकुशलता से प्रभावित होकर नाजियों ने उन्हें Iron Cross नामक सर्वोच्च सैन्य सम्मान तक दे दिया. लेकिन जर्मनों को इस बात की भनक तक नहीं थी कि वे अपने ही दुश्मनों को प्रशिक्षित कर रहे थे.
कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित तलवार ने गुप्त रूप से सोवियत खुफिया एजेंसी के साथ संपर्क स्थापित किया. नाजियों की सारी सूचनाएं उन्हें भेजनी शुरू कर दीं. इस तरह वे ट्रिपल एजेंट बन गए.
लेकिन यहीं कहानी खत्म नहीं होती. जब सोवियत संघ और ब्रिटेन के बीच गुप्त सहयोग की शुरुआत हुई, तो तलवार ने ब्रिटिश खुफिया एजेंसी SOE के लिए भी काम करना शुरू कर दिया.
ब्रिटिश खुफिया एजेंसी में उनके संपर्क अधिकारी थे पीटर फ्लेमिंग — जेम्स बॉन्ड सीरीज़ के लेखक इयान फ्लेमिंग के बड़े भाई. यहीं से उन्हें कोडनेम मिला — “Silver”.
तलवार ने ब्रिटिश सरकार की अनुमति से जर्मनों के दिए ट्रांसमीटर का उपयोग करते हुए दिल्ली के वायसराय हाउस के बगीचे से हर रोज़ जर्मनी को गलत सूचनाएं भेजीं.
जब जर्मनी ने इटली और जापान के साथ मिलकर सैन्य नेटवर्क बनाया, तो तलवार ने इन दोनों देशों को भी गुमराह करना शुरू कर दिया.इस तरह वे एक साथ पाँच महाशक्तियों — ब्रिटेन, रूस, जर्मनी, इटली और जापान — को अलग-अलग सूचनाएं देकर भ्रामक स्थिति पैदा करते रहे.
लेकिन उनका असली लक्ष्य केवल एक था: भारत की आज़ादी की लड़ाई को मजबूत करना..
1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ, तलवार का जासूसी जीवन भी धीरे-धीरे ख़त्म हुआ. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बड़ी धनराशि प्रदान की और वे उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में जाकर गुमनामी की ज़िंदगी जीने लगे.विभाजन के बाद वे भारत लौटे और उत्तर प्रदेश में बस गए, जहाँ 1983 में उनका निधन हो गया.
भेष बदले बोस और तलवार
भगत राम तलवार भारतीय इतिहास के उन चंद नायकों में से हैं, जो पर्दे के पीछे रहकर विश्व इतिहास की दिशा बदलने की क्षमता रखते थे. लेकिन अफसोस की बात यह है कि भारत ने उन्हें उतनी पहचान और सम्मान नहीं दिया, जितना एक पंचगुना जासूस और नेताजी के विश्वासपात्र के रूप में उन्हें मिलना चाहिए था.
आज जब हम राष्ट्रीय सुरक्षा, खुफिया एजेंसियों और वैश्विक राजनीति की बात करते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक गुमनाम भारतीय “सिल्वर” ने कभी पाँच विश्व शक्तियों को एक साथ धूल चटाई थी — बिना कोई गोली चलाए, केवल दिमाग और हिम्मत के ज़रिये.
यदि आप भगत राम तलवार की पूरी कहानी विस्तार से पढ़ना चाहते हैं, तो "The Indian Spy: The True Story of the Most Remarkable Secret Agent of World War II" पुस्तक अवश्य पढ़ें.