हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है चमलियाल मेला, क्या है 335 साल पुरानी परंपरा का राज?

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 21-05-2025
Chamliyaal fair is a symbol of Hindu-Muslim unity, what is the secret of this 335 year old tradition?
Chamliyaal fair is a symbol of Hindu-Muslim unity, what is the secret of this 335 year old tradition?

 

अर्सला खान/नई दिल्ली

Chamliyal Mela 2025: भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हर साल 22 जून को बाबा चमलियाल का मेला लगता है, जिसमें भारत-पाकिस्तान दोनों ही जगह से लोग चादर चढ़ाने जाते हैं. कैसे ये मेला दोनों देशों की एकता का प्रतीक है? आइये जानते हैं. 

 
भारत और पाकिस्तान (Indo-Pakistan) के रिश्तों में जारी कड़वाहट के बीच हर साल लगने वाले बाबा चमलियाल मेला (उर्स) जिसका वक्त आ गया है. जिसे लेकर भक्त काफी ज्यादा खुश हैं.
 
दरअसल, इस बार पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को बाबा दिलीप सिंह मन्हास की दरगाह का ‘शरबत’ और ‘शक्कर’ के तबर्रुक का बड़ी बेसब्री से इंतजार है. यह दरगाह बाबा चमलियाल (Chamliyal Mela) के नाम से भी मशहूर है.
 
 
मेले से अंतरराष्ट्रीय सीमा की दूरियां हुई कम

भारत और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगने वाला ये मेला दोनों के बीच बनी दूरियां कम करता है. वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पाकिस्तानी श्रद्धालु बड़ी तादाद में चमलियाल बाबा की दरगाह पर चादर चढ़ाने आते हैं.
 
22 जून को लगने वाले इस मेले की तैयारियां महीनों पहले से ही शुरू होने लगती है और इस बार भी मेले की तैयारियां जोरों-शोरों से हो रही है.
 
 
‘शक्कर’ और ‘शरबत’ का तबर्रुक

जम्मू से लगभग 50 किलोमीटर दूर सांबा जिले के रामगढ़ क्षेत्र के दग गांव में ये मेला हर साल आयोजित होता है. ये जगह अपने साथ दोनों देशों के इतिहास को समेटे हुए है.
 
मेले के दौरान पाकिस्तानी श्रद्धालुओं की तरफ से चादर चढ़ाई जाती है और इसके बदले में भारत से सीमा पार शक्कर और शरबत भेजा जाता है, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच प्रेम की भावना देखने को मिलती है.
 
बाबा दिलीप सिंह मन्हास की दरगाह पर लोगों की लंबी कतार भी देखने को मिलती है. बाबा से आस लगाए ये श्रद्धालु बढ़ी दूर से दरगाह में अपनी फरीयाद लिए आते हैं. स्थानिय लोगों का कहना है कि यहां आने से लोगों के चरम रोग दूर हो जाते हैं.
 
 
दरगाह का इतिहास?

यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि सालों पहले बाबा दिलीप सिंह मन्हास के एक शिष्य को एक बार ‘चम्बल’ नामक चर्म रोग हो गया था. जिसे बाबा ने अपने शिष्य को कुएं के ‘पानी’ और ‘मिट्टी’ का लेप शरीर पर लगाया और उसके बाद वो चर्म रोग दूर हो गया.
 
बस जब से ही मान्यता है कि बाबा चमलिया चर्म रोग दूर करते हैं. साथ ही दंतकथा में भी बाबा चमलियाल का जिक्र है. उसमें बताया गया है कि दिलीप सिंह मन्हास की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए गांव के एक व्यक्ति ने ईर्ष्यावश बाबा का गला काट कर उनकी हत्या कर दी. साथ ही जून महीने में लगने वाले सलाना मेले के अलावा देश भर से हर रोज लोग अपने चर्म रोगों के लिए भी इस मेले में आते हैं.
 
डिप्टी कमिश्नर ने बताया परंपरा का राज

सांबा के उपायुक्त अभिषेक शर्मा के मुताबिक, मेले के शांतिपूर्ण आयोजन को सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्थित व्यवस्था की गई है.
 
उन्होंने कहा कि बीएसएफ अधिकारियों ने श्रद्धालुओं को सेवाएं प्रदान करने के लिए बैरिकेड्स हटाने पर भी चर्चा की है. 335 साल पुरानी परंपरा के अनुसार, बाबा चमलियाल पाकिस्तान के सियालकोट क्षेत्र के सैयदियांवाला गांव में रहते थे.
 
यह मेला प्रतिवर्ष पाकिस्तान के सैयदियांवाला और भारत के चमलियाल गांव में आयोजित होता है, जिसमें दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं. साल 2003 में दोनों देशों के बीच युद्ध विराम समझौते के बाद, नागरिक बड़ी संख्या में इस दरगाह पर आने लगे.
 
मेले के दौरान पाकिस्तान भारत के रामगढ़ सेक्टर में स्थित दरगाह पर चादर चढ़ाता है, जबकि यहां से चीनी, मिट्टी और शरबत भेजा जाता है. 
 
सांबा के डिप्टी कमिश्नरअभिषेक शर्मा
 
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