जॉन फिलिप्स: जिसने अकेले रोक दी पाकिस्तान की बम बनाने की साजिश

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-05-2025
John Phillips: The man who single-handedly stopped Pakistan's bomb-making plot
John Phillips: The man who single-handedly stopped Pakistan's bomb-making plot

 

saleemसाकिब सलीम

"पाकिस्तानी संगठन (ISI) पूरी खुफिया बिरादरी के लिए एक मज़ाक बन चुका है. जिस तरह से अली ज़ाई ने तुम्हारा डिज़ाइन हासिल करने की कोशिश की, उससे साफ है कि वो जरूर 'पाकी' है. और अगर हमारी जांच में यह साबित हो गया कि वह पाकिस्तानी है, तो तुम्हें किसी खतरे की आशंका नहीं है."यह बात एफबीआई अधिकारी जॉर्ज डैनियल्स ने तब कही जब जॉन एरिस्टॉटल फिलिप्स ने पूछा—"लेकिन क्या पाकिस्तानी खतरनाक नहीं होते?"

साल 1977 के शुरुआती महीनों में अमेरिका में ऐसा क्या घट रहा था जिसमें एक युवा प्रिंसटन विश्वविद्यालय का छात्र, अमेरिकी सरकार, CIA, FBI, पाकिस्तान, ISI और फ्रांस तक शामिल थे?

जॉन एरिस्टॉटल फिलिप्स प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के छात्र थे। 1975 में उन्होंने यूनिवर्सिटी में अपने प्रोफेसरों से बहस करते हुए कहा कि एटम बम अब कोई रहस्य नहीं रह गया है और इसे कोई भी, यहां तक कि आतंकवादी भी बना सकते हैं, क्योंकि तकनीक से जुड़ी सारी जानकारी पहले ही सार्वजनिक हो चुकी है.

उन्होंने कहा कि एटम बम के प्रसार को रोकने का एकमात्र तरीका यह है कि प्लूटोनियम और यूरेनियम जैसे पदार्थों तक पहुंच को सख्ती से नियंत्रित किया जाए.अपनी बात को साबित करने के लिए फिलिप्स ने एक प्रोजेक्ट पर काम करने का फैसला किया जिसका शीर्षक था—"हाउ टू बिल्ड योर ओन एटॉमिक बॉम्ब".

इसे प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी फ्रीमैन डायसन ने सुपरवाइज़ किया. मई 1976 में उन्होंने 34 पन्नों की रिपोर्ट जमा की—"एन असेसमेंट ऑफ द प्रॉब्लम्स एंड पॉसिबिलिटीज़ कंफ्रंटिंग अ टेररिस्ट ग्रुप ऑर नॉन-न्यूक्लियर नेशन अटेम्प्टिंग टू डिज़ाइन अ क्रूड Pu-239 फिशन बॉम्ब".

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इस पेपर को A ग्रेड मिला—उस बैच का इकलौता A। खुद नोबेल पुरस्कार विजेता और ‘अल्लाह’ कहे जाने वाले यूजीन विग्नर ने इस पर ध्यान दिया और दुनिया भर में यह खबर बन गई.

फिलिप्स ने कहा, “मैं यह नाटकीय ढंग से दिखाना चाहता था कि आतंकवादी समूह सार्वजनिक जानकारी से ही एटम बम डिज़ाइन कर सकते हैं. यदि हमें कुछ पागल लोगों को ऐसा करने से रोकना है, तो हमें न्यूक्लियर फैसिलिटीज़ के बीच प्लूटोनियम के ट्रांसपोर्ट और निर्माण पर सख्त निगरानी रखनी होगी.”

दूसरी ओर, एटम बम की होड़ का केंद्र बन चुका था भारतीय उपमहाद्वीप। 18 मई 1974 को भारत ने पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया—'स्माइलिंग बुद्धा'. अब पाकिस्तान भी भारत के बराबर खुद को लाना चाहता था. मगर उसके पास खुद की वैज्ञानिक क्षमता नहीं थी, इसलिए उसे एटम बम ‘हासिल’ करना था.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था—“हम भी एटम बम बनाएंगे, चाहे हमें घास क्यों न खानी पड़े.”

मार्च 1976 में फ्रांस और पाकिस्तान के बीच एक प्लूटोनियम आधारित न्यूक्लियर रीप्रोसेसिंग प्लांट का समझौता हुआ. अमेरिका और कई देशों ने इसका विरोध किया क्योंकि उन्हें यकीन था कि भुट्टो अपने बयानों के मुताबिक इसे बम बनाने के लिए इस्तेमाल करेंगे.

फिलिप्स की रिपोर्ट ने अमेरिका को इस फ्रांस-पाकिस्तान सौदे के खिलाफ और मजबूत तर्क दे दिया. फिलिप्स ने कहा, “मेरी स्टोरी के ठीक नीचे अखबार में हेडलाइन थी: ‘फ्रांस टू प्रोसीड ऑन ए-सेल’.यानी पाकिस्तान को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी बेचने की योजना। ये वही टेक्नोलॉजी थी जिससे प्लूटोनियम मिल सकता था.”

लेकिन फिलिप्स की यह मान्यता कि ‘कोई भी’ बम बना सकता है, पाकिस्तान पर लागू नहीं हुई.इसके बाद जो हुआ वह किसी हॉलीवुड फिल्म से कम नहीं था. यूनिवर्सिटी के डीन ऑफिस से फिलिप्स को फोन आया कि एक शख्स, जो खुद को पाकिस्तानी एम्बेसी में एम्बेसडर का असिस्टेंट बता रहा था, ने फोन करके उनकी रिपोर्ट की कॉपी मांगी। जब वहां से रिपोर्ट नहीं मिली, तो उसने फिलिप्स का नंबर मांगा.

फिलिप्स ने बाद में बताया, “अगर यह आदमी वाकई पाकिस्तानी है तो मामला गंभीर हो सकता है. अभी कुछ दिन पहले ही न्यूयॉर्क टाइम्स में पढ़ा था कि पाकिस्तान फ्रांस से प्लूटोनियम प्लांट खरीदना चाहता है और अमेरिका इसका विरोध कर रहा है.”

सीनेटर विलियम प्रॉक्समायर को सूचना दी गई और FBI जांच में जुट गई. CIA भी इस पूरे घटनाक्रम पर नजर रखने लगी। फिलिप्स को कहा गया कि वह खुद कॉल उठाएं और उस व्यक्ति की जानकारी निकालें.

अगले दिन फोन आया। उसने खुद को पाकिस्तान एम्बेसी का अधिकारी बताया और कहा कि वह रिपोर्ट ‘परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग’ के लिए चाहता है. जब फिलिप्स ने नाम और पता पूछा, तो जवाब मिला:"आप मुझे यह रिपोर्ट अली ज़ाई के नाम से, पाकिस्तान एम्बेसी, वॉशिंगटन डी.सी. के पते पर भेज सकते हैं."

फिलिप्स ने व्यंग्य करते हुए पूछा: “क्या आपने हाल ही में घास खाई है, मिस्टर ज़ाई?”ज़ाई ने जवाब दिया, “मुझे यह मजाक बिल्कुल पसंद नहीं आया.”फिलिप्स बोले, “मुझे यह नहीं लगता कि एटॉमिक बम की डिज़ाइन किसी भी तरह से ‘शांतिपूर्ण’ हो सकती है, मिस्टर ज़ाई.”

कॉल खत्म होने के बाद फिलिप्स को स्थिति की गंभीरता का एहसास हुआ. FBI अधिकारी ने उन्हें कहा, “अगर अली ज़ाई वाकई ISI का आदमी है, तो चिंता की कोई बात नहीं. लेकिन अगर वो किसी और के लिए काम कर रहा है, तो मामला गंभीर हो सकता है.”

एफबीआई के मुताबिक, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ऐसे मामलों में बेहद अनाड़ी है.बाद में जांच में अली ज़ाई पाकिस्तानी एजेंट निकला. सीनेटर प्रॉक्समायर ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाया और नतीजा यह हुआ कि फ्रांस ने पाकिस्तान को न्यूक्लियर रिएक्टर देना बंद कर दिया.

जॉन एरिस्टॉटल फिलिप्स रातोंरात मीडिया सेंसेशन बन गए. हर टीवी चैनल, अखबार और मैगज़ीन उनके पीछे थी. हॉलीवुड के निर्माता मार्क कार्लीनर ने उनसे फिल्म बनाने की पेशकश की और कहा, “L.A. टाइम्स में आपकी स्टोरी पढ़ी, फिर People मैगज़ीन में देखा—मुझे लगा, वाह! क्या फिल्म बनेगी ! कॉलेज का लड़का एटम बम बनाता है, मशहूर होता है, और फिर पाकिस्तानी जासूसों के पीछे लग जाता है.”

फिल्म तो कभी नहीं बन सकी, लेकिन फिलिप्स ने 1970 के दशक में पाकिस्तान के एटम बम के सपने को जरूर चकनाचूर कर दिया. पाकिस्तान को यह हथियार 1998 में जाकर मिला.