देस-परदेस : आईएमएफ की सदाशयता या पाखंड ?

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 20-05-2025
Country and abroad: IMF's good intentions or hypocrisy?
Country and abroad: IMF's good intentions or hypocrisy?

 

permodप्रमोद जोशी

पहलगाम हत्याकांड के बाद जिस समय भारत ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चला रहा था, उसी समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पाकिस्तान को एक अरब डॉलर के कर्ज की स्वीकृति दे रहा था. भारत के विरोध के बावज़ूद आईएमएफ के एक्ज़िक्यूटिव बोर्ड ने इसे मंज़ूरी दे दी.

आईएमएफ़ के नियम किसी प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट करने का अधिकार नहीं देते इसलिए बोर्ड के सदस्य या तो पक्ष में वोट दे सकते हैं या अनुपस्थित रह सकते हैं. जो भी फ़ैसले हैं वे बोर्ड में आम सहमति के आधार पर किए जाते हैं.

जब पाकिस्तान को, जिसके आंगन में कभी कुख्यात ओसामा बिन लादेन रहता था, अपने विशाल पड़ोसी भारत के साथ तनाव के चरम पर एक अरब डॉलर का पैकेज दिया जाता है, तो इसके पीछे के कारणों पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है. 

भारत के विरोध को देखते हुए मुद्राकोष ने अगली किस्त जारी करने के लिए पाकिस्तान पर 11 नई शर्तें भी लगाई हैं. आईएमएफ ने पाकिस्तान को चेताया है कि भारत के साथ तनाव से योजना के राजकोषीय, वाह्य और सुधार लक्ष्यों के लिए जोखिम बढ़ सकते हैं. 

पाकिस्तान पर लगाई गई नई शर्तों में 17,600 अरब रुपये के नए बजट को संसद की मंजूरी, बिजली बिलों पर ऋण भुगतान अधिभार में वृद्धि और तीन साल से अधिक पुरानी कारों के आयात पर प्रतिबंध को हटाना शामिल है.

सवाल है कि वैश्विक-व्यवस्था ने पाकिस्तान की आतंकी-गतिविधियों की अनदेखी क्यों की और आईएमएफ के फैसले के पीछे कोई संज़ीदा दृष्टि है या शुद्ध-पाखंड? इस सवाल का जवाब देने के पहले हमें वर्तमान स्थितियों पर नज़र डालनी होगी.

bangladesh   

बांग्लादेश को भी मंज़ूरी

एक और खबर यह भी है कि आईएमएफ ने अपने 4.7 अरब डॉलर के ऋण कार्यक्रम की चौथी समीक्षा पूरी करने तथा विनिमय दर सुधारों पर वार्ता में महत्वपूर्ण सफलता मिलने के बाद जून में बांग्लादेश को भी 1.3 अरब डॉलर जारी करने का फैसला भी किया है. 

दोनों खबरों का कोई आपसी रिश्ता नहीं है, पर गहराई पर जाकर देखेंगे, तो इसमें भी वैश्विक-राजनीति में आ रहे परिवर्तनों की कुछ झलकियाँ देखने को मिलेंगी. दोनों देश चीन के करीब जाते दिखाई पड़ रहे हैं, और अमेरिका उन्हें अपने पाले में बनाए रखने के प्रयास कर रहा है.

बांग्लादेश को जो सहायता मिलने जा रही है, उसके लिए उसने 2023 में 4.7 अरब डॉलर के बेलआउट के लिए आईएमएफ का रुख किया था. इसलिए इसे डॉ यूनुस या शेख हसीना की सरकार के संदर्भ में नहीं देखना सकते. 

भारत को भी बांग्लादेश के बेलआउट पर आपत्ति नहीं है, पर पाकिस्तान के संदर्भ में भारत का कहना है कि ऐसी आर्थिक-सहायता कार्यक्रमों का इस्तेमाल अपने वह आतंकी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए करता है. 

कब सुधरेगा पाकिस्तान?

ऐसे कार्यक्रम लड़खड़ाती अर्थव्यवस्थाओं को रास्ते पर लाने के लिए लाए जाते हैं. 1958 से अब तक पाकिस्तान ने 24 बेलआउट लिए हैं. फिर भी उसकी आर्थिक समस्याएं जारी हैं. इसकी वजह अर्थव्यवस्था में लंबे समय से चली आ रही संरचनात्मक समस्याएं, रक्षा पर अत्यधिक ज़ोर और कमज़ोर प्रशासन है. 

भारत को अब अपनी शिकायत संयुक्त राष्ट्र के एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स) से करनी होगी. टास्क फ़ोर्स तय करती है कि किन देशों को ‘ग्रे’ या ‘ब्लैक’ लिस्ट में डाला जाए, ताकि उन्हें आईएमएफ़ और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं से फंड लेने से रोका जा सके. पाकिस्तान 2022 में ही एफएटीएफ की ‘ग्रे’ लिस्ट से बाहर निकला है. 

भारतीय अधिकारी एफएटीएफ को पाकिस्तान में स्थित उन आतंकवादी ठिकानों से संबंधित नवीनतम साक्ष्यों से अवगत कराने की योजना बना रहे हैं, जिन्हें पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के तहत रक्षा बलों ने नष्ट कर दिया था.

india

भारत की आपत्ति

शुक्रवार 16 मई को भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी भुज यात्रा के दौरान सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत नहीं चाहता कि आईएमएफ के धन का इस्तेमाल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पाकिस्तान या किसी अन्य देश में आतंकवादी बुनियादी ढाँचा तैयार करने में किया जाए. 

उन्होंने कहा, पाकिस्तान को मिलने वाली किसी भी तरह की वित्तीय सहायता आतंकवाद के वित्तपोषण से कम नहीं है. भारत चाहेगा कि आईएमएफ इसपर पुनर्विचार करे और भविष्य में किसी भी प्रकार की सहायता देने से परहेज करे. 

वस्तुतः हमें बदलती वैश्विक-राजनीति को सामने रखना होगा. वैश्विक-राजनीति में अमेरिकी भूमिका का कम हो रही है और चीनी भूमिका बढ़ रही है. यह मसला भी उसी अंतर्विरोध के कारण उपजा है. 

आईएमएफ़ का फैसला

जुलाई 2024: आईएमएफ और पाकिस्तान ने 7 अरब अमेरिकी डॉलर के नए कर्ज के लिए कर्मचारी-स्तरीय समझौता किया.आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड ने 25 सितंबर 2024 को 37 महीने के लिए 7 अरब डॉलर की एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईईएफ) को मंजूरी दी, जिसमें से 1 अरब डॉलर तुरंत वितरित किया गया.

9 मई 2025 को आईएमएफ ने 7 अरब डॉलर के प्रोग्राम की पहली समीक्षा को मंजूरी दी, जिसके तहत 1 अरब डॉलर का तत्काल वितरण हुआ, जिससे कुल वितरण 2.1 अरब डॉलर हो गया. इसके अलावा, 1.4 अरब डॉलर की रेसिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी को भी मंजूरी दी गई.

pak

पाकिस्तानी तत्परता

भारत के विरोध के बावजूद आईएमएफ़ बोर्ड ने सात अरब डॉलर के कर्ज की दूसरी किस्त यह कहते हुए मंज़ूर कर दी थी कि पाकिस्तान आर्थिक रिकवरी के लिए आईएमएफ़ के कार्यक्रम को लागू करने में तत्परता दिखा रहा है.

आईएमएफ़ ने यह भी कहा कि व 'पर्यावरणीय जोखिमों और प्राकृतिक आपदा' से निपटने की पाकिस्तान की कोशिशों का समर्थन जारी रखेगा. आईएमएफ़ ने संकेत दिया कि भविष्य में 1.4 अरब डॉलर की अगली किस्त भी पाकिस्तान को मिलेगी.

भारत ने सुधारात्मक उपायों को लागू करने में पाकिस्तान के 'ख़राब रिकॉर्ड' को देखते हुए इस तरह के बेलआउट के 'प्रभावी होने' पर सवाल उठाया. इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह सवाल उठाया कि इस फंड का इस्तेमाल सीमापार आतंकवाद' में हो सकता है. 

प्रतिष्ठा खतरे में

आईएमएफ में निर्णय सर्वसम्मति से होते हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था के विपरीत, जहाँ प्रत्येक देश का एक वोट होता है, आईएमएफ में वोट का हिस्सा उसके निर्धारित कोटे पर निर्भर करता है. 

अमेरिका के पास 16.49 फीसदी का सबसे अधिक वोटिंग शेयर है, चीन के पास चीन के पास 6.09 प्रतिशत का और भारत के पास 2.6 फीसदी. सबसे ज्यादा वोटिंग शेयर होने के कारण अमेरिका के पास वीटो पावर भी है. 

भारत लंबे समय से आईएमएफ के संसाधनों के विस्तार और उभरते बाजारों का उचित प्रतिनिधित्व करने के लिए कोटा प्रणाली में सुधार के लिए दबाव बना रहा है.

pak

सुधार के प्रयास 

2023 में जी-20 देशों की अध्यक्षता जब भारत के पास आई थी, तब उसकी तरफ़ से आईएमएफ़ और अन्य बहुपक्षीय डोनर्स के लिए सुधार के जो सुझाव दिए गए थे, उसमें असंतुलन को दूर करना भी शामिल था. 

उस वक्त भारत के एनके सिंह और अमेरिका के पूर्व वित्तमंत्री लॉरेंस समर्स ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि 'ग्लोबल नॉर्थ' और 'ग्लोबल साउथ' दोनों के निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए आईएमएफ़ में वोटिंग अधिकार और वित्तीय योगदान को अलग किया जाना चाहिए.

कोटा समीक्षा का मतलब है कि चीन के वोटिंग अधिकारों में वृद्धि होगी, जिसका वर्तमान प्रतिनिधित्व उसके आर्थिक वजन से काफी कम है. दूसरा मतलब है कि अमेरिकी वीटो शक्ति खत्म होगी. पाकिस्तान के संदर्भ में देखें, तो साफ है कि अमेरिका ने उसकी मदद की है. क्यों की है? 

कर्ज की राजनीति

इसका जवाब पेचीदा है. माना जा रहा है कि पाकिस्तान को चीन के पाले में पूरी तरह से जाने से अमेरिका रोकना चाहता है, अन्यथा पाकिस्तान के पक्ष में चीन खड़ा होगा. 
भारत ने अरुणाचल प्रदेश के लिए एडीबी (एशियाई विकास बैंक) से कर्ज माँगा था, लेकिन चीन ने दोनों देशों के बीच सीमा-विवाद का हवाला देते हुए और प्रभाव-क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए 2009 में उसे अस्वीकार करा दिया.   

आप पूछ सकते हैं कि भारत के लिए क्या अमेरिकी लाइन पर चलना ठीक होगा? क्या अमेरिका हमारा दोस्त है? डॉनल्ड ट्रंप ने हाल में दावा किया कि 'युद्धविराम' के दौरान भारत और पाकिस्तान को बातचीत की मेज पर लाने के लिए व्यापार का इस्तेमाल किया जाएगा. इस बयान का अर्थ क्या है?  

क्या भारत को आईएमएफ में यथास्थिति जारी रखने का समर्थन करना चाहिए? यानी कि अमेरिका को प्राथमिकता देनी चाहिए, या फिर चीन के बढ़ते प्रभाव को समायोजित करने में समझदारी है? 

imf

बदलता परिदृश्य 

1944 में अपनी स्थापना के बाद से ही ब्रेटन वुड निकाय पर संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभुत्व रहा है. द्वितीय विश्व युद्ध के विजेताओं ने आपस में तय किया कि वे दुनिया के नैतिक मध्यस्थ होंगे, तो कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ उनके दृढ़ नियंत्रण में आ गईं. 

चाहे वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 'स्थायी पाँच' हों, या विश्व बैंक और आईएमएफ के प्रमुखों की नियुक्ति से संबंधित स्थापित सम्मेलन, ये वैश्विक संस्थाएँ यूरोप और राज्यों की मित्र-मंडलियाँ हैं. 

वैश्विक-व्यवस्था के संचालन में इस समय विकसित देशों के समूह जी-7 के अलावा जी-20 की बड़ी भूमिका है, पर इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में ‘ब्रिक्स’ के गठन के बाद से स्थितियाँ बदली हैं. रूस को छोडकर ब्रिक्स के सभी सदस्य विकासशील या नव औद्योगिक देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है. 

अमेरिकी वर्चस्व

विश्व बैंक, आईएमएफ और ब्रिक्स का कार्यक्षेत्र एक जैसा नहीं है, पर दोनों की राजनीतिक-भूमिका अलग-अलग है. विश्वबैंक का अध्यक्ष पारंपरिक रूप से अमेरिकी नागरिक होता है, जिसे अमेरिका नामित करता है. अमेरिका ही बैंक का सबसे बड़ा शेयरधारक है. 

संयोग से इस समय बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा भारतीय मूल के हैं, जो 2023 में विश्व बैंक के अध्यक्ष बने, पर वे भी अमेरिकी नागरिक हैं. उन्होंने 2007 में अमेरिकी नागरिकता हासिल की थी. 

आईएमएफ का प्रबंध निदेशक हमेशा एक यूरोपीय होता है, जिसे पारंपरिक रूप से यूरोपीय देशों के मजबूत समर्थन से चुना जाता है. यह अलिखित परंपरा है, न कि औपचारिक नियम. बढ़ते वैश्विक दबाव और बदलते आर्थिक परिदृश्य के कारण भविष्य में इसमें बदलाव संभव है.

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से यूरोप और अमेरिका के बीच तमाम अंतरराष्ट्रीय मामलों में मौन सहमति रही है, पर अब वैश्विक-अंतर्विरोध खुलने का समय है. एक तरफ अमेरिका का वर्चस्व कम हो रहा है, वहीं चीन का बढ़ रहा है. 

भारत के संदर्भ में चीन का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है. अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्मों पर वह हमेशा पाकिस्तान की हिमायत करता है. दूसरी तरफ वह एशियन डेवलपमेंट बैंक और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं के मुकाबले न्यू डेवलपमेंट बैंक और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं को भी खड़ा कर रहा है. भारत भी इनमें शामिल है, पर फिलहाल चीन का वर्चस्व इनमें है. 

india

भारत क्या करे?

दुनिया में चल रहे गतिशील परिवर्तन के दौर में, भारत के सामने कठिन विकल्प हैं. हमें किससे जुड़ना चाहिए? किसी के साथ नहीं जुड़ना है, तो अपनी स्वतंत्र सत्ता को किस प्रकार बनाना है? 

भारत बहुपक्षवाद को बढ़ावा देना चाहता है. ‘ग्लोबल साउथ’ की हमारी रणनीति विकासशील देशों की आवाज़ बनने से जुड़ी है. आने वाले वर्षों में भारत के लिए रणनीतिक निर्णय बहुत महत्वपूर्ण होंगे. 

जैसे-जैसे भारत जापान और यूके जैसी पारंपरिक शक्तियों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, वैश्विक वित्तीय-प्रशासन में हमारी आवाज़ को नई वास्तविकताओं के रूप में प्रतिबिंबित होना चाहिए. 

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


ALSO READ अमेरिकी कोशिशों का स्वागत , मध्यस्थता का नहीं