तारिक मंसूर
किसी भी समाज के विकास में शिक्षा की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. समाज के विकास में सार्थक भागीदारी के लिए शिक्षा एक अनिवार्य पूर्वशर्त है। इसलिए, एक विवेकशील लोकतंत्र प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा में भाग लेने के लिए प्रेरित करता है. ऐसे लोकतंत्र की शासन व्यवस्था की गुणवत्ता उसकी शिक्षा और संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता में झलकती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के नेतृत्व में शिक्षा भारत के समग्र विकास का एक प्रमुख घटक बन गई है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का उद्देश्य शिक्षा को भारत के समग्र विकास की केंद्रीय धुरी बनाना है, जिसमें सुलभता और समानता इस नीति का प्रमुख आधार हैं.
इस दिशा में, NEP 2020 ने कई प्रगतिशील उपायों को पेश किया है ताकि शिक्षा को “हमारी शिक्षा” और “जनता के लिए शिक्षा” के रूप में रूपांतरित किया जा सके..
विशेष रूप से, यह नीति अंग्रेज़ी के वर्चस्व को कम करने और भारतीय भाषाओं में अनुसंधान को प्राथमिकता देने के उपायों का आह्वान करती है. NEP 2020 से पहले भी क्षेत्रीय भाषाओं में ज्ञान निर्माण को प्रोत्साहित करने के प्रयास जारी थे.
मातृभाषा आधारित ज्ञान निर्माण की यह दिशा शिक्षा को जनतांत्रिक बनाएगी और आम नागरिकों की भागीदारी को सुनिश्चित करेगी। ये पहल शिक्षा को व्यक्तिगत अधिकार और सामाजिक जिम्मेदारी दोनों के रूप में देखते हुए बौद्धिक विकास और समावेशन की दिशा में काम कर रही हैं.
भारत जैसे देश में आर्थिक बाधाएं शिक्षा प्राप्ति की सबसे बड़ी रुकावट हैं. कई मेधावी और सक्षम छात्र आर्थिक तंगी के कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. निर्धनता और वित्तीय अस्थिरता हमारे युवाओं को शिक्षा से दूर कर रही है.
इसे देखते हुए, सरकार छात्रों को शैक्षणिक ऋण आसानी से उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयासरत रही है, जिसमें बैंकिंग सेक्टर भी सहयोग कर रहा है.इसी पृष्ठभूमि में हाल ही में शुरू की गई प्रधानमंत्री विद्यालक्ष्मी योजना एक ऐतिहासिक पहल है.
यह अनोखी शिक्षा ऋण योजना देश के शीर्ष रैंकिंग वाले शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने वाले मेधावी छात्रों को आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से शुरू की गई है. इस योजना के तहत योग्य छात्रों को बिना किसी गारंटी या जमानत के पूरी तरह डिजिटल प्रक्रिया के ज़रिए त्वरित ऋण उपलब्ध कराया जाएगा. यह योजना देश के 860 उच्च रैंकिंग वाले संस्थानों में पढ़ाई करने वाले छात्रों को कवर करती है.
इस पहल से हर वर्ष 22 लाख से अधिक प्रतिभाशाली छात्र लाभान्वित हो सकेंगे, और सरकार स्वयं गारंटर की भूमिका निभाएगी। छात्रों को यह ऋण नाममात्र ब्याज दर पर मिलेगा.
यह योजना शिक्षा को लोकतांत्रिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित करने के विज़न को दर्शाती है. इस योजना के माध्यम से सरकार ऐसे छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए आर्थिक संसाधनों की गारंटी देती है, जो बौद्धिक रूप से मेधावी हैं लेकिन आर्थिक रूप से पिछड़े हैं.
अब छात्रों को ऋण प्राप्त करने के लिए किसी गारंटर की आवश्यकता नहीं होगी और वे घर बैठे डिजिटल रूप से शिक्षा ऋण प्राप्त कर सकेंगे. इससे छात्रों को देश के श्रेष्ठ संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा. वर्तमान में, शिक्षा ऋण लेने वाले छात्रों की संख्या लगभग तीन लाख है, जो इस योजना के चलते काफी बढ़ने की संभावना है.
इस परिप्रेक्ष्य में, ऋण को केवल एक ऋण के रूप में नहीं बल्कि एक सशक्तिकरण के साधन के रूप में देखा जाना चाहिए, जो छात्रों और युवाओं को श्रेष्ठ संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने और अपनी क्षमता को पहचानने का अवसर देता है.
राज्य द्वारा शिक्षा में सहयोग हमेशा सामाजिक कल्याण और विकास को बढ़ावा देता है. उत्तर भारत और अन्य क्षेत्रों में विभिन्न समुदायों ने बैंक ऋणों का उपयोग अपने विकास की गति बढ़ाने के लिए किया है. यदि सरकार द्वारा समर्थित ऋण न होते, तो कई समुदाय लोकतंत्र के दरवाज़े से दूर ही रह जाते.
यह संदर्भ विशेषकर मध्यम, पिछड़े और दलित समुदायों के बारे में है, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद बैंक ऋणों की मदद से अपने विकास को गति दी. 2014 के बाद, जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, तब से इस प्रकार की आर्थिक सहयोग योजनाओं ने समुदायों, वर्गों और व्यक्तियों के विकास और गतिशीलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस योजना आधारित पहल पर गहन शोध अभी बाकी है.
बाबा साहब अंबेडकर शिक्षा को दलितों और पिछड़े वर्गों की मुक्ति का सबसे प्रभावी माध्यम मानते थे. भारतीय लोकतंत्र की व्यवस्था में किसी भी सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह आर्थिक रूप से वंचित छात्रों और युवाओं को शिक्षा व्यवस्था में शामिल करने वाली नीतियाँ बनाए. यह योजना इसी प्रतिबद्धता की मिसाल है और हमारे समाज के युवाओं की प्रतिभा को सम्मान देने वाली पहल है.
यह योजना उन मेधावी छात्रों को देश के श्रेष्ठ संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने की उनकी आकांक्षा को पूरा करने का अवसर देती है. यह मानव संसाधन विकास और सामाजिक सशक्तिकरण में योगदान देगा, जो विकसित भारत की नींव बनेगा.
(प्रो. तारिक मंसूर उत्तर प्रदेश विधान परिषद के नामित सदस्य और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं. )