तनाव का कारण न बनाएं जनगणना को

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 23-06-2025
Do not make census a cause of stress
Do not make census a cause of stress

 

har हरजिंदर

गजट नोटीफिकेशन के साथ ही देश में जनगणना की प्रक्रिया अब शुरू हो चुकी है. जनगणना क्यों जरूरी है ? इस पर पिछले दिनों काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है. यह चर्चाएं भी सुनाई देती हैं कि जनगणना सिर्फ जनता की गणना भर नहीं होती इसकी एक राजनीति भी होती है. इसलिए जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही इसकी राजनीति भी सतह पर आने लगी है.

इस बार यह राजनीति और भी तेज हो सकती है क्योंकि इस बार जातियों की गणना भी होने जा रही है. जातियों को कैसे गिना जाएगा. किस हद तक इनका वर्गीकरण किया जाएगा यह अभी तक साफ नहीं हुआ है. न तो सरकार ने और न ही जनगणना आयुक्त ने ही इसका कोई ब्योरा दिया है. वैसे अभी इसमें दो साल का समय है. फिर भी इसे लेकर राजनीतिक ताकतें सक्रिय हो गई हैं.

अभी पिछले दिनों जब कर्नाटक में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक सर्वे हुआ था तो हमने देखा था कि वहां इसे लेकर कईं ताकते सक्रिय हो गईं थीं. मुसलमानों के बीच यह प्रचार शुरू हो गया था कि वे अपनी जाति मुसलमान ही लिखवाएं.

राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली जनगणना में ऐसा न हो इसके लिए भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे ने कमर कस ली है. मोर्चे की उत्तर प्रदेश इकाई ने घोषणा की है. वह जल्द ही पूरे प्रदेश में एक अभियान चलाएगी जिसमें मुसलमानों को बताया जाएगा कि जनगणना के दौरान वे अपनी जाति कैसे दर्ज कराएं.

प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कुंवर बासित अली का कहना है कि जाति दर्ज कराने की यह समझ होना जरूरी है. इस बार धार्मिक जनगणना नहीं बल्कि जाति जनगणना हो रही है.

भाजपा के लोग सक्रिय हुए हैं तो मुमकिन है कि आने वाले समय में वे लोग भी सक्रिय हो जाएं जो यह कहेंगे कि मुसलमानों को अपनी जाति में भी मुस्लिम ही दर्ज कराना चाहिए.

वैसे ही जैसे कर्नाटक में किया गया. हालांकि गृह मंत्रालय से अभी तक जो जानकारी मिली है उसके हिसाब से आप जाति या धर्म के काॅलम में कुछ भी शायद अपनी मर्जी से दर्ज नहीं करा पाएंगे.

वहां एक ड्राॅप डाउन मैन्यु होगा जिसमें दिए गए विकल्पों में से आपको एक चुनना होगा. धर्म के काॅलम में मुस्लिम का विकल्प तो होगा लेकिन जाति के काॅलम में मुस्लिम का विकल्प मिलेगा या नहीं यह नहीं कहा जा सकता.

जाति दर्ज कराने या न कराने के बारे में एक दिलचस्प उदाहरण 1931 की जनगणना का दिया जाता है. वह आखिरी जनगणना थी जब जातियों की भी गणना हुई थी.

उसके बाद यह गणना इस बार ही होगी. तब हिंदू महासभा ने पूरे देश में एक अभियान चलाया था. इस अभियान में हिंदुओं से यह अपील की जाती थी कि वे जाति के काॅलम में भी हिंदू ही लिखवाएं कोई जाति नहीं. लेकिन इस अभियान का लोगों पर असर नहीं पड़ा. ज्यादातर लोगों ने अपनी जाति दर्ज कराई.

इसके विपरीत कर्नाटक में हुए सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक सर्वे के दौरान जब अभियान चलाया गया तो आधे ज्यादा मुसलमानों ने अपनी जाति के काॅलम में मुस्लिम ही दर्ज कराया.

जाति दर्ज कराई जाए या नहीं ये दो अलग तरह की सोच हैं. इसे लेकर अगर अभियान चलते हैं तो उन्हें रोका नहीं जा सकता है.. समस्या इसमें है भी नहीं। समस्या यह है कि ऐसे अभियान अक्सर समाज में तनाव का कारण बन जाते हैं.

जनगणना के दौरान ऐसा तनाव पैदा होने के कुछ उदाहरण भी हमारे सामने हैं. जरूरी ऐसे तनाव को रोकना है. लोग अपनी सोच के हिसाब से अभियान चला सकते हैं लेकिन ऐसा सदभाव की कीमत पर नहीं होने दिया जा सकता.

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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