डा फैयाज अहमद फैजी
पत्रकारिता के इस अनिश्चिता के दौर में इसकी पारदर्शिता, सत्यता,निष्पक्षता को बरकरार रखना एक चुनौती पूर्ण कार्य है. आवाज द वायस इसे बखूबी अंजाम दे रहा है.
अपने टैगलाइन ‘ सोच हिंदुस्तानीयत की’ के अनुरूप भारत की संस्कृति, विरासत और विकास की यात्रा को पाठकों के सम्मुख करीने से प्रस्तुत कर रहा है. आवाज द वायस के अधिकांश आलेख राजनीतिक ध्रुवीकरण के बजाय देश के समन्वयवादी मूल्य पर आधारित होते हैं.
सरकारी योजनाओं, नीतियों उसके क्रियान्वयन और उस पर विपक्ष की शंकाओं , आलोचनाओं, टिप्पणीयों को परस्पर समानरूप से संतुलन बनाते हुए जगह देता रहा है.
भारत के सबसे वंचित समाज और संघर्ष पसमांदा आंदोलन के विचारों, गतिविधियों, आयोजनों, बुद्धिजीवियों,उनके आलेखों को प्रमुखता से न सिर्फ जगह देना, बल्कि देशज पसमांदा समाज की सच्चाइयों को सबसे अवगत कराना, अपने आप में ऐतिहासिक निर्णायक और सराहनीय कार्य है.
सर्विदित है कि देशज पसमांदा आंदोलन को भारत के बुद्धिजीवी, तथाकथित सेक्युलर , लिबरल काम्युनिस्ट, अशराफ और मुख्य धारा की मीडिया ने सिरे से नकारा है.इस विषम और असुविधाजनक परिपेक्ष में भी आवाज द वायस द्वारा देशज पसमांदा की वैचारिकी को आवाज देना हिंदुस्तानियत की सोच को दर्शाता है.
देश का कोई भी समाज अगर मुख्य धारा से कट जाए, वंचित रह जाए, तो यह देश के सर्वांगीण विकास के लिए बाधक होता है. आवाज से इसे बखूब समझा और इसपर लगातार लिख रहा है.
मैं पूरे देशज पसमांदा समाज,आंदोलन की तरफ से और व्यक्तिगत रूप से आवाज द वॉयस के तीन साल पूरे होने की हार्दिक बधाई देता हूं.
आशा और कामना करता हूं कि आने वाले समय में यह पोर्टल देशज पसमांदा समाज के दुख दर्द को ऐसे ही जगह देता रहे, ताकि न सिर्फ मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय के लक्ष्य को हासिल किया जा सके , मुख्य धारा से दूर एक बड़ी आबादी की मुख्य धारा में मजबूत उपस्तिथि दर्ज हो सके.इससे राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में मुस्लिम साम्प्रदायिकता रूपी एक बड़ी बाधा को दूर किया जा सकता है.
( लेखक, अनुवाद, स्तंभकार, मीडिया पैनलिस्ट, पसमांदा सामाजिक कार्यकर्ता एवं पेशे से चिकित्सक हैं.)