फ़िरदौस ख़ान
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान द्वारा लड़कियों और महिलाओं की तालीम को ग़ैर इस्लामी अमल क़रार देते हुए इस पर पाबंदी लगा देने से यह मुद्दा एक बार फिर से सुर्ख़ियों में है. यह जगज़ाहिर है कि तालिबान हमेशा से ही महिलाओं की तरक़्क़ी के ख़िलाफ़ रहा है. तालिबान सरकार के शिक्षा मंत्री निदा मुहम्मद नदीम का कहना है कि लड़कियों और महिलाओं की पढ़ाई इस्लाम और अफ़ग़ान मूल्यों के ख़िलाफ़ है.
इसलिए चाहे अफ़ग़ानिस्तान पर परमाणु बम गिरा दिया जाए, लेकिन इस्लामिक अमीरात सरकार अपना फ़ैसला नहीं बदलेगी.अब सवाल यह है कि लड़कियों का तालीम हासिल करना क्या वाक़ई इस्लाम के ख़िलाफ़ है? जो लोग इस्लाम को नहीं जानते या इस्लाम के बारे में नहीं जानते, वे तो यही समझेंगे कि तालिबान का शिक्षा मंत्री सही कह रहा है.
सऊदी अरब में बुलंदी छू रही हैं महिलाएं
इस्लाम का सिरमौर देश सऊदी अरब भी महिलाओं की तरक़्क़ी के रास्ते खोल रहा है. अब वहां की महिलाएं दुनिया के दूसरे विकसित देशों की बराबरी कर रही हैं. सऊदी अरब में साल 2017में क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के सत्ता में आने के बाद से महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है.
पिछले पांच सालों में नौकरी करने वाली महिलाओं की तादाद तक़रीबन दोगुनी हो गई है. ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2018में सऊदी अरब की नौकरी करने वाली महिलाओं की तादाद 20फ़ीसद थी, जो साल 2020 के आख़िर तक बढ़कर 33 फ़ीसद हो गई. सऊदी अरब में महिलाएं पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में लगातार आगे बढ़ रही हैं.
सऊदी अरब की हुकूमत ने साल 2018 में महिलाओं को ड्राइविंग की आज़ादी दी थी. इसके बाद वहां की सड़कों पर महिलाएं वाहन चलाते हुए नज़र आने लगीं. पिछले साल मई 2022में सऊदी अरब में एयरलाइन की एक फ़्लाइट में चालक दल से लेकर क्रू मेंबर तक सभी महिलाएं थीं.
यह अरब की इकलौती ऐसी फ़्लाइट बन गई, जिसमें क्रू की सभी सदस्य महिलाएं रहीं. फ़्लायडील के प्रवक्ता इमाद इस्कंदरानी के मुताबिक़ फ़्लायडील, फ़्लैग कैरियर सउदिया की बजट सहायक कंपनी द्वारा संचालित यह फ़्लाइट 19 मई को राजधानी रियाद से लाल सागर के तटीय शहर जेद्दा के लिए थी.
इससे पहले साल 2019 में सऊदी अरब के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने एक महिला सऊदी को-पायलट के पहली उड़ान का ऐलान किया था.पिछले साल सऊदी अरब में ऊंटों की सौंदर्य प्रतियोगिता 'शिप्स ऑफ़ द डेज़र्ट' में पहली बार महिलाओं ने हिस्सा लिया था.
राजधानी रियाद में आयोजित इस प्रतियोगिता में तक़रीबन 40 महिलाओं ने अपने ऊंटों के साथ शिरकत की थी. हर साल आयोजित होने वाली इस प्रतियोगिता में करोड़ों रुपये के इनाम दिए जाते हैं. इस प्रतियोगिया में हिस्सा लेने वाली रशीदी का कहना था कि इस प्रतियोगिता में महिलाओं को हिस्सा लेने की इजाज़त दी गई, तो मैं ख़ुद को रोक नहीं पाई.
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस प्रतियोगिता में टॉप-5 में रहने वाली विजेता महिलाओं को 10 लाख रियाल यानी 23 करोड़ 19 लाख रुपये के इनाम दिए गए.इतना ही नहीं, सऊदी अरब में अब महिलाएं बुलेट ट्रेन भी चलाएंगी. सऊदी रेलवे कंपनी (एसएआर) ने 32 सऊदी महिलाओं के स्नातक होने का जश्नम मनाया है.
महिला रेल चालकों का यह पहला जत्थां दुनिया की सबसे तेज़ ट्रेनों में से एक हारमिआन एक्सहप्रेस को चलाएगा. इन महिला चालकों ने अब ट्रेन को चलाने की योग्याता हासिल कर ली है. सऊदी रेलवे कंपनी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर इन महिलाओं के ट्रेन चलाने के प्रशिक्षण को दिखाते हुए ख़ुशी ज़ाहिर की है.
इस ट्रेन की रफ़्तार 450 किलोमीटर प्रति घंटे से लेकर 300 किलोमीटर प्रति घंटा है. यह पूरी तरह से इलेक्ट्रिक ट्रेन है और इसे मक्काओ और मदीना के बीच में साल 2018में लॉन्च् किया गया था. पिछले साल इस नौकरी के लिए 28 हज़ार महिलाओं ने आवेदन किया था.
सऊदी अरब की महिलाएं अब अंतरिक्ष में भी जा सकेंगी. किंगडम में 22 सितम्बर 2022 को पहले अंतरिक्ष यात्री कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इसका मक़सद अनुभवी कैडरों को लम्बी और छोटी अंतरिक्ष उड़ानों और भविष्य के अंतरिक्ष मिशन में हिस्सा लेने के लिए तैयार करना है.
सऊदी प्रेस एजेंसी (एसपीए) के मुताबिक़ इस कार्यक्रम के तहत एक महिला अंतरिक्ष यात्री को पुरुष अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अंतरिक्ष में लॉन्च किया जाएगा. दरअसल यह किंगडम के महत्वाकांक्षी विज़न 2030 का एक हिस्सा है. पहली उड़ान इसी साल शुरू की जाएगी और इसमें पहली सऊदी महिला पायलट को जाने का मौक़ा मिलेगा.
जब इस्लाम का गढ़ माना जाने वाला सऊदी अरब महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए लगातार प्रोत्साहित कर रहा है, तो ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान का महिलाओं से तालीम का हक़ छीन लेने का रवैया समझ से परे है. आख़िर अफ़ग़ानिस्तान इस्लाम पर इतना बड़ा बोहतान क्यों बांध रहा है कि लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा इस्लाम के ख़िलाफ़ है, जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.
इस्लाम में लड़कियों की तालीम
इस्लाम में शिक्षा ख़ासकर लड़कियों की तालीम को बहुत महत्त्व दिया गया है. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जो पहली वही नाज़िल हुई, उसकी शुरुआत भी ‘इक़रा’ शब्द से हुई थी, जिसका मतलब है पढ़ो.
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि 'हर मुसलमान (मर्द और औरत) पर इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है. (तिब्रानी 10/ 240)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लड़कियों और महिलाओं की तालीम पर ख़ास तवज्जो दी.
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ुरआन की आयतों के बारे में फ़रमाया कि तुम ख़ुद भी उनको सीखो और अपनी औरतों को भी सिखाओ. (सुनन दारमी 3390)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुम अपने घरों में वापस जाओ, अपने घरवालों के साथ रहो, उन्हें दीन की तालीम दो और उनसे दीन के अहकाम पर अमल करवाओ. (सही बुख़ारी 63)
इस्लाम में लड़कियों की अच्छी परवरिश, अच्छी तालीम और अच्छी तरबीयत पर ख़ास ज़ोर दिया गया है. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिसने तीन लड़कियों की परवरिश की, उन्हें अच्छी तालीम और तरबीयत दी और उनसे अच्छा बर्ताव किया. फिर उनका निकाह कर दिया, तो उसके लिए जन्नत है. (अबू दाऊद 5147)
अल क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है कि ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनसे पूछो कि क्या इल्म रखने वाले और इल्म न रखने वाले लोग बराबर हो सकते हैं? (क़ुरआन 39:9)
इस्लाम में इल्म को सबसे बड़ी दौलत माना गया है. सही तिर्मज़ी के मुताबिक़ उलमा नबियों के वारिस हैं, क्योंकि नबियों ने विरासत में दिरहम व दीनार नहीं, छोड़े बल्कि इल्म छोड़ा है. इसलिए जिसने इल्म हासिल कर लिया उसने नबियों की विरासत में से बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया. (सही तिर्मज़ी 2159)
एक हदीस में कहा गया है कि एक मर्द ने पढ़ा तो समझो एक व्यक्ति ने पढ़ा और अगर एक महिला पढ़ी तो समझो एक परिवार, एक ख़ानदान पढ़ा.अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में महिलाएं मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढ़ती थीं.
अनगिनत जंगों में महिलाओं ने अपने युद्ध कौशल का लोहा भी मनवाया. प्रसिद्ध औहद की जंग में जब हज़रत मुहम्मद ज़ख्मी हो गए तो उनकी बेटी फ़ातिमा ज़हरा अलैहिस्सलाम ने उनका इलाज किया. उस दौर में भी रफ़ायदा और मैमूना नाम की प्रसिद्ध महिला चिकित्सक थीं.
रफ़ायदा का तो मैदान-ए-नबवी में अस्पताल भी था, जहां गंभीर मरीज़ों को दाख़िल किया जाता था. मुस्लिम महिलाएं शल्य चिकित्सा भी करती थीं. उम्मे-ज़ियाद, शाज़िया, बिन्ते माऊज़, मआज़त-उल-अपगरिया, अतिया असरिया और सलीम अंसारिया आदि उस ज़माने की प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक थीं.
मैदान-ए-जंग में महिला चिकित्सक भी पुरुषों जैसी वर्दी पहनती थीं. हज़रत मुहम्मद की सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पत्नी ख़दीजा कपड़े का कारोबार करती थीं. संत राबिया बसरी की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी. पुरुष संतों की तरह वह भी धार्मिक सभाओं में शिरकत किया करती थीं.
सियासत में भी महिलाओं ने सराहनीय काम किए. रज़िया सुल्तान हिन्दुस्तान की पहली महिला शासक बनीं. नूरजहां भी अपने वक़्त की ख्यातिप्राप्त राजनीतिज्ञ रहीं, जो शासन का अधिकांश कामकाज देखती थीं. साल 1857 की जंगे-आज़ादी में कानपुर की हर दिल अज़ीज़ नृत्यांगना अज़ीज़न बाई सारे ऐशो-आराम छोड़कर देश को ग़ुलामी की ज़ंजीरों से छुड़ाने के लिए मैदान में कूद पड़ीं.
उन्होंने महिलाओं के समूह बनाए, जो मर्दाना वेश में रहती थीं. वे सभी घोड़ों पर सवार होकर और हाथ में तलवार लेकर नौजवानों को जंगे-आज़ादी में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करती थीं. अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हज़रत महल ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को मज़बूत करने के लिए उत्कृष्ट कार्य किए.
मौजूदा दौर में भी महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपनी योग्यता का परिचय दे रही हैं. तुर्की जैसे आधुनिक देश में ही नहीं, बल्कि कट्टरपंथी समझे जाने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश सरीखे देशों में भी महिलाओं को प्रधानमंत्री तक बनने का मौक़ा मिला.
वाक़ई यह एक ख़ुशनुमा अहसास है कि मज़हब के ठेकेदारों की तमाम बंदिशों के बावजूद मुस्लिम महिलाएं आज राजनीति के साथ खेल, व्यापार उद्योग, कला, साहित्य, रक्षा और अन्य सामाजिक क्षेत्रों में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं.
दरअसल, शिक्षा सभ्य समाज की बुनियाद है. इतिहास गवाह है कि शिक्षित क़ौमों ने हमेशा तरक़्क़ी की है. किसी भी व्यक्ति के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए शिक्षा बेहद ज़रूरी है. अफ़सोस की बात यह है कि जहां दुनियाभर के देश शिक्षा को विशेष महत्व दे रहे हैं, वहीं अफ़ग़ानिस्तान के तालिबानी तालीम पर पाबंदी लगाकर ज्ञान के उजाले से अज्ञानता के अंधेरे की तरफ़ बढ़ रहे हैं, जो बेहद चिंता का विषय है.
(लेखिका आलिमा है. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)
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