देस-परदेस : बांग्लादेश के चुनाव से जुड़े हैं भारत से रिश्ते

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 11-11-2025
Domestic and International Affairs: India's relations are linked to the elections in Bangladesh.
Domestic and International Affairs: India's relations are linked to the elections in Bangladesh.

 

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प्रमोद जोशी

बांग्लादेश में फरवरी में चुनाव कराए जाने की घोषणा के बाद से घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. वहाँ के राजनीतिक अंतर्विरोध तेजी से खुल रहे हैं. यह स्पष्ट हो रहा है कि वहाँ के समाज और राजनीति में कई धाराएँ एक साथ बहती हैं.

बुनियादी सवाल अब भी अपनी जगह है. चुनाव होंगे या नहीं और हुए तो परिणाम क्या होगा, कैसी सरकार बनेगी? अंतरिम सरकार को जो आर्थिक और सामाजिक कठिनाइयाँ विरासत में मिली हैं, वे अब और बढ़ गई हैं, जो आने वाली सरकार के मत्थे मढ़ी जाएँगी. भारत के साथ रिश्ते भी इन चुनाव-परिणामों पर निर्भर करेंगे.

नई सरकार को राजनीतिक असंतोष, ऊँची मुद्रास्फीति और राजनीतिक-समूहों के तूफान का सामना करना होगा. देश की अर्थव्यवस्था भारत के साथ संबंधों पर भी निर्भर करती है. ये संबंध बिगड़े हुए हैं और कहना मुश्किल है कि नई सरकार का इस मामले में नज़रिया क्या होगा.

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बढ़ती अराजकता

डॉ यूनुस की अंतरिम सरकार ने चुनाव की तारीख की घोषणा पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और इस्लामी जमात-ए-इस्लामी के साथ विचार-विमर्श के बाद की है. फिर भी अधूरे सुधारों और बिगड़ती सुरक्षा व्यवस्था के कारण चुनाव की समय-सीमा खिसक जाए, तो हैरत नहीं होगी.

भीड़ की हिंसा बेरोकटोक जारी है, दिन-दहाड़े गोलीबारी और लिंचिंग की खबरें आ रही हैं. अवामी लीग को निशाना बनाकर राजनीतिक स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाए जा रहे हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी मई 2025की रिपोर्ट में, इसे लेकर चिंता व्यक्त की है.

सरकार ने अवामी लीग के समर्थन में होने वाली बैठकों, प्रकाशनों और ऑनलाइन भाषणों पर ‘अस्थायी प्रतिबंध’ लगा दिया है और पार्टी का पंजीकरण रद्द कर दिया गया है.

1971में इस नए देश के गठन के दबे-छिपे बचे ‘शेष पाकिस्तान’ ने भी अपना सिर उठा लिया है. और वह इसे फिर से प्रत्यक्ष या परोक्ष ‘पाकिस्तान’ बनाने की मनोकामना के साथ मैदान में कूद पड़ा है.

मुख्य दावेदार

अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोक दिए जाने के बाद, बीएनपी और इस्लामिस्ट मुख्य दावेदार हैं. अंतरिम सरकार चाहती है कि नेशनल सिटीजन्स पार्टी (एनसीपी) तीसरी ताकत के रूप में उभरे, जिसका नेतृत्व वे छात्र कर रहे हैं जिनके विरोध प्रदर्शनों के कारण हसीना सरकार गिर गई थी और अंतरिम सरकार सत्ता में आई थी.

1975के बाद अवामी लीग में भी विभाजन हुआ था, इसलिए वह 1971जैसी स्थिति में भले ही नहीं है, फिर भी वह वैचारिक और संगठनात्मक रूप से खत्म नहीं हुई है. पार्टी के पराभव के बावजूद, उसके महत्वपूर्ण नेताओं में से एक भी बीएनपी या जमात-ए-इस्लामी में शामिल नहीं हुआ है. अवामी लीग के मतदाता इस चुनाव में निर्णायक भी साबित हो सकते हैं.

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इस्लामी पार्टियाँ

यह स्पष्ट नहीं है कि इस्लामवादी पार्टियाँ चुनाव से पहले औपचारिक गठबंधन बनाएँगी या नहीं. इस्लामवादी पार्टियों की दो प्रवृत्तियाँ हैं. बांग्लादेश जमाते इस्लामी (बीजेआई) अपेक्षाकृत उदारवादी पार्टी है.

पिछले दिनों बीजेआई के मुख्य नेता (अमीर) ने हिंदू समुदायों को दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं दीं. यह ऐसा कदम है, जिसे कई रूढ़िवादी मुसलमान अनुचित या विधर्मी मानते हैं.

इसके विपरीत, इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश (आईएबी) का नेतृत्व वर्तमान व्यवस्था को अज्ञानी या बर्बर ('ज़ाहिली') मानता है. उसका लक्ष्य 'मौजूदा ज़ाहिली सामाजिक व्यवस्था को बदलना और बांग्लादेश को खिलाफत-ए-रशीदा के अनुरूप इस्लामी आदर्शों को स्थापित करना' है. ये दोनों समूह कभी एकजुट नहीं हुए हैं.

जुलाई चार्टर

अंतरिम सरकार ने 11आयोगों और राष्ट्रीय सहमति आयोग के माध्यम से सुधार एजेंडा शुरू किया है, जिसकी परिणति जुलाई के राष्ट्रीय चार्टर में हुई है, जो 84प्रस्तावों का एक व्यापक ढाँचा है जो बांग्लादेश की लोकतांत्रिक संरचना के लगभग हर पहलू को संबोधित करता है.

इस चार्टर में संविधान, चुनावी और न्यायिक व्यवस्था, और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई सहित कई सुधारों की सिफ़ारिशें शामिल हैं. हालाँकि चार्टर को व्यापक रूप से समर्थन प्राप्त है, लेकिन प्रक्रियागत अस्पष्टताओं और समय और इसे लागू करने के तौर-तरीकों पर अलग-अलग दलों के रुख के कारण इसका कार्यान्वयन अनिश्चित बना हुआ है।

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फौज की भूमिका

ब्रह्म चेलानी जैसे पर्यवेक्षक मानते हैं कि पिछले साल देश में हुए सत्ता-परिवर्तन के पीछे सेना की भूमिका थी. बांग्लादेश का कोई विरोधी देश नहीं है, फिर भी उसने दो लाख से ज़्यादा सैनिकों वाली बड़ी सेना खड़ी कर रखी है.

सेना के पास सुरक्षा की बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं है, इसलिए उसके अफसर लंबे समय से राजनीतिक चालें चलते रहे हैं. जब सेना सीधे शासन नहीं करती है, तब पाकिस्तानी सेना की तरह असैनिक सरकारों के मार्फत राजनीतिक सत्ता का गोटियाँ खेलती है.  

सेना को अमेरिकी समर्थन भी हासिल है. शेख हसीना के तख्तापलट को अमेरिका की मौन स्वीकृति थी. 2009के बाद से दुनिया भर में दो दर्जन से ज़्यादा तख्तापलट हुए हैं. इनमें से ज्यादातर की अमेरिका ने निंदा नहीं की, क्योंकि वह उन्हें अमेरिकी हितों के अनुकूल मानता है. 

आमतौर पर अमेरिका तख्तापलट की निंदा तब करता है जब वह तख्तापलट क्षेत्र में अमेरिकी शक्ति और प्रभाव के लिए हानिकारक हो. हाल में ट्रंप ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष को जिस तरह से वाइट हाउस में बुलाया, वह भी इस बात की पुष्टि करता है.

शेख हसीना ने सेना और इस्लामी उग्रवाद पर तब तक लगाम लगाए रखी, जब तक कि सेना प्रमुख ने छात्रों के नेतृत्व वाले विद्रोह का इस्तेमाल भीड़ की हिंसा को पुलिस और अर्धसैनिक बलों के नियंत्रण से बाहर जाने देकर उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए नहीं कर दिया.

पाकिस्तान-परस्ती

पिछले एक साल में बांग्लादेश के साथ संबंधों में सुधार लाने वाला एकमात्र देश पाकिस्तान है, जिसे पहले उत्पीड़क माना जाता था, जिससे बांग्लादेश ने 1971के अपने मुक्ति संग्राम के माध्यम से आज़ादी मांगी थी.

दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें फिर से शुरू हो गई हैं. पर भारत के ऊपर से होकर गुज़रे बिना, ये उड़ानें पाकिस्तान के साथ व्यापार की संभावनाओं को सीमित ही करेंगी.

इस्लामी समूहों से प्रभावित छात्र पूरी व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं. उनका दावा है कि शेख हसीना का तख्तापलट क्रांति थी, जिसने हमें संविधान को फिर से लिखने और देश की राजनीतिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करने का जनादेश दिया है.

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भारत के साथ तनाव

हर रोज़ कोई न कोई ऐसी खबर निकल कर आती है, जिससे इस नई राजनीति में भारत के प्रति दुर्भावना झलकती है. हाल में ऐसी ही एक खबर है विवादास्पद भारतीय उपदेशक ज़ाकिर नाइक की यात्रा को मंजूरी देना. हालाँकि बाद में सरकार ने कहा कि चुनाव के पहले ज़ाकिर नाइक की यात्रा की अनुमति नहीं दी है. 

इसी तरह मुहम्मद यूनुस ने हाल में एक पाकिस्तानी जनरल को एक पुस्तक भेंट की, जिसके कवर पर ऐसा नक्शा बना था, जिसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को बांग्लादेश का हिस्सा दिखाया गया है.

यह घटना पाकिस्तान के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल साहिर शमशाद मिर्जा की हाल की ढाका यात्रा के दौरान घटी. यह यात्रा 1971के मुक्ति संग्राम के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार के संकेतों के बीच हुई. अब पाकिस्तान की नौसेना के प्रमुख एडमिरल नवीद अशरफ भी वहाँ पहुँचे हैं.

पूर्वोत्तर का ज़िक्र

विश्लेषक मानते हैं कि यूनुस का बार-बार भारतीय पूर्वोत्तर का ज़िक्र करना उनके पाकिस्तान और चीन की ओर बढ़ते झुकाव को दर्शाता है.हालाँकि यूनुस ने नक्शे के प्रकरण पर सफाई दी है कि वह देश में पिछले साल हुए आंदोलन के दौरान दीवारों पर की गई चित्रकारी का एक नमूना था, पर प्रतीक रूप में ही उसका पाकिस्तानी फौजी जनरल को समर्पित किया जाना, काफी मायने रखता है.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के बारे में टिप्पणी की है. अप्रैल 2025में अपनी चीन यात्रा के दौरान, उन्होंने बांग्लादेश को इस क्षेत्र के लिए ‘समुद्र का एकमात्र संरक्षक’ बताते हुए कहा था, ‘भारत के सात राज्य, भारत का पूर्वी भाग... चारों ओर से ‘स्थल-रुद्ध’ क्षेत्र हैं. उनके पास समुद्र तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं है.’

बढ़ता अविश्वास

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ का मुद्दा, लंबे समय से दोनों देशों के लिए परेशानी का सबब रहा है. शेख हसीना की सरकार होने के कारण दोनों ने इन परेशानियों को सुलझाने की कोशिश की थी. पर अब दोनों तरफ से अविश्वास है.

पिछले तीन दशकों से भारत के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंधों के कारण सीमाएँ खुलने से बांग्लादेश को व्यापार के लिए अतिरिक्त भूमि और समुद्री मार्ग उपलब्ध हुए थे, जो अब प्रभावित हो रहे हैं. हालाँकि बिजली आयात के लिए बांग्लादेश-भारत-नेपाल त्रिपक्षीय समझौता अभी लागू है, पर भविष्य को लेकर आशंकाएँ ही हैं.

पिछले साल दिसंबर में बांग्लादेश ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा को खत्म कर दिया था. अब भारत ने अपनी तकनीक से पूर्वोत्तर को इंटरनेट से अच्छी तरह जोड़ लिया है. उधर भारत ने बांग्लादेश के साथ एक ट्रांसशिपमेंट समझौता खत्म कर दिया है.

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भारतीय चिंता

भारत ने हाल में सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए बांग्लादेश सीमा पर तीन नए फौजी बेस स्थापित किए हैं. सिलीगुड़ी कॉरिडोर को चिकेंस नेक के नाम से भी जाना जाता है. यह मुख्य भूमि भारत को इसके सात पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ने वाली 22किलोमीटर चौड़ी महत्वपूर्ण पट्टी है.

हाल में खबर आई है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास स्थित लालमोनिरहाट एयरबेस पर बांग्लादेश, एक नई वायुरक्षा रेडार प्रणाली स्थापित करने की योजना पर काम कर रहा है. ऐसा भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान की खुफिया आपत्तियों के बावजूद हो रहा है.

बांग्लादेश ने चीनी रक्षा कंपनियों के साथ अपने सैन्य-तकनीकी सहयोग को और गहरा किया है. बांग्लादेश के फौजी अधिकारियों ने 13मई को चाइना वैनगार्ड कंपनी लिमिटेड के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और चीन निर्मित प्रणालियों की खरीद पर चर्चा की.

इनमें एचक्यू-17 एई कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, जेएसजी शृंखला के लक्ष्य पहचान रेडार और एफके-3मध्यम दूरी की सैम मिसाइलें शामिल हैं.

तुर्की में बने टीआरजी-300कैप्लान मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम की तैनात किए जा चुके हैं. चीनी एसवाई-400कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल की खरीद की बात चल रही है.

इसी घटनाक्रम के बरक्स रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अंतरिम मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस को ‘अपने शब्दों पर ध्यान देने’ की चेतावनी दी है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता नहीं देखना चाहता.

वर्तमान सरकार को जनता ने नहीं चुना है, बल्कि वह सेना की सहायता से कब्ज़ा करके आई है. ऐसे में चुनाव ज़रूरी हैं, ताकि बांग्लादेश की जनता का राय सामने आए.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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