हरजिंदर
अच्छा अर्थशास्त्र अक्सर अच्छी राजनीति नहीं होता- राजनीति और अर्थशास्त्र दोनों में ही यह मुहावरा अक्सर कईं तरह से तोड़-मोड़ कर सुनाया जाता है. फिलहाल पुरानी पेंशन योजना को लेकर देश भर में जो राजनीति चल रही है, वह इसी मुहावरे पर मुहर लगाती दिख रही है.
इस समय दो राज्यों हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव चल रहे हैं. दोनों जगह विरोधी दल पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने की बात कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी तो इसे लेकर कुछ ज्यादा ही उछाल मार रही है. अपने चुनावी वादे में प्रामाणिकता डालने के लिए पार्टी की पंजाब सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की घोषणा भी कर दी है.
कांग्रेस पहले ही ऐसी घोषणाएं राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में कर चुकी है, इसलिए वह भी बार-बार इन राज्यों का जिक्र कर रही है, दरअसल, इस पूरे सिलसिले की शुरुआत ही राजस्थान से हुई. वहीं सबसे पहले पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने की घोषणा हुई थी.
इस सबने भारतीय जनता पार्टी के समाने बहुत नहीं पर कुछ दिक्कत तो खड़ी की ही है. भाजपा के लिए दिक्कत इसलिए भी बड़ी है कि पुरानी पेंशन योजना को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय ही खत्म किया गया था.
इसकी जगह नई पेंशन योजना की घोषणा हुई थी. अब अपनी ही पार्टी की लागू की गई योजना को इस तरह वापस लेना उसके लिए आसान नहीं है. खासकर जब तबसे अब तक इसे पार्टी की एक उपलब्धि और आर्थिक सुधारों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के तौर पर पेश किया जाता रहा हो.
वैसे, भाजपा इसे लेकर चिंतित भी नहीं दिखाई दे रही. उसे नहीं लगता कि इसका कोई ज्यादा मजबूत गणित है. ठीक यही वादा उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने किया था. इस वादे के बावजूद वह चुनाव जीतने में नाकाम रही थी.
आंकड़ों को देखें तो ऐसा नहीं लगता कि यह वादा बहुत ज्यादा असर दिखा सकता है. राजस्थान ने सबसे पहले पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की घोषणा की थी, इसलिए उसी प्रदेश के आंकड़ों को देखते हैं.
राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों की संख्या छह लाख के करीब है. इसमें कुछ पुराने कर्मचारी ऐसे भी हैं जो अभी भी पुरानी पेंशन योजना का लाभ ही ले रहे हैं, पर फिलहाल हम इस अंतर को छोड़ देते हैं. हम सीधे से मान लें कि सरकार के इस फैसले छह लाख कर्मचारी लाभान्वित हो रहे है, तो इसका अर्थ यह होगा कि यह लाभ उनके परिवार के लोगों को भी मिल रहा है.
अगर हम औसत एक परिवार में वोटरों की संख्या पांच मान लें तो इसका अर्थ हुआ कि इस फैसले से तीस लाख वोटर प्रभावित होंगे. राजस्थान में मतदाताओं की कुछ संख्या चार करोड़ से भी ज्यादा है. इस लिहाज से तीस लाख मतदाता कोई बहुत बड़ी संख्या नहीं है कि जिसके जरिये बहुत बड़ी उम्मीद बांधी जाए. लेकिन विपक्ष को लगता है कि कांटे की टक्कर हुई तो इतने वोट भी निर्णायक साबित हो सकते हैं.
इस गणित से अलग अगर हम सिर्फ राजनीति की बात करें तो पुरानी पेंशन योजना के नाम पर विपक्षी दलों को एक ऐसा मुद्दा मिल गया है जिसके सामने भारतीय जनता पार्टी निरुत्तर दिखाई देती है. राजनीति में ऐसे दांव भी अक्सर बड़ा असर दिखाते हैं.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )