सावन की चूड़ियों में झलकती है भारत की एकता

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 11-07-2025
Tradition of green bangles in Sawan: This greenery is not only a symbol of marital bliss, it is the colour of Hindu-Muslim unity
Tradition of green bangles in Sawan: This greenery is not only a symbol of marital bliss, it is the colour of Hindu-Muslim unity

 

अर्सला खान/नई दिल्ली

भारत में जब जुलाई का महीना सावन की फुहारों के साथ दस्तक देता है, तो हर दिशा में हरियाली बिखर जाती है—पेड़ों पर, खेतों में, और महिलाओं के हाथों में हरी चूड़ियों के रूप में. खासकर उत्तर भारत, मध्य भारत और महाराष्ट्र में सावन का महीना न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रंगों से भी सराबोर होता है.

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सावन में हरी चूड़ियां पहनने की परंपरा सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि यह भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की भी मिसाल है?
 
 
हरी चूड़ियां: सिर्फ एक रंग नहीं, भावना है

सावन के महीने में महिलाएं विशेष रूप से हरे रंग के वस्त्र, चूड़ियां और बिंदियां पहनती हैं. इसे सुहाग का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि हरा रंग समृद्धि, शांति और उर्वरता का प्रतीक है. यही वजह है कि विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए हरियाली तीज और सोमवार के व्रत के दौरान हरे वस्त्र धारण करती हैं और हरी चूड़ियां पहनती हैं.
 
 
हालांकि, इस सांस्कृतिक अभ्यास की सुंदरता तब और निखर कर सामने आती है जब मुस्लिम महिलाएं भी अपने हिंदू पड़ोसियों की खुशियों में शामिल होकर उन्हें हरी चूड़ियां पहनाती हैं. कहीं मोहल्ले की शबनम अपने पड़ोस की रमा को चूड़ियां पहना रही होती है, तो कहीं नाज़िया और संगीता सावन के गीतों पर साथ झूला झूल रही होती हैं. ठीक इसी तरह वाराणसी की अंशु त्रिपाठी कहती हैं, 'हमारे घर में हर साल सावन के पहले सोमवार को नज़मा आपा आती हैं और मेरी मां को हरी चूड़ियां पहनाती हैं. ये एक रस्म नहीं, दिलों का रिश्ता है.'
 
सावन में उभरती गंगा-जमुनी तहज़ीब

दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके की रहने वाली नसीम फातिमा बताती हैं, 'बचपन से देखती आ रही हूं कि हमारी अम्मी हर सावन में अपनी हिंदू सहेलियों के लिए हरी चूड़ियां लाती थीं. अब मैं भी यही करती हूं'. सावन के मेले हों या तीज की शाम, हम सब मिलकर त्योहार मानते हैं. यह परंपरा इस बात का प्रमाण है कि त्योहारों की असली खूबसूरती उनकी धार्मिकता में नहीं, बल्कि उनमें छुपे इंसानियत के रंग में होती है और इतना ही नहीं भले ही ये त्योहार हिंदुओं का हो, लेकिन इस त्योहार में चार चांद लगाते हैं हमारे देश के मुस्लिम व्यापारी. भारत में लाखों मुस्लिम व्यापारी हिंदू बहनों को इस त्योहार पर चुड़ियां पहनाते हैं, जो देश की एकता का सबसे बड़ा प्रमाण है.
 
 
सावन के दिनों में बाजार हरे रंग की चूड़ियों से भर जाते हैं. इन चूड़ियों की ज्यादातर दुकानें मुस्लिम व्यापारियों की होती हैं. चूड़ियों को तैयार करने, उन्हें पैक करने और सजाने का काम विभिन्न समुदायों के लोग मिलकर करते हैं. यह भी भारत के सामाजिक समरसता का एक जीवंत उदाहरण है. हैदराबाद के लाड बाजार से लेकर जयपुर की चौड़ी चौपड़ तक, हर साल सावन में लाखों हरी चूड़ियां बनती और बिकती हैं, जिनके पीछे कोई धर्म नहीं, केवल मेहनत और साझा खुशी होती है.
 
सावन का प्रतीक बन चुका है मेल-जोल

सावन के दौरान कई जगहों पर तीज मिलन और चूड़ी उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जिनमें सभी समुदाय की महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं. नाच-गाना, मेहंदी और चूड़ियां बांटने की रस्मों में धर्म की दीवारें टूट जाती हैं और एक रंगीन, मधुर समरसता जन्म लेती है. आज जब समाज में धार्मिक आधार पर भेदभाव की घटनाएं सुर्खियां बनती हैं, तब सावन जैसी परंपराएं हमें याद दिलाती हैं कि हमारी जड़ें कितनी गहरी और मजबूत हैं. 
 
 
हरी चूड़ियों का ये पर्व किसी एक धर्म या समुदाय का नहीं, बल्कि साझेपन का, मेल-जोल का और इंसानियत का पर्व बन चुका है. सावन में हरी चूड़ियां पहनना सिर्फ एक धार्मिक या सामाजिक परंपरा नहीं, बल्कि यह वह सेतु है जो दिलों को जोड़ता है. यह वह कड़ी है जो हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच सदियों पुराने विश्वास और सौहार्द को न केवल जीवित रखती है, बल्कि हर साल और मजबूत करती है.
 
हिंदू धर्म में क्या है इसका महत्व?

सावन का महीना हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है. यह माह शिव भक्ति, हरियाली और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है. सुहागिन महिलाएं इस दौरान विशेष रूप से हरी चूड़ियां पहनती हैं, क्योंकि हरा रंग जीवन, समृद्धि, सौभाग्य और उर्वरता का प्रतीक होता है. ऐसा माना जाता है कि हरी चूड़ियां पहनने से पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है.
 
 
सावन में हरियाली तीज, मंगला गौरी व्रत और शिव पूजा के दौरान भी हरे वस्त्र, चूड़ियां और बिंदियां पहनने की परंपरा है. यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि सामाजिक मेलजोल और स्त्री सौंदर्य की अभिव्यक्ति का भी हिस्सा है. सावन 2025 की शुरुआत 10 जुलाई (गुरुवार) से हो रही है और यह समाप्त होगा 8 अगस्त (शुक्रवार) को. इस दौरान चार सोमवार आएंगे, जिन्हें "सावन सोमवार" कहा जाता है, और शिव भक्ति के लिए विशेष महत्व रखते हैं.
 
इस सावन जब आप अपनी कलाई में हरी चूड़ियां पहनें, तो उसे सिर्फ एक गहना न समझें—वह एक संदेश है, जो कहता है: "हम सब एक हैं. हमारे त्योहार भी हमारी खुशियां भी"