अर्चना वर्मा
भारत की अर्थव्यवस्था में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) एक मजबूत स्तंभ की भूमिका निभा रहे हैं. ये न केवल देश के सबसे बड़े रोज़गार प्रदाताओं में से हैं, बल्कि स्थानीय विकास, नवाचार, और समावेशी आर्थिक वृद्धि के भी प्रमुख वाहक हैं. देश में एमएसएमई क्षेत्र लगभग 30%जीडीपी में योगदान देता है और 11 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका देता है. इसके बावजूद, यह क्षेत्र आज वित्तीय पहुंच, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, बुनियादी ढांचे की समस्याएं, और नीतिगत समर्थन के अभाव जैसी कई गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है.
इंडियापी2पी की सीईओ नेहा जुनेजा ने एमएसएमई की स्थिति पर बोलते हुए कहा कि ये क्षेत्र आज राष्ट्रीय समृद्धि का आधार हैं. हालांकि, उन्हें समय पर और सुलभ ऋण नहीं मिलने के कारण विकास की गति बाधित हो रही है. उनके अनुसार, एक मजबूत एमएसएमई केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन के लिए भी आवश्यक है.
‘द हेल्दी इंडियन प्रोजेक्ट’ की संस्थापक सुदीप्ता सेनगुप्ता का मानना है कि एमएसएमई के कर्मचारियों का स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र में होना चाहिए. अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा, सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं और कल्याण कार्यक्रमों से न केवल श्रमिकों का जीवन स्तर सुधरेगा, बल्कि उत्पादकता में भी बढ़ोत्तरी होगी.
ग्रीनवे ग्रामीण के सह-संस्थापक अंकित माथुर ने एमएसएमई की स्थानीय नवाचार शक्ति की सराहना की और कहा कि यह क्षेत्र जमीनी स्तर पर सतत विकास को सक्षम करता है. उनके अनुसार, लोगों, पूंजी, और विचारों से गहराई से जुड़े रिश्ते ही एमएसएमई को बदलते समय में प्रतिस्पर्धी बनाए रख सकते हैं.
आरआईआईडीएल सोमैया विद्याविहार यूनिवर्सिटी के गौरांग शेट्टी ने बताया कि कम लागत वाले प्रोटोटाइप, बाज़ार परीक्षण और छात्र नवाचारों की मदद से एमएसएमई को स्थायी रूप से बढ़ने में सहायता मिल सकती है. FY2024-25में देश में 63मिलियन से अधिक सक्रिय एमएसएमई थे, जो भारत के कुल निर्यात में 45%योगदान कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने भी एमएसएमई दिवस 2025के अवसर पर एक महत्वपूर्ण वक्तव्य जारी किया। बयान में कहा गया कि एमएसएमई विशेष रूप से महिलाओं, युवाओं और हाशिए पर खड़े समुदायों के लिए रोज़गार, आय और स्थानीय विकास का आधार हैं. हालांकि, वे ऋण, कानूनी मान्यता, बुनियादी सुविधाओं और नीतिगत समर्थन की कमी जैसी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने इस बात पर भी बल दिया कि आज के वैश्विक संकट—राजनीतिक अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन, और डिजिटल बदलाव—एमएसएमई की जीवंतता को और कठिन बना देते हैं. आपूर्ति श्रृंखला में अवरोध, बढ़ती लागतें और अस्थिर बाज़ार इन्हें विशेष रूप से संवेदनशील बना रहे हैं, जबकि वैश्विक वित्तीय सहायता में अभी भी बड़ी खाई है.
भारत सरकार और नीति निर्माताओं को यह समझने की ज़रूरत है कि एमएसएमई के सशक्तिकरण के बिना आत्मनिर्भर भारत का सपना अधूरा है. इनके लिए सहज वित्तीय पहुंच, नीतिगत संरक्षण, डिजिटल रूपांतरण में मदद, और स्थानीय से वैश्विक बाज़ार तक पहुंच को सुनिश्चित करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है. जब तक एमएसएमई को अनुकूल माहौल नहीं मिलेगा, तब तक भारत की समावेशी और स्थायी विकास की परिकल्पना भी अधूरी रहेगी.