हरजिंदर
यह ठीक है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा सुर्खियां भी बटोर रही है और कईं जगह पर उसे तारीफ भी मिल रही है. कांग्रेस के और खासकर राहुल के विरोधियों का भी इससे मुंह बंद हुआ है. लेकिन इन सबसे उन आलोचनाओं को नहीं रोका जा सकता जो इस समय कांग्रेस के हिस्से आनी ही थी.
इस समय हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और कुछ ही दिन में गुजरात विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया भी शुरू होने वाली है. लगता है कि भारत जोड़ो यात्रा के उत्साह में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने इन दोनों ही राज्यों के चुनावों को भुला दिया है.
यात्राएं और जमीनी सक्रियता अपनी जगह है लेकिन राजनीति अंत में चुनाव जीतने की पुरजोर कोशिश का ही नाम है.प्रियंका गांधी जरूर पिछले दिनों हिमाचल चुनाव प्रचार की शुरुआत करने सोलन गईं थीं.
इसके अलावा कोई पार्टी का कोई बड़ा चेहरा इन राज्यों में नजर नहीं आ रहा. जबकि भारतीय नजता पार्टी को तो छोड़िये आम आदमी पार्टी तक ने गुजरात में अपना पूरा अमला ही उतार दिया है.
हिमाचल में भले ही आम आदमी पार्टी ने अपनी मौजूदगी को कम कर दिया है, लेकिन अपने सारे संसाधन गुजरात में झोंक दिए हैं. पर कांग्रेस के दिग्गज इन दोनों ही राज्यों से गायब हैं.
नई दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में बड़ी समस्या यह नहीं है कि बड़े नेता इन राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए नहीं जा रहे. बड़ी समस्या यह है कि बड़े नेताओं की इस गैरहाजिरी की व्याख्या कैसे की जाए.
राजनीति में अपनी खामियों को भी अपनी खूबी की तरह पेश करने का चलन रहा है. इसके पहले कि पार्टी के थिंक टेंक, उसके बुद्धिजीवी और उससे नजदीकियां रखने वाले पत्रकार कोई व्याख्या ढूंढ पाते उनकी मदद के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए.
पिछले दिनों गुजरात के आणंद जिले में हुई एक जनसभा में प्रधानमंत्री ने भापजा कार्यकर्ताओं से कहा कि उपर से देखने में लगता है कि कांग्रेस इस बार सक्रिय नहीं है लेकिन वह गुपुचप ढंग से गांवों और कस्बों में जाकर लोगों को भाजपा के खिलाफ वोट देने के लिए प्रेरित कर रही है.
इस बात को कहने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का चाहे जो भी मकसद रहा हो लेकिन उनके इस बयान ने कांग्रेस को अपनी मौजूदा स्थिति को जायज ठहराने का एक तर्क दे दिया.
अब कांग्रेस के सारे नेता, सारे प्रवक्ता, सारे बुद्धिजीवी सभी यह कह रहे हैं कि कांग्रेस के बड़े नेताओं का इन राज्यों में प्रचार के लिए न जाना उसकी कोई खामी नहीं बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है.
कांग्रेस की एक दिक्कत यह भी है कि वह इस समय इस समय ऐसी स्थिति में नहीं है कि उसके बड़े नेता भारी संख्या में इन राज्यों के तूफानी दौरे कर सकें. पार्टी लंबे समय से सत्ता से बाहर है और इस वजह से उसका सारा खजाना खाली है.
जहां तक चंदे का सवाल है देश का 90 फीसदी से ज्यादा राजनीतिक चंदा इस समय भारतीय जनता पार्टी की झोली में जा रहा है. इसलिए प्रचार के मैदान में कांग्रेस किसी भी तरह से भाजपा का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है.
उसके लिए अच्छा यही है कि वह प्रचार की ज्यादा जिम्मेदारी स्थानीय नेताओं और उम्मीदवारों पर ही छोड़ दे. यही हो भी रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का इशारा भी शायद इसी ओर ही था.
इस बीच कांग्रेस मुख्यालय के सूत्रों ने इस तरह के संकेत देने जरूर शुरू किए हैं कि सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जल्द ही हिमाचल का दौरा करने वाले हैं. यह भी कहा जा रहा है कि हो सकता है राहुल गांधी भी भारत जोड़ों यात्रा में छुट्टी के दिन हिमाचल और गुजरात का दौर करें.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )