आवाज द वाॅयस / भोपाल
जब एक महिला को अपनी पुश्तैनी ज़मीन बचाने के लिए अदालतों और दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ें, जब तमाम कानूनी दस्तावेज़ों के बावजूद उसे सिर्फ उसके धर्म, उसकी पहचान और उसके अकेलेपन की वजह से डराया-धमकाया जाए — तो यह सिर्फ एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं होती, बल्कि पूरी न्याय व्यवस्था पर एक करारा सवाल बन जाती है.मध्यप्रदेश की शमीम बानो आज इसी अन्याय के खिलाफ एक लंबा, साहसिक और संघर्षपूर्ण रास्ता तय कर रही हैं.
शमीम बानो का गुनाह सिर्फ इतना है कि वह एक मुसलमान महिला हैं.उस ज़मीन की कानूनी वारिस हैं जिस पर धार्मिक दबदबे और वक्फ माफिया की बुरी नज़रें हैं.यह वही ज़मीन है, जिसकी 1935में उनके दादा मोहम्मद हाफिज़ के नाम पर रजिस्ट्री हुई थी — उज्जैन की गली नंबर 3, खैरदियामान, तोपखाना में स्थित 4000स्क्वायर फीट का प्लॉट, जिसका हर दस्तावेज़ — रजिस्ट्रेशन, म्युटेशन और टैक्स रसीदें उनके पास मौजूद हैं.
अब इसी ज़मीन के 1800 स्क्वायर फीट हिस्से पर एक काल्पनिक ‘मस्जिद खैर’ के नाम पर कब्ज़ा कर लिया गया है.न कोई पुराना धार्मिक ढांचा, न इबादत, न वक्फ रिकॉर्ड — सिर्फ दावा, दबाव और दस्तावेज़ी धोखाधड़ी.मामला और भी गंभीर तब हो गया जब शमीम बानो के नाम से एक फर्ज़ी डोनेशन डीड तैयार कर ली गई, जिसमें उनके झूठे हस्ताक्षर दिखाकर ज़मीन को वक्फ संपत्ति बताया जा रहा है.
शमीम बानो ने जब अपनी आवाज़ दिल्ली तक पहुंचाई, तो उन्हें सहारा मिला मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की राष्ट्रीय संयोजक डॉ. शालिनी अली से.डॉ. शालिनी ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्हें मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार से मिलवाया.ये सिर्फ एक मुलाक़ात नहीं थी, बल्कि एक अन्याय के खिलाफ न्याय की लौ थी जो लगातार सिस्टम की बेरुख़ी से बुझ रही थी.
इंद्रेश कुमार ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "शमीम बानो अकेली नहीं हैं.जिस वक्फ को बेसहारा मुसलमानों के हक़ के लिए बनाया गया था, वह अगर आज महिलाओं की संपत्ति हड़पने का औजार बन जाए, तो यह अस्वीकार्य है। वक्फ का मकसद सेवा है, कब्ज़ा नहीं."
उन्होंने आगे जोड़ा, "यह उज्जैन की एक महिला की लड़ाई नहीं, उन हजारों लोगों की आवाज़ है जो धर्म के नाम पर दबाए जा रहे हैं.हमें मिलकर वक्फ संशोधन क़ानून को ईमानदारी से लागू करवाना होगा ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही कायम हो सके."
इंद्रेश कुमार ने मंच की ओर से भरोसा दिलाया,"अब कोई महिला अकेली नहीं लड़ेगी.न ही कोई अधिकारी या मौलाना क़ानून से ऊपर समझा जाएगा.पूरी जांच करवाई जाएगी और मंच हर प्रकार की सहायता — कानूनी, सामाजिक और प्रशासनिक — प्रदान करेगा."
इस पूरे मामले में वक्फ बोर्ड की चुप्पी सबसे ज्यादा चिंताजनक है.क्या वक्फ बोर्ड अब "वक्फ माफिया बोर्ड" बन गया है? एक महिला को धमकी देकर चुप कराने की कोशिश की जा रही है कि "मस्जिद के खिलाफ बोलना हराम है." ये सिर्फ शमीम बानो की ज़मीन का सवाल नहीं, ये उस मौन मजलूम समाज की चेतावनी है जो कागज़ होने के बावजूद खामोश रहने को मजबूर किया जा रहा है.
डॉ. शालिनी अली ने साहसपूर्वक इस पीड़ा को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाया.उन्होंने कहा, "धर्म या संस्था की आड़ में किसी भी महिला को उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता.मुस्लिम राष्ट्रीय मंच हर उस महिला के साथ खड़ा है जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है."
शमीम बानो ने सरकार के समक्ष चार अहम मांगें रखी हैं:
फर्ज़ी डोनेशन डीड की न्यायिक व फॉरेंसिक जांच कर दोषियों को गिरफ़्तार किया जाए.
शमीम बानो और उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए.
जहां अवैध निर्माण और कब्ज़ा हुआ है, वहां त्वरित प्रशासनिक कार्रवाई हो.
वक्फ बोर्ड की भूमिका की स्वतंत्र जांच कर दोषी अधिकारियों को दंडित किया जाए.
यह सिर्फ एक महिला की ज़मीन का मामला नहीं है, बल्कि ये उस चेतना का आह्वान है जो कह रही है — अगर आज भी हम नहीं जागे, तो कल हर गली में यह अन्याय पसर जाएगा.अब फैसला सरकार, प्रशासन और समाज के ज़मीर को करना है — क्या वे इस अन्याय के खिलाफ खड़े होंगे, या चुप्पी के सहभागी बनेंगे?