देस-परदेस : बाइडेन-यात्रा जैसा ही महत्वपूर्ण है, मैक्रों का गणतंत्र-सम्मान

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 25-12-2023
Country Macron's republican honor is as important as Biden's visit
Country Macron's republican honor is as important as Biden's visit

 

permodप्रमोद जोशी

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यात्रा रद्द होने के बाद देश के गणतंत्र-दिवस समारोह में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के आगमन की घोषणा के भी राजनयिक-निहितार्थ हैं. वहाँ की आंतरिक-राजनीति में भारत के प्रति नकारात्मक भावनाएं वैसी नहीं हैं, जैसी अमेरिका में हैं.

बाइडेन का कार्यक्रम रद्द होने में जहाँ अमेरिका के राजनीतिक-अंतर्विरोधों की भूमिका है, वहीं मैक्रों के दौरे का मतलब है भारत-फ्रांस रिश्तों का एक और पायदान पर पहुँचना. मैक्रों के दौरे की इस त्वरित-स्वीकृति से भारत के डिप्लोमैटिक  कौशल की पुष्टि भी हुई है. 
 
त्वरित-स्वीकृति

फ्रांस में भारत के राजदूत जावेद अशरफ ने जिस तेजी से समय के रुख को पहचानते हुए मैक्रों के दौरे की पुष्टि कराने में सफलता प्राप्त की है, वह उल्लेखनीय है. मैक्रों की इस यात्रा से नरेंद्र मोदी को बास्तील-दिवस परेड की प्रतिध्वनि आ रही है.
 
राष्ट्रपति मैक्रों गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने वाले छठे फ्रांसीसी नेता होंगे. फ्रांस एकमात्र देश है, जिसके नेताओं को इतनी बार गणतंत्र दिवस परेड का मुख्‍य अतिथि बनाया गया है.
गणतंत्र दिवस की आगामी परेड इसलिए विशेष है, क्योंकि उसमें केवल महिलाएं शामिल होंगी.
 
भारत सरकार ने इस अवसर पर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को आमंत्रित किया था, लेकिन उन्होंने असमर्थता जताई. संभवतः बाइडेन अगले साल के ‘स्टेट ऑफ द यूनियन' संबोधन में हमस-इजराइल संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.
 
रिश्तों की गहराई

फ्रांसीसी राष्ट्रपति के दौरे से यह बात स्पष्ट होगी कि भारत और फ्रांस के रिश्तों की गहराई क्रमशः बढ़ती जा रही है और यूरोप में वह हमारा सबसे बड़ा मित्र देश है. यह दूसरा मौका होगा, जब अमेरिकी राष्ट्रपति का दौरा रद्द होने पर उनका स्थान फ्रांस के नेता लेंगे. 
 
1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड ने अपनी भारत यात्रा स्थगित कर दी थी. पश्चिम में भारत के प्रति कटुता बढ़ रही थी, इसके बावजूद जनवरी 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री याक शिराक गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि बनकर आए. 
 
शिराक के बाद निकोलस सरकोज़ी, फ्रांस्वा होलां से लेकर इमैनुएल मैक्रों तक सभी राष्ट्रनेताओं ने भारत के साथ रिश्ते बनाकर रखे है. भारत के गणतंत्र समारोह में फ्रांस के छह राष्ट्रनेता भाग ले चुके हैं. किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्षों की यह सबसे बड़ी संख्या है. 
 
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मोदी की यात्रा

इस वर्ष, भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस साल 14 जुलाई को पेरिस में आयोजित ‘बास्तील डे परेड' में सम्मानित अतिथि के रूप में भाग लिया था. यह कार्यक्रम फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस समारोह का हिस्सा है. 
 
मैक्रों सितंबर में नई दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने आए थे. दोनों देशों के बीच राजनयिक और खासतौर से रक्षा-सहयोग हाल के वर्षों में काफी बढ़ा है. वस्तुतः रूस का साथ क्रमशः छूटने के दौर में अब भारत को फ्रांस का तकनीकी सहारा मिल रहा है. 
 
रक्षा मंत्रालय ने जुलाई महीने में ही फ्रांस से (नौसेना के इस्तेमाल के लिए) 26 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने को मंजूरी दी थी, जिनकी तैनाती देश में ही निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर की जाएगी.
 
रक्षा-तकनीक

रूस के बाद इस समय  भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा सप्लायर फ्रांस है. भारतीय वायु सेना में पहली पीढ़ी के दासो ऑरैगां (तूफानी) लड़ाकू विमानों से लेकर हाल में पनडुब्बी और राफेल-एम सौदे तक भारत ने फ्रांस से कई हाई-टेक रक्षा सामग्री की खरीद की है. 
 
इनमें स्कोर्पिन क्लास पनडुब्बी, मिराज-2000 लड़ाकू विमान और राफेल लड़ाकू विमान प्रमुख हैं. इनके अलावा मिस्टीयर, एलीज़ एल्वेत्त, जैगुआर (एंग्लो-फ्रेंच) विमान इस सहयोग के गवाह हैं. तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से फ्रांस ‘मेक इन इंडिया’ और आधुनिकीकरण में सहायता कर रहा है.
 
एमआरएफए कार्यक्रम

ऐसे संकेत भी हैं कि भारत के मीडियम रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) कार्यक्रम के तहत 114 लड़ाकू विमानों की खरीद में भारतीय वायुसेना का झुकाव फ्रांस के दासो राफेल की ओर हो रहा है. इसके पहले वायुसेना के लिए 36 राफेल के साथ यह संकेत पहले ही मिल चुका था, नौसेना ने भी अपने लिए राफेल-एम (मैरीटाइम) को चुना. 
 
भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के स्क्वॉड्रनों की संख्या कम होती जा रही है. यदि राफेल विमानों पर सहमति बनी, तो वायुसेना की आक्रामक क्षमता में सुधार होगा. एमआरएफए के तहत 18 विमान तैयारशुदा लिए जाएंगे और 96 विमान भारत में किसी स्ट्रैटेजिक-पार्टनरशिप के तहत बनाए जाएंगे. एक कयास है कि 114 के बजाय यह संख्या 200 भी हो सकती है. 
 
एमआरएफए के लिए फ्रांस के दासो राफेल के अलावा यूरोफाइटर (टायफून), स्वीडन का साब ग्रिपन-ई, रूस का मिग-35 और सुखोई-35 और अमेरिका के एफ/ए-18 तथा एफ-15ईएक्स तथा अपग्रेडेड एफ-21 विमान प्रतियोगिता में हैं. यूक्रेन युद्ध को देखते हुए रूसी प्रस्ताव को लेकर आशंकाएं है. 
 
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2047 तक का रोडमैप

जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों के बीच वार्ता के बाद जो संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया है, उसमें 2047 तक दोनों देशों के सहयोग के रोडमैप का उल्लेख है. इसमें खासतौर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त-कार्रवाई का रोडमैप है. 
 
विश्व-शांति की दिशा में और हिंद-प्रशांत क्षेत्र और उससे भी आगे नियम-आधारित व्यवस्था की स्थापना के लिए दोनों देश मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध हैं. दोनों देशों ने कहा है कि  न्यू कैलेडोनिया और फ्रेंच पॉलीनीशिया के फ्रांसीसी क्षेत्रों की भूमिका के साथ प्रशांत क्षेत्र में 
 
अपना सहयोग देंगे. 

दोनों देशों के सहयोग में हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र में स्थित फ्रांसीसी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. फ्रांस एकमात्र देश है, जिसके साथ मिलकर भारत इस इलाके में गश्त का काम करता है. 
 
त्रिपक्षीय सहयोग

फरवरी 2023 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ और सितंबर 2020 में ऑस्ट्रेलिया के साथ के हुए संवाद के संदर्भ में त्रिपक्षीय सहयोग का उल्लेख करते हुए संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान विचार वाले पक्षों के साथ सहयोग एक महत्वपूर्ण कार्य होगा. 
 
अंतरिक्ष-अनुसंधान एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है. फ्रांस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि फ्रांस के संगठन सीएनईएस और भारत के इसरो के बीच वैज्ञानिक और व्यावसायिक सहयोग बढ़ाया जा रहा है.
 
इसमें रियूज़ेबल लॉन्च, संयुक्त अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट, तृष्णा (थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग सैटेलाइट फॉर हाई रिजॉल्यूशन नेचुरल रिसोर्स असेसमेंट), हिंद महासागर के ऊपर मैरीटाइम सर्विलांस सैटेलाइट्स के कांस्टिलेशन के पहले चरण और अंतरिक्ष में विचरण कर रहे दोनों देशों के उपग्रहों के टकराव के जोखिम को रोकने के काम शामिल हैं. 
 
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पेस आधारित मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (एमडीए) का भी उल्लेख किया. क्वाड ने भी समान विचारों वाले देशों के साथ एमडीए पर काम करने की घोषणा की है. इन सरकारी सहयोग कार्यक्रमों के अलावा इस साल फरवरी में एयर इंडिया ने 250 एयर बस खरीदने का जो समझौता किया है, वह कम महत्वपूर्ण नहीं है. 
 
रिश्तों की पृष्ठभूमि

भारत और फ्रांस के रिश्ते इतने अच्छे क्यों हैं? बहुत पीछे जाने से पहले 1998 के नाभिकीय परीक्षणों को याद करें. भारतीय विदेश-नीति के रूपांतरण में नाभिकीय-विस्फोटों की महत्वपूर्ण भूमिका है.
 
उसके पहले तक भारत की वैश्विक भूमिका, केवल आदर्शों में थी. आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में नहीं. उन विस्फोटों के साथ भारत ने अपनी ‘स्वतंत्र विदेश-नीति’ की घोषणा की थी. परिणामतः दुनियाभर ने हमारी आलोचना शुरू कर दी. अमेरिका, जापान, कनाडा और ब्रिटेन ने तो पाबंदियाँ लगा दीं. रूस जैसे मित्र ने भी हमारी निंदा की.  
 
1998 में जब विश्व के ताकतवर देश परमाणु परीक्षण से नाराज होकर भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे थे, फ्रांस ने पाबंदियों से इनकार ही नहीं किया, भारत के साथ रणनीतिक-वार्ता और सामरिक हिस्सेदारी स्थापित करने वाला पहला देश बना. 
 
मौके पर मददगार

तत्कालीन वैश्विक-शक्तियों में फ्रांस पहला ऐसा देश था, जिसने भारत के कदम का समर्थन किया. जनवरी 1998 में राष्ट्रपति याक शिराक ने भारत को वैश्विक नाभिकीय-व्यवस्था से बाहर रखे जाने को गलत बताया और कहा था कि इसे बदलने की जरूरत है.
 
उस परिघटना के कम से कम दो दशक पहले 1976 में फ्रांस के तत्कालीन प्रधानमंत्री (और बाद में राष्ट्रपति) याक शिराक ने कहा था कि भारत बहुत महत्वपूर्ण देश है.अमेरिका ने जब 2008 में ‘न्यूक्लियर डील’ किया, तब दुनिया ने इस बात को स्वीकार किया, पर फ्रांस का दृष्टिकोण उसके पहले से भारत के पक्ष में था. अमेरिका के न्यूक्लियर डील के समांतर फ्रांस का ‘न्यूक्लियर डील’ भी 2008 में हुआ था. 
 
उसके बाद भारत की विदेश-नीति का एक नया अध्याय खुला. मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम (एमटीसीआर) की सदस्यता, वासेनार अरेंजमेंट और ऑस्ट्रेलिया ग्रुप में भारत को शामिल कराने में अमेरिका के साथ फ्रांस की भूमिका भी रही है. 
 
भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता दिलाने में फ्रांस ने भी भरपूर सहायता की है. दूसरी तरफ अमेरिका की तरह फ्रांस ने भी हिंद महासागर में दिलचस्पी दिखाई है. भारत ने उसे इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (आयोरा) की सदस्यता दिलाने में मदद की और फ्रांस ने भारत को इंडियन ओशन कमीशन में पर्यवेक्षक सदस्य का दर्जा दिलाने में सहायता की. 
 
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साझेदारी के 25 साल

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच नीतिगत साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने का समारोह भी मनाया गया. याक शिराक के समय से शुरू हुई रणनीतिक-साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने पर इसबार की यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों ने आगामी 25 वर्ष में इस सामरिक हिस्सेदारी की वृहत रूपरेखा जारी की है.
 
वस्तुतः पिछले 25 वर्ष भारतीय विदेश-नीति की दृढ़ता और स्वतंत्र दिशा के नए युग को बताते हैं.1976 में फ्रांस के प्रधानमंत्री के रूप में और 1998 में राष्ट्रपति के रूप में याक शिराक की भारत-यात्राओं ने इस मैत्री की नींव डाली थी.
 
इन दोनों अवसरों पर वे गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य-अतिथि थे. 1998 में दोनों देशों ने अपने राजनयिक-संबंधों को रणनीतिक-सहयोग के स्तर पर रूपांतरित कर लिया, जिसकी 25 वीं वर्षगाँठ इस साल मनाई जा रही है. 
 
रणनीतिक-सहयोग

यूरोपियन यूनियन के बाहर फ्रांस ने पहली बार जिस देश के साथ रणनीतिक-सहयोग स्थापित किया वह भारत ही है. 1974 में जब भारत ने पहली बार परमाणु परीक्षण किया, तब अमेरिका ने तारापुर संयंत्र के लिए यूरेनियम ईंधन की सप्लाई रोक दी. तब फ्रांस ने ईंधन 
 
उपलब्ध करवाया. 

अगस्त 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाया तब चीन ने संरा सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई, जिसमें फ्रांस ने भारत का समर्थन किया. फ्रांस ने कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है. 
 
संरा सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी का भी फ्रांस समर्थन करता है. नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता का भी उसने समर्थन किया है. ऐसे अनेक मौकों पर फ्रांस ने भारत को राजनयिक समर्थन प्रदान किया है. 
 
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )