आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
उर्दू-हिंदी में समान रूप से चर्चित शायर मुनव्वर राणा भले ही अब इस दुनिया में नहीं रहे, पर साहित्य के क्षेत्र में उनके काम को हमेशा याद रखा जाएगा. मुनव्वर राणा के कुछ शेर तो ऐसे हैं जो बरबस लबों पर आ जाते हैं. उनकी शायरी विदेशों में भी बहुत मशहूर है.
दुबई के अंतरराष्ट्रीय मुशायरे में उन्हें सुनने के लिए भारी मजमा जुटता था. उनकी मां पर लिखी कविता बेहद मकबूल रही है.कुछ लोग तो इसे जुबानी रटे हुए हैं. यहां ‘ मां ’ पर मुनव्वर राणा के कुछ चर्चित शेर-ओ शायरियां प्रस्तुत की जा रही हैं
1.
वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया,
माँ के आंखें मूँदते ही घर अकेला हो गया!
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है!!
2.
अभी जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है!
3.
छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको,
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है!!
4.
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है!
मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ !!
5.
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे राना
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते !
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना !!
6.
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती !
अब भी चलती है जब आँधी कभी गम की राना
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है !!
7.
लिपट को रोती नहीं है कभी शहीदों से,
ये हौसला भी हमारे वतन की मांओं में है!
ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है!!
8.
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है!
9.
घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं,
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं!
10.
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई!