हिंदी साहित्य को गहरी संवेदनशीलता देने वाले विनोद कुमार शुक्ल का देहांत

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 24-12-2025
Vinod Kumar Shukla, who enriched Hindi literature with profound sensitivity, has passed away.
Vinod Kumar Shukla, who enriched Hindi literature with profound sensitivity, has passed away.

 

प्रख्यात हिंदी साहित्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने रायपुर स्थित एम्स में अंतिम सांस ली। सांस संबंधी तकलीफ के चलते उन्हें 2 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 23 दिसंबर को शाम 4:58 बजे उनका निधन हो गया। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्ल के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए उनके साहित्यिक योगदान को याद किया। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा कि विनोद कुमार शुक्ल जी हिंदी साहित्य की दुनिया में अपने अमूल्य योगदान के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे। शोक की इस घड़ी में उनकी संवेदनाएं शुक्ल के परिवार और उनके प्रशंसकों के साथ हैं।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ यात्रा के दौरान विनोद कुमार शुक्ल और उनके परिवार से फोन पर बात कर उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी। उस समय भी साहित्यकार की तबीयत को लेकर चिंताएं सामने आई थीं।

विनोद कुमार शुक्ल अपनी शांत, संवेदनशील और मानवीय लेखन शैली के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे। उनकी रचनाओं में साधारण जीवन के अनुभव गहरी भावनाओं के साथ अभिव्यक्त होते थे। उनकी प्रमुख कृतियों में नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी और एक चुप्पी जगह शामिल हैं। इन रचनाओं ने आधुनिक हिंदी साहित्य को नई दृष्टि और भाषा दी।

साहित्य के क्षेत्र में उनके आजीवन योगदान को देखते हुए उन्हें 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। इस सम्मान के साथ वे छत्तीसगढ़ से ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले पहले लेखक बने, जो राज्य और हिंदी साहित्य दोनों के लिए गर्व का विषय रहा।

विनोद कुमार शुक्ल अपने पीछे पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री को छोड़ गए हैं। उनका जाना हिंदी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति माना जा रहा है, लेकिन उनकी रचनाएं आने वाली पीढ़ियों को लगातार प्रेरित करती रहेंगी।