जामिया में डॉ. रख़्शन्दा रूही मेहदी की दो पुस्तकों का विमोचन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-12-2025
Two books by Dr. Rakhshanda Ruhi Mehdi were launched at Jamia.
Two books by Dr. Rakhshanda Ruhi Mehdi were launched at Jamia.

 

आवाज़ द वॉयस | नई दिल्ली

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के यासर अराफ़ात हॉल में साहित्य, सूफी परंपरा और वैचारिक संवाद का एक यादगार दृश्य उस समय साकार हुआ, जब जामिया एलुमनाई अफेयर्स के तत्वावधान में प्रसिद्ध फिक्शन लेखिका और सैयद आबिद हुसैन सीनियर सेकेंडरी स्कूल की शिक्षिका डॉ. रख़्शन्दा रूही मेहदी की दो महत्वपूर्ण पुस्तकों का भव्य विमोचन किया गया। इस गरिमामय अवसर पर जामिया के कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ ने अपने कर-कमलों से पुस्तकों का लोकार्पण किया।

विमोचित पुस्तकों में पहली कृति “अलखदास” है, जो शेख अब्दुल कुद्दूस गंगोही (रह.) के हिंदी साहित्य और सूफी परंपरा में योगदान पर केंद्रित एक गहन और शोधपरक पुस्तक है, जबकि दूसरी पुस्तक “एक ख्वाब जागती आँखों का…” लेखिका की चयनित हिंदी कहानियों का संग्रह है, जिसमें मानवीय संवेदना, स्त्री दृष्टि और आत्मिक प्रश्नों की सशक्त अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वयं कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ ने की, जबकि विशेष अतिथि के रूप में जामिया के रजिस्ट्रार प्रोफेसर मेहताब आलम रिज़वी उपस्थित रहे। मंच पर मौजूद विद्वानों और शिक्षकों की उपस्थिति ने इस आयोजन को अकादमिक गरिमा और बौद्धिक ऊँचाई प्रदान की।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष और फैकल्टी ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड लैंग्वेजेज के पूर्व डीन प्रोफेसर वहाजुद्दीन अलवी ने कहा कि मौजूदा दौर में सूफीवाद जैसे विषय पर इतनी व्यापक और संतुलित पुस्तक लिखना किसी करिश्मे से कम नहीं है। उन्होंने सूफी दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा कि सूफी अपने रब से इश्क करता है और यही इश्क उसे कायनात के हर ज़र्रे में महसूस होता है। सूफी का रास्ता नफ़रत नहीं, बल्कि मोहब्बत और इंसानियत का रास्ता है।

विशेष अतिथि प्रोफेसर मेहताब आलम रिज़वी ने “अलखदास” को आज के समय की एक अत्यंत प्रासंगिक और आवश्यक पुस्तक बताया। उन्होंने कहा कि सूफीवाद समाज में आपसी भाईचारे, सहिष्णुता और सांस्कृतिक समरसता को मज़बूत करता है। सूफी के आस्ताने पर हर धर्म, हर मज़हब और हर तबके के लोग बराबरी और श्रद्धा के साथ आते हैं—और यही संदेश इस पुस्तक के माध्यम से सामने आता है।

अध्यक्षीय भाषण में कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ ने सूफीवाद पर अत्यंत विचारपूर्ण और गहन संवाद प्रस्तुत किया। उन्होंने कुरआन की विभिन्न आयतों के हवाले से कहा कि सूफी का अपने महबूब—अर्थात खुदा—से क़रीब होने का रास्ता सच्चे दीन, ईमान और पाक इश्क़ के बिना संभव नहीं है। उनका वक्तव्य न सिर्फ अकादमिक था, बल्कि आत्मिक स्तर पर भी श्रोताओं को छू गया।

डीन, एलुमनाई अफेयर्स प्रोफेसर आसिफ हुसैन ने दोनों पुस्तकों पर अपने विचार रखते हुए कहा कि डॉ. रख़्शन्दा रूही मेहदी उर्दू और हिंदी साहित्य की एक सशक्त और सम्मानित आवाज़ हैं। उनकी रचनाएँ भाषा की सीमाओं से ऊपर उठकर इंसानियत की बात करती हैं, और इसी साहित्यिक महत्व को देखते हुए जामिया ने इस विमोचन समारोह का आयोजन किया।

समारोह के अंत में लेखिका डॉ. रख़्शन्दा रूही मेहदी ने भावपूर्ण शब्दों में कहा कि सूफी साहित्य को पढ़ना या लिखना तब तक अधूरा है, जब तक उसे अपनी ज़िंदगी में नहीं उतारा जाए। उन्होंने अल्लामा इक़बाल के एक शेर के माध्यम से अपने विचार साझा किए और सभी अतिथियों, विद्वानों तथा श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

कार्यक्रम का संचालन जामिया के उर्दू विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जावेद हसन ने अत्यंत प्रभावशाली अंदाज़ में किया। उन्होंने दोनों पुस्तकों से चुने गए अंश पढ़े और अपने विशिष्ट शैली में शेरों की प्रस्तुति से माहौल को साहित्यिक ऊँचाई दी। राष्ट्रगान के पश्चात चाय-सत्र के साथ यह यादगार साहित्यिक समारोह संपन्न हुआ।