ओनिका माहेश्वरी/नई दिल्ली
सर्दियां शुरू हो रही हैं और इसके साथ ही वुलेन कपड़ों की खरीदारी भी शुरू हो जाएगी. सर्दी के मौसम में पशमीना शॉल काफी गर्मी देती है. पशमीना कश्मीर का फैब्रिक है जो अपने मुलायम टेक्सचर के लिए जाना जाता है. लेकिन सबसे मुश्किल होता है, पशमीना की पहचान करना. हम आपको बता रहे हैं कैसे करें असली पशमीना की पहचान.
पशमीना की बड़ी सी शॉल को अंगुठी के अंदर से बाहर निकाला जा सकता है. असली पशमीना बेहद मुलायम और वजन में हल्का होता है. रियल पशमीना पर कभी लेबल नहीं लगाया जाता, बल्कि सलाई से सिला जाता है.
पश्मीना नाम एक फारसी शब्द “पश्म” से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक रीतिबद्ध तरीके से ऊन की बुनाई. कश्मीरी पश्मीना शाल व्यक्ति के लिए रॉयल्टी की निशानी होती है. असली पशमीना शाल छूने पर बेहद मुलायम और वजन में हल्की लगती है. पश्मीना का एक धागा सिर्फ14 से 19 माइक्रोन्स का होता है, यानि मनुष्य के बाल से भी छह गुना पतला.
पश्मीना शाल इतनी महंगी क्यों होती है?
ऐसे में शॉल में आपने पशमीना का नाम सुना होगा, जो काफी महंगे होता हैं. कश्मीरी पश्मीना शाल व्यक्ति के लिए रॉयल्टी की निशानी होती है. चेगू नस्ल की बकरी से लगभग हर साल 100 ग्राम और चंगतानी नस्ल की बकरी से 250 ग्राम पश्मीना ऊन प्राप्त होता है. यह बकरी कठिनजलवायु में पाई जाती है और एक बार एक बकरी से बहुत कम उन प्राप्त होता है, एक शाल को बनाने में 180 घण्टे लगते हैं. इसलिए यह शाल महंगी मिलती है.
भारत और चीन के पठार पर स्थित चांगथांग का विशाल रेगिस्तान हिमालय और काराकोरम पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित है. यह अत्यंत दुर्लभ चांगरा बकरी यहां पाई जाती है, जिसे हम पश्मीना बकरी के नाम से भी जानते हैं.
असली पशमीना शाल छूने पर बेहद मुलायम और वजन में हल्की लगती है. पश्मीना असल में कश्मीर के लद्दाख के चंगथांग में पाई जाने वाली चांगरा बकरियों के ऊन से ही बनती है, जो समुद्र तल से करीब 14,000 फुट की ऊंचाई पर पाई जाती.
कैसे बनती है पशमीना शॉल
पशमीना कश्मीर का फैब्रिक है जो अपने मुलायम टेक्सचर के लिए जाना जाता है. लेकिन सबसे मुश्किल होता है, पशमीना की पहचान करना. कश्मीरी कारीगर कई पीढिय़ों से प्रसिद्ध पश्मीना शॉल बनाने का काम करते हैं, जो हाथ से बुने जाते हैं और कभी-कभी इनमें बेहतरीन एम्ब्रॉयडरी भी की जाती है.
पशमीना के लिए इन ऊनों को चरखे के ज़रिए हाथों से ही काता जाता है. ये काम काफी मुश्किल और थकाने वाला होता है, इसीलिए ऊन कोई अनुभवी कारीगर ही काट सकता है.
इसे काटने के आलावा डाइ करने में भी काफी मेहनत, समय लगता है. आज भारत से कहीं ज्यादा विदेशों में पशमीना की मांग है इसलिए इसे नए स्टाइल में तैयार किया जाता है. पशमीना से कुरतियां, जैकेट्स, भी तैयार किये जा रहे हैं.
बादशाह अकबर का पश्मीना प्रेम
मुगल संरक्षण के तहत, कश्मीरी शॉल निर्माण में कई गुना वृद्धि हुई. पश्म ऊन की कोमलता और सुंदरता से प्रभावित होकर, मुगल सम्राट अकबर ने कुछ मुगल रूपांकनों को पेश किया.
पश्मीना शॉल, स्कार्फ और स्टोल में अब पैलेट, टेन्ड्रिल और अन्य फूलों के डिज़ाइन देखे जा सकते हैं. वास्तव में, आज भी आप इन रूपांकनों को हाथ से कढ़ाई की हुई पश्मीना शॉल और स्टोल पर देख सकते हैं.
इसके अलावा, अकबर ने पश्मीना बनाने को बढ़ावा देने के लिए अपने शासनकाल में कई निर्माण इकाइयां स्थापित कीं. शाल के प्रति अपने प्रेम और आकर्षण को प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने कुछ और जोड़ने का निर्णय लिया. उन्होंने शॉल पहनने के अलग-अलग स्टाइल में हाथ आजमाया.
पश्मीना के प्रशंसक सम्राट जहांगीर भी थे
एक असाधारण लालित्य के लिए पुरस्कृत, कश्मीरी शॉल को मुगल सम्राट जहाँगीर के संस्मरणों में उल्लेख मिला. पश्मीना उनके पसंदीदा कपड़ों के लिए प्रसिद्ध थी.
इतना ही नहीं, उनके संस्मरणों में उल्लेख है कि उन्होंने उल्लेखनीय दरबारियों को उपहार के रूप में पश्मीना दिया था. संतों को उनके आध्यात्मिक योगदान के लिए उपहार के रूप में विशेष रूप से पश्मीना शॉल प्राप्त हुआ.