हरियाणा : मस्जिद-मदरसों के लिए अब सड़कों पर नहीं होगा चंदा, मेवात के उलमा का फ़ैसला

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 11-08-2025
Haryana: Muslim intellectuals and Ulemas angry over collection of donations on the road for mosques and madrasas
Haryana: Muslim intellectuals and Ulemas angry over collection of donations on the road for mosques and madrasas

 

मलिक असगर हाशमी, गुरुग्राम (हरियाणा)

हरियाणा के साइबर सिटी गुरुग्राम से सटे मुस्लिम बहुल इलाके मेवात में मस्जिद और मदरसे के नाम पर सड़कों पर गाड़ियों को रोककर चंदा मांगने की प्रथा इस कदर बढ़ गई है कि अब आम लोग ही नहीं, बल्कि मेवात के इस्लामिक संगठन और बुद्धिजीवी भी इसके खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं. उनका कहना है कि यह तरीका न केवल मज़हब-ए-इस्लाम की छवि को धूमिल करता है, बल्कि मस्जिद-मदरसे की गरिमा को भी ठेस पहुंचाता है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह प्रथा कोई नई नहीं, लेकिन अब इसका रूप अत्यंत नकारात्मक और आक्रामक हो गया है. मेवात के सेराजुद्दीन ने सोशल मीडिया पर लिखा कि इस मसले पर तबलीगी जमात के अमीर हज़रत मौलाना साद भी अपनी नाराज़गी जता चुके हैं.

उन्होंने तावडू के गांव गोयला में हुए एक इस्तेमा के दौरान साफ़ कहा था कि रास्तों पर चंदा वसूली की यह आदत बंद होनी चाहिए. मौलाना साद ने यहां तक कि रास्ते में गाड़ियों को रोककर चंदा मांगने वालों से खुद बातचीत भी की थी, लेकिन अफसोस कि इसका कोई असर न उलमा पर पड़ा और न ही चंदा वसूली करने वालों पर.

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मेवात के प्रखर बुद्धिजीवी रमज़ान चौधरी ने भी शरई मजलिस की एक अहम अपील सोशल मीडिया पर साझा करते हुए कहा कि मस्जिद-मदरसों के लिए चंदा इज़्ज़त और अच्छे तरीक़े से लिया जाए, न कि सड़कों पर गाड़ियों को रोक-टोक कर. उन्होंने स्पष्ट कहा—“ऐसे तरीक़े से न तो इज़्ज़त बचती है और न ही दीन का सही पैग़ाम जाता है.”

शरई मजलिस, इमारत-ए-शरईया और जमीयत उलमा-ए-मेवात के उलमा ने  सर्वसम्मति से घोषणा की है कि सड़कों पर चंदा मांगना निहायत नापसंद और इस्लाम तथा मुसलमानों की तौहीन है.

dउन्होंने अपील की—“मस्जिद और मदरसा इस्लाम की रूह और जान हैं, इनकी मदद करना पूरी उम्मत की जिम्मेदारी है, लेकिन सड़क पर भीड़ लगाकर, वाहनों को रोककर चंदा इकट्ठा करने की किसी भी तरह से इजाज़त नहीं दी जा सकती. अपने-अपने इलाकों में इस प्रथा को तुरंत बंद कराने की कोशिश की जाए.”

सोशल मीडिया पर भी इस फैसले की सराहना हो रही है. नजर मोहम्मद ने लिखा—“यह बहुत ही अच्छा और दूरगामी सोच वाला फैसला है, जिस पर अमल ज़रूरी है. मस्जिद-मदरसों की मदद ख़ुद चलकर, इज़्ज़त के साथ करनी चाहिए, न कि किसी को रोककर.”

साहिल खान ने कमेंट किया—“बहुत अच्छा फ़ैसला किया है.”शिब्ली अर्सलान ने लिखा—“देर से लिया गया, लेकिन बिल्कुल मुनासिब फैसला.”लियाकत अली और मुन्फेद खान ने इसे “बिल्कुल सही कदम” बताया, जबकि रहीस ड्राइवर ने कहा—“गुड वर्किंग.”

यह स्पष्ट है कि मेवात का धार्मिक और बौद्धिक समाज अब इस बात पर एकमत हो चुका है कि मस्जिद-मदरसे की गरिमा को बनाए रखने के लिए चंदा वसूली के इस भोंडे और अपमानजनक तरीक़े को जड़ से खत्म किया जाए.