आवाज द वाॅयस/अजमेर
भारत की आध्यात्मिक भूमि एक बार फिर सूफी प्रेम, शांति और आस्था का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर रही है जो केवल सीमाओं को नहीं, दिलों को जोड़ता है. बेंगलुरु की दो समर्पित बहनों — सुरैया कुरैशी और बीबी तबस्सुम — ने मिलकर एक अनोखा और ऐतिहासिक कार्य पूरा किया है.
पवित्र क़ुरआन शरीफ़ को सुंदर हस्तलिपि में कपड़े पर लिखकर एक आध्यात्मिक धरोहर का निर्माण किया है. छह वर्षों की सतत मेहनत, इबादत और प्रेम से तैयार की गई यह पवित्र क़ुरआन पाँच जिल्दों में संकलित है, जिसमें कुल 604 पृष्ठ हैं.
इसकी खास बात यह है कि यह किसी आम कागज़ पर नहीं, बल्कि विशेष कपड़े पर अत्यंत खूबसूरत और जीवंत हस्तलिपि में लिखी गई है, जो इसे धार्मिक और कलात्मक दोनों रूपों में एक अनमोल धरोहर बनाती है.
यह ऐतिहासिक पांडुलिपि हाल ही में राजस्थान के अजमेर स्थित महान सूफी संत हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती (रह.) की दरगाह में बड़े आदर, श्रद्धा और भावनात्मक माहौल में पेश की गई.
इस अवसर पर गद्दीनशीन हाजी सैयद सलमान चिश्ती, जो चिश्ती फ़ाउंडेशन के चेयरमैन भी हैं, के साथ कई अंजुमन सदस्य और समुदाय के वरिष्ठ प्रतिनिधि उपस्थित रहे. जब इस पवित्र कुरआन को दरगाह में पेश किया गया, तो दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े.
लोगों ने इसे बड़े अदब से देखा, दुआएं मांगी और इसे एक आध्यात्मिक चमत्कार के रूप में सराहा. इस विशेष प्रस्तुति से प्रेरित होकर हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने यह प्रस्ताव रखा है कि इस पवित्र कुरआन शरीफ़ को भारत सरकार की ओर से एक आधिकारिक भेंट के रूप में सऊदी अरब को सौंपा जाए.
यह भेंट भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), नई दिल्ली के माध्यम से प्रस्तुत की जाएगी, जिसमें यह सुझाव है कि इस कुरआन को मदीना मुनव्वरा स्थित पवित्र क़ुरआन म्यूज़ियम (Al-Maktabah al-Qur’aniyyah) में रखा जाए.
यह म्यूज़ियम हज़रत पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) की मस्जिद के समीप स्थित है, और इस प्रकार इस तोहफे को वहाँ रखना एक अत्यंत सम्मानजनक और आध्यात्मिक प्रतीक होगा. हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने इस पहल को भारत की सूफी परंपरा, धार्मिक सहिष्णुता और कलात्मक श्रद्धा की वैश्विक पहचान के रूप में देखा है.
उनके शब्दों में: "यह पवित्र कुरआन, जो भारत की दो नेक बहनों ने बहुत प्रेम और श्रद्धा से तैयार की है, हमारी धरती की आध्यात्मिक विरासत और मक्का-मदीना की पाक ज़मीन से हमारे ऐतिहासिक रिश्तों का प्रतीक है.
हमारी दिली ख्वाहिश है कि यह तोहफा भारत की ओर से शांति, सूफी भक्ति और भारत-सऊदी अरब के आत्मिक रिश्तों को मज़बूत करने के लिए दिया जाए.” आने वाले दिनों में इस प्रस्ताव को लेकर भारत सरकार के प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय से संवाद शुरू किया जाएगा, ताकि यह भेंट पूर्ण गरिमा, आदर और आधिकारिक स्वरूप में सऊदी अरब के पवित्र दो मस्जिदों के संरक्षक (Custodian of the Two Holy Mosques) को सौंपा जा सके.
यह न केवल भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, बल्कि एक ऐसी पहल भी बनेगी जो आध्यात्मिक संवाद, सांस्कृतिक कूटनीति और विश्व शांति की दिशा में भारत की भूमिका को दर्शाती है.
यह भेंट दुनिया के सामने यह संदेश भी लेकर आएगी कि भारत केवल विविधता का प्रतीक नहीं, बल्कि साझा विरासत, भाईचारे और आध्यात्मिक समर्पण की भूमि है. कपड़े पर लिखा गया यह पवित्र क़ुरआन, एक मिसाल है उस लगन, भक्ति और परंपरा की जो आज भी भारत में जीवंत है.
यह घटना न केवल भारत की धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि का उत्सव है, बल्कि एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय पहल है, जो सच्चे अर्थों में "रूहानी रिश्तों" को नया आयाम दे सकती है — अजमेर शरीफ से मदीना शरीफ तक.