1990 का दशक भारत के इतिहास में उथल-पुथल और बदलाव का समय था. देश ने एक ओर असाधारण उपलब्धियां देखीं तो दूसरी ओर गहरे संकटों का सामना भी किया. इस दशक में राजीव गांधी की हत्या, पंजाब, कश्मीर, असम, मिजोरम और नागालैंड में उग्रवाद, 1993 के बॉम्बे बम धमाके, सांप्रदायिक दंगे और आतंकी हमले देश को झकझोरते रहे.
दशक के अंत में करगिल युद्ध जैसी चुनौती भी सामने आई. वहीं, पोखरण परमाणु परीक्षण जैसी उपलब्धियों ने दुनिया के सामने भारत की ताकत और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया। इन कठिन और गौरवशाली वर्षों में कुछ ऐसे युवा चेहरे उभरे, जिन्होंने अपने साहस, प्रतिभा और मेहनत से देश के युवाओं को प्रेरित किया और उम्मीद की एक किरण बने.
सचिन तेंदुलकर
अगर क्रिकेट भारत का धर्म है, तो 1990 के दशक में सचिन रमेश तेंदुलकर उसके देवता थे. उस समय भारतीय क्रिकेट टीम अक्सर ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसी मजबूत टीमों से हार जाती थी, लेकिन सचिन पर पूरे देश की उम्मीदें टिकी रहती थीं. 1996 विश्वकप के सेमीफाइनल में श्रीलंका के खिलाफ उनका आउट होना और उसके बाद टीम का ध्वस्त हो जाना, या 1999 के चेन्नई टेस्ट में पाकिस्तान के खिलाफ लगभग जीत से हार में बदलना—ये पल आज भी क्रिकेट प्रेमियों की यादों में ताज़ा हैं.
सचिन न सिर्फ़ रन बनाते थे, बल्कि भारतीय क्रिकेट को यह विश्वास दिलाते थे कि हम दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बन सकते हैं. उस दौर में जब टीम की जीत या हार उनके बल्ले पर निर्भर करती थी, सचिन ने बार-बार यह साबित किया कि एक खिलाड़ी पूरी पीढ़ी को प्रेरित कर सकता है.
ऐश्वर्या राय
1994 में महज 21 साल की ऐश्वर्या राय ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीतकर भारत को दुनिया के मानचित्र पर एक नए अंदाज में पेश किया. उस समय भारत ने आर्थिक उदारीकरण के बाद वैश्विक बाज़ार में कदम रखा था और ऐश्वर्या का यह जीतना, भारतीय सौंदर्य और आत्मविश्वास का प्रतीक बन गया.
उनकी सफलता ने ग्लैमर इंडस्ट्री में भारतीय महिलाओं के लिए नए रास्ते खोले. न सिर्फ़ मॉडलिंग, बल्कि ब्यूटी, फैशन और डिज़ाइन जैसे क्षेत्रों में भी युवतियों ने कदम बढ़ाना शुरू किया. ऐश्वर्या ने यह साबित किया कि भारतीय महिलाएं अपने दम पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर छा सकती हैं.
कर्णम मल्लेश्वरी
1990 के दशक में खेलों में महिलाओं की मौजूदगी सीमित थी, खासकर भारोत्तोलन जैसे खेल में. ऐसे में 19 साल की कर्णम मल्लेश्वरी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का परचम लहराकर इतिहास रच दिया। 1994 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित मल्लेश्वरी ने एशियन और वर्ल्ड चैंपियनशिप में कई स्वर्ण पदक जीते.
2000 के सिडनी ओलंपिक में उन्होंने कांस्य पदक जीतकर यह साबित किया कि भारतीय महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. उनका यह पदक ओलंपिक में किसी भी भारतीय महिला का पहला पदक था, जिसने देशभर में खेलों में महिलाओं की भागीदारी को नई ऊर्जा दी.
ए. आर. रहमान
1992 में फिल्म रोजा के साथ भारतीय संगीत में एक तूफान आया, जिसे लोग ‘इसै पुयाल’ यानी संगीत का तूफान कहने लगे. ए. आर. रहमान ने पारंपरिक भारतीय संगीत में आधुनिक तकनीक का ऐसा संगम किया, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.
उनका संगीत न केवल फिल्मों की सफलता का कारण बना, बल्कि वह खुद एक ब्रांड बन गए. 1990 के दशक में उनकी धुनों ने युवाओं को नई सोच और नई संवेदनाओं से जोड़ा. आगे चलकर उन्होंने ऑस्कर, ग्रैमी और गोल्डन ग्लोब जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी जीते, लेकिन 90 का दशक उनका सुनहरा आरंभ था.
कैप्टन विक्रम बत्रा
दशक के अंत में जब करगिल युद्ध छिड़ा, तो 24 वर्षीय कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपनी वीरता और बलिदान से पूरे देश को प्रेरित किया. 20 जून 1999 को उन्होंने ऑपरेशन विजय के तहत पॉइंट 5140 पर कब्ज़ा कर इतिहास रच दिया. उनका कोड नेम ‘शेरशाह’ और विजय का संदेश ‘ये दिल मांगे मोर’ आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजता है.
7 जुलाई 1999 को पॉइंट 4875 की लड़ाई में उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए दुश्मनों को परास्त किया, लेकिन इस बहादुरी की कीमत अपनी जान देकर चुकाई। उनका बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए साहस और देशभक्ति का प्रतीक बन गया.
एक दशक, पांच प्रेरणास्रोत
1990 का दशक संघर्षों और उपलब्धियों का संगम था। इन पांच युवा आइकॉन सचिन तेंदुलकर, ऐश्वर्या राय, कर्णम मल्लेश्वरी, ए. आर. रहमान और कैप्टन विक्रम बत्रा ने न केवल अपने-अपने क्षेत्र में ऊँचाइयों को छुआ, बल्कि पूरे देश के युवाओं को यह संदेश दिया कि मुश्किल हालात में भी सपनों को साकार किया जा सकता है.
इनकी कहानियां आज भी याद दिलाती हैं कि सच्ची प्रेरणा वही है, जो चुनौतियों के बीच भी उम्मीद और जज़्बा बनाए रखे.