शहीदी दिवस विशेषः हसन खां मेवाती ने मजहब का वास्ता ठुकराया, बाबर के खिलाफ राणा के साथ हुए शहीद

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 14-03-2021
राजा हसन खां मेवाती
राजा हसन खां मेवाती

 

- 15 मार्च को राजा हसन खां का शहीदी दिवस है

- राजा हसन खां ने ठुकरा दिया था मजहब का वास्ता

-राणां सांगा के साथ मिलकर कान्वाह के मैदान में राजा हसन खां मेवाती बाबर के खिलाफ जंग में 15 मार्च को शहीद हुए

- जुबां देते हैं जिसको भी निभा देते हैं मेवाती, जो कहते हैं वही करके दिखा देते हैं मेवाती. ये साबित हो चुका है वतन पर जां लड़ा देते हैं मेवाती, बड़ों के हुक्म पर गर्दन कटा देते हैं मेवाती.

यूनुस अलवी / मेवात

राजा हसन खां मेवाती तत्कालीन मेवात रियासत के सबसे मशहूर व मारूफ व आखरी राजा गुजरे हैं. राजा हसन खां मेवाती 1485 ईसवीं में राजस्थान के गांव भाकड़ा रियासत मेवात में पैदा हुए और 15 मार्च 1527 को उस समय शहीद हुए, जब वे कान्वाह के मैदान में राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर के खिलाफ युद्ध कर रहे थे. उनकी शहीद के 495 साल बाद भी मेवात की अवाम उनकी बहादुरी और देशभक्ति के लिये याद कर रही है.

राजा हसन खां मेवाती सोलहवीं शताब्दी के महान देश भक्त राजा थे. अकबरनामा में उस समय के जिन चार योद्धाओं का वर्णन है, उनमें से हसन खां मेवाती एक हैं.

राजा हसन खां मेवाती को मेवात का राज्य अपने पूर्वजों से विरासत में मिला था, जो लगभग पौने दो सौ साल से मेेवात पर राज कर रहे थे. वे बहादुर नहार द्वारा 1353 ईसवीं में स्थापित मेवात राज्य के सातवें शासक थे.

अलवर में है किला

अलवर उनके राज्य की राजधानी हुआ करती थी. अलवर के उत्तर-पश्चिम अरावली पर्वत श्रंखला की एक चोटी पर हसन खां ने एक मजबूत किले का निर्माण कराया था.

इस किले की बुलंदी तकरीबन एक हजार फीट है, इसकी लम्बाई तीन मील और चौडाई एक मील है. उनके किले मंे 15 बड़ी और 52 छोटी बुर्जियां हैं. इस किले पर करीब तीन हजार पांच सौ कंगूरे हैं. यह किला बालाये किला के नाम से मशहूर है.

समरपाल की पांचवीं पीढ़ी के थे हसन खां मेवाती

आप एक बहादुर और वतनपरस्त हुकमरां थे. राजा हसन खां फिरोज तुगलक के अहद में जिन बहुत से राजपूत खानदानों ने इस्लाम कबूल किया था, उनमें सरहेटा राजस्थान के राजकुमार समरपाल थे.

समरपाल की पांचवीं पीढ़ी में सन् 1492 में हसनखां के पिता अलावल खां मेवात के राज बने थे. इसलिये हसन खां जादू गौत्र से ताल्लुक रखते हैं. हसन खां सन् 1505 में मेवात के राजा बने.

वालिद भी हुए शहीद

सन् 1526 ईसवीं में जब मुगल बादशाह बाबर ने हिंदुस्तान पर हमला किया, तो इंब्राहीम लोदी, हसन खां मेवाती व दीगर राजाओं ने मिलकर पानीपत के मुकाम पर बाबर से मुकाबला हुआ.

इस लडाई में राजा हसन खां के पिता अलावल खां शहीद ही नहीं हुए, बल्कि हसन खां और लोधी की हार हुई और इस लड़ाई के बाद लोधी खानदान का सूर्य अस्त हो गया.

बाबर ने दिया इस्लाम का वास्ता

इतिहासकार सद्दीक मेव कहते हैं कि पानीपत की विजय के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर तो अपना अधिकार जरूर कर लिया, लेकिन भारत सम्राट बनने के लिये उसे अभी कई कठिन संघर्ष से गुजना था. महाराणा संग्राम सिंह (मेवाड़) और हसन खां (मेवाती) के नेतृत्व में मिलकर बाबर के लिये कड़ी चुनौती के रूप में सामने खडे़ थे.

सद्दीक मेव के अनुसार बाबर ने हसन खां मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिये कई तरीके से प्रयास किये. उन्हें इस्लाम का वास्ता तक दिया गया. एक लड़ाई में बंधक बनाये गये राजा हसन खां के पुत्र को बिना शर्त छोड़ा गया, लेकिन राजा हसन खां की देश भक्ति के सामने न तो धर्म का वास्ता काम आया और न ही अपने खून की फिकर.

बाबर ने अपना आखरी हथियार धर्म का वास्ता देकर चलाया. उसने राजा हसन खां को पैगाम भेजा की हम मुसलमान हैं और भाई-भाई है. इसलिये तुम राणा सांगा को साथ छोड़कर हमारे साथ आ जाओ, तुम्हें पूरा मान-सम्मान दिया जाऐगा.

बाबर मुस्लिम भाई है, लेकिन राणा से खून का रिश्ता है

मगर राजा हसन खां ने बाबर के इस पत्र का देश भक्ति के शब्दों में इस तरह जवाब दिया कि यह सच है कि हम दोनों मुसलमान हैं. इस नाते हम मुस्लिम भाई हैं, लेकिन आप ने मेरे वतन पर हमला किया है. तुम एक हमलावर हो, जबकी राणा सांगा मेरा हम वतनी खून के रिश्ते का भाई है.

सिपेहसालार के हाथों का खंजर कांप जाता है,

हमारा नाम सुनता है तो लश्कर कांप जाता है.

मेरी खामोशी को बुजदिली का नाम मत देना,

अगर हम बोलते हैं तो सिंकदर कांप जाता है.

जब राजा हसन खां ने बाबर के पत्र का जवाब कठोर शब्दों में दिया, तो बाबर आग बबूला हो गया. बाबर ने अपने क्रोध और असफलता की झुंझलाहट में हसन खां मेवाती को अहसान फरामोश, विधर्मी और धोखेबाज तक कहा और इस सारे फसाद की जड़ भी राजा हसन खां को ही बता दिया.

मेवातियों पर कहर

मेवातियों को सबक सिखाने के लिये बाबर ने अपने सिपेहसाहलार झगझंग को आदेश दिया कि राजा हसन खां और मेवातियों को इसका सबक कठोरता से सिखाया जाये. उसके बाद झंगझंग ने मेवातियों पर कहर बरसाना शुरू कर दिया. मेवात के सैकड़ो गावों में आग लगा दी और पूरी तरह तबाह और बरबाद कर दिया. मगर मेवातियो ने हिम्मत नहीं हारी और बाबर के खिलाफ युद्ध करने की ठान कर कमर कस ली.

राणा का झंडा थाम लिया

15 मार्च 1527 को राजा हसन खां और राणा सांगा की संयुक्त सेना के साथ कान्वाह के मैदान में बाबर की सेना आमने-सामने हो गई. दोनों तरफ से भयंकर युद्ध हुआ. जब दोनों तरफ से युद्ध हो रहा था, तो अचानक एक तीर राणा सांगा के सिर पर आ लगा और वह हाथी के हौदे से नीचे गिर पड़े. उन्हें तुरंत मैदान से बहार ले जाया गया.

उसके बाद भारतीय सेना के पैर उखड़ने लगे, तो सेनापति का झण्डा खुद राजा हसन खां मेवाती ने संभाल लिया और बाबरी सेना को ललकारते हुऐ उन पर जोरदार हमला बोल दिया.

सीने में लगा तोप का गोला

राजा हसन खां मेवाती 12 हजार घुड़सवार सिपाहियों के साथ बाबर की सेना पर टूट पड़े.

इसी दौरान एक तोप का गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और आखरी मेवाती शासक का 15 मार्च 1527 को शहीद हो गए.

इसके बाद हिंदुस्तान में प्रथम मुगल बादशाह का सूर्योदय हुआ. शहीद राजा हसन खां के मृत शरीर को उसके पुत्र ताहिर खां, नजदीकी रिश्तेदार जमालखां और फतेहजंग लेकर आये.

हसन खां के पार्थिक शरीर को अलवर शहर के उत्तर में सुपुर्द-ए-खाक किया गया. यहां पर राजा हसनखां के नाम पर एक यादगार छतरी बनाई गई थी, लेकिन देश के सबसे बुरे दौर 1947 में उपद्रवियों ने इस महान स्तंत्रता सेनानी राजा हसनखां की यादगार छतरी को भी नष्ट कर दिया.

हरियाणा सरकार ने राजा हसन खां मेवाती के नाम से नूंह से तीन किलोमीटर पश्चिम की तरफ अरावली पर्वत श्रंखला की तलहेटी में शानदार मेडिकल कॉलेज बनाया है, जिससे मेवात सहित कई जिलों के लोग फायदा उठा रहे है.