शाद अज़ीमाबादी: किसी ने मीर कहा,किसी ने ग़ालिब

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 08-01-2023
शाद अज़ीमाबादी: किसी ने मीर कहा,किसी ने ग़ालिब
शाद अज़ीमाबादी: किसी ने मीर कहा,किसी ने ग़ालिब

 

जन्मदिन पर ख़ास,

सेराज अनवर/ पटना

शाद को शायद मालूम था कि लोग उन्हें भूला देंगे इसीलिए उन्होंने अपनी ज़िंदगी में ही अहसास करा दिया था-

ढूँढोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम 
जो याद न आए भूल के फिर ऐ हम-नफ़सो वो ख़्वाब हैं हम 

गजलों के बादशाह शाद अज़ीमाबादी की जन्मदिन पर आज उनकी याद आना स्वभाविक है.कल उनकी पुण्यतिथि थी.एक दिन के अंतराल पर ग़म और ख़ुशी का सामंजस्य समेटने वाले शाद शायद पहले शायर हैं.कितनी अजीब बात है कि उनके मुरीद पहले उनकी पुण्यतिथि अथार्त मौत का ग़म मनाते हैं और दूसरे दिन ही उनके जन्म का जश्न मनाते हैं.
 
शाद सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” के लेखक रहे मशहूर शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी के उस्ताद थे. जिन्होंने यह नज़्म 1921 में लिखी थी. जिस कागज पर यह नज़्म उकेरी गई, उस पर उनके उस्ताद शायर शाद अजीमाबादी ने सुधार भी किया है.
 
इसकी मूल प्रति आज भी बिस्मिल अजीमाबादी के परिवार के पास सुरक्षित है. इसकी नक़ल पटना के खुदाबख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी में रखी हुई है. मशहूर आलोचक कलीम उद्दीन अहमद ने उन्हें उर्दू ग़ज़ल की त्रिमूर्ति में मीर और ग़ालिब के बाद तीसरे शायर के रूप में शामिल किया है.
 
मजनूं गोरखपुरी ने उन्हें नम आलूदगियों का शायर कहा तो अल्लामा इक़बाल भी उनकी शायरी के प्रशंसक थे.वह शायर जिसका क़द्रदान दुनिया रही,अफसोस वह आज गुमनामियों में है.अफसोस इस बात का भी कि पटनावासी उनकी स्मृति में कुछ कर नहीं सके,सिवाय श्रद्धा सुमन अर्पित करने के. पटनासिटी के लंगूर गली स्थित उनकी मजार पर लोग पहुंचे और अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित किया.पिछले 40 वर्षों से भी अधिक समय से शाद की स्मृति में इसका आयोजन करते रहने वाली संस्था 'नवशक्ति निकेतन' इसके लिए बधाई की पात्र है.
 
shad
शाद अज़ीमाबादी के बारे में
 
शाद का जन्म 8 जनवरी 1846 को अजीमाबाद में हुआ, जिसे अब पटना के नाम से जाना जाता है और 7 जनवरी 1927 को शाद दुनिया–ए–फानी से रुख़्सत हो गए.उनका असल नाम सय्यद अली मुहम्मद था. शाद अज़ीमाबादी को लोगो की मान्यताओं के हिसाब से वह मिर्ज़ा गालिब के टक्कर के थे.
 
बहादुरी के बीना पर शाद अज़ीमाबादी को ‘खान बहादुर’ का अंग्रेजों द्वारा लकब दिया गया.उनके पिता का नाम सय्यद तफ्फाजुल हुसैन था, अज़ीमाबाद (पटना) के एक रईस घराने में पैदा हुए.शाद के घर का माहौल मज़हबी और अदबी था.
 
उन्होंने अरबी, फ़ारसी और दिनियात की शिक्षा-दीक्षा योग्य शिक्षकों से प्राप्त की.बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे सो दस वर्ष की आयु में ही आपने फ़ारसी भाषा पर दक्षता हासिल कर ली थी. आपके माता-पिता शायरी के विरुद्ध थे और आपको इराक भेजकर धार्मिक शिक्षा दिलाना चाहते थे पर आप शायरी के शौक़ के चलते छुप कर शायरी करते थे और आपने सय्यद अल्ताफ़ हुसैन फर्याद को अपना उस्ताद बनाया.
 
समकालीन शायरों से उनका मर्तबा बड़ा था

मिर्जा असदुल्लाह खां गालिब से थोड़े बाद और इकबाल से थोड़ा पहले इस शायर ने अपनी शायरी का ऐसा रंग जमाया कि नवाब मिर्जा खां दाग देहलवी से लेकर हसरत मोहानी,फानी बदायूनी,अमीर मीनाई सरीखे समकालीन शायरों से उनका मर्तबा बड़ा हो गया.
 
शाद ने उर्दू अदब के हर पहलू पर काम किया, कसीदा, मर्सिया, मसनवी, कतआ, रुबाई और गजल सभी शैलियों पर उन का कलाम मौजूद है. शाद की शायरी के मुरीद पत्रकार और हर वर्ष उनके मज़ार पर जाकर खराज ए अक़ीदत पेश करने वाले ज्ञानवर्धन मिश्रा कहते हैं कि शाद साहब को गजल बहुत प्रिय था.
 
उन्हें  उर्दू साहित्य में शहंशाह-ए-गजल मिर्जा गालिब सी हैसियत हासिल है.वह ग़ज़ल के बादशाह थे. भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित शेर-ओ-सुखन संग्रह में अयोध्या प्रसाद लिखते हैं कि शाद के  यहां  मीर-ओ-दर्द का गुदाज, मोमिन की नुक्तासंजी, गालिब की बुलंद परवाजी और अमीर-ओ-दाग की सलासत सब एक ही वक्त में ऐसी मिली-जुली नजर आती हैं कि अब जमाना मुश्किल से ही कोई दूसरी नजीर पेश कर सकेगा.

उसकी झलक उनकी शायरी में देखी जा सकती है-

तमन्नाओं में उलझाया गया हूं 
खिलौने दे के बहलाया गया  हूं

अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया 
ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मिरा मैं बाज़ आया

गली में यार की ऐ 'शाद' सब मुश्ताक़ बैठेंहैं 
ख़ुदा जाने वहां से हुक्म किस के नाम आएगा

खामोशी से मुशीबत और संगीन होती है 
तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तसकीन होती है 

जाहिद से जब सुनो तो जबां पर है जिक्रे हूर
 
shad azimabadi
 
नीयत हुई खराब तो ईमान कब रहा ?

उन्होंने लब ओ रुख्सार,प्यार-मुहब्बत वाली शायरी के लब-ओ-लहजे को न सिर्फ बदल कर रख दिया, चिंतन और गम्भीर शायरी की ऐसी बुनियाद रखी कि कलीम उद्दीन अहमद जैसे बड़े आलोचक को भी उनकी साहित्यिक अजमत का एतराफ करना पड़ा.अल्लामा इकबाल ने तो उनके सम्मान में मुकम्मल शोकगीत ही लिख डाली.
 
सरकार ने अज़ीम शायर को भूला दिया

लगभग डेढ़ दशक पहले वार्ड 59 के दीवान मोहल्ला हमाम पर जिस शाद पार्क का शिलान्यास मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था उस भूखंड पर आज तक अवैध कब्जा होने और मजार तक पहुंचने वाले जिस मार्ग का वर्ष 2012 में नगर निगम ने नामकरण शाद अजीमाबादी मार्ग किया था. उस पर अमल नहीं किया गया.
 
 पत्रकार अहमद रजा हाशमी बताते हैं कि  शाद् अजीमाबादी की स्मृति में राज्य सरकार द्वारा पुरस्कार की घोषणा करने, शाद समग्र प्रकाशित करने  जैसी दो दशक पुरानी मांग जस के तस है. राज्य सरकार इनके नाम पर कोई अवार्ड देती है न कार्यक्रम आयोजित करती है.
 
शाद अजीमाबादी की स्मृति में लगभग 40 वर्षों से जयंती और पुण्यतिथि आयोजित करने वाली संस्था नवशक्ति निकेतन के सचिव कमल नयन श्रीवास्तव, एहसान अली अशरफ, सैयद मुजफ्फर रजा के अलावा स्वरांजलि के महासचिव डा. ध्रुव कुमार, संयोजक अनिल रश्मि, पाटलिपुत्र परिषद के अध्यक्ष डा. त्रिलोकी प्रसाद समेत साहित्य व संस्कृति से जुड़ी कई संस्थाओं और लोगों ने शाद को उनकी ख्याति और उपलब्धियों के अनुकूल सम्मान देकर मांगों को पूरा करने की गुहार सरकार से लगाई है.
 
खुर्शीद अकबर का शुमार बिहार के  नामचीन शायर और आलोचक के रूप में होती है.उनका कहना है कि रासिख अजीमाबादी के बाद शाद बेशक बिहार के दूसरे बड़े शायर हैं.उनकी जितनी पजीराई होनी चाहिए उतनी हुई नहीं.वह तो नवशक्ति निकेतन की मेहरबानी है जो शाद साहब की पुण्यतिथि और जयंती पर उनकी कब्र की साफ-सफाई और कार्यक्रम आयोजित करती है.सम्भवतः इन्हीं स्थितियों को लेकर शाद अजीमाबादी ने कहा था-:
 
ये पर्दा पोशाने वतन तुमसे इतना भी न हुआ,
कि एक चादर को  तरसती  रही  तुर्बत मेरी
 
shad
 
नवशक्ति निकेतन ने याद रखा

सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था नवशक्ति निकेतन ने  शनिवार को  शाद अज़ीमाबादी की 96 वीं पुण्य तिथी पर न सिर्फ उन्हें याद किया बल्कि उनकी मज़ार पर चादरपोशी भी की इस अवसर स्मृति सभा व काव्यांजलि का आयोजन किया गया.
 
समारोह में मुख्य अतिथि बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ॰ अनिल सुलभ ने कहा कि शाद राष्ट्र के गौरव हैं.उनकी स्मृति को जीवंत बनाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ होकर काम करने की जरूरत है पटना की महापौर सीता साहू ने शाद अज़ीमाबादी को कालजयी शायर बताया और कहा कि उनकी स्मृति-रक्षा हेतु समाज और सरकार को बहुत कुछ करने की जरूरत है .
 
समारोह की अध्यक्षता पूर्व जिला न्यायाधीश सैयद अकबर अली जमशेद ने की.कार्यक्रम का संचालन कमलनयन श्रीवास्तव ने किया और कहा कि शाद की नज़्मों में मुल्क का दिल धड़कता है.कार्यक्रम का आगाज़ डॉ० कलीम आजिज की इन पंक्तियों से हुआ- " आज बरसी है तुम्हारी आओ शाद / हम रयाकारो से भी मिल जाओ शाद / तुम बुझे और सारी महफिल बुझ गई, बज़्म ठंडी है जरा गरमाओ शाद / कौन समझेगा तुम्हें इस दौर में,बन गये है हम तो लक्ष्मण साव शाद."
 
इस अवसर पर कवयित्री डॉ० नीलम श्रीवास्तव (गोपालगंज) एवं शायर डॉ० कासिम खुर्शीद को " शाद अज़ीमाबादी सम्मान-2023" तथा कवयित्री डॉ॰ रूबी भूषण एवं शायर डॉ॰ ताहिरूद्दीन 'ताहिर' (मुजफ्फरपुर) को 'साहित्य एवं समाज सेवा सम्मान-2023' से शॉल, प्रतीक चिन्ह एवं प्रमाणपत्र देकर अतिथियों द्वारा अलंकृत किया गया.
 
बिहार शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद ईरशाद अली आज़ाद ने शाद को एक मुकम्मल शायर बताया और शाद की स्मृति को जीवंत बनाए रखने की आवश्यकता बताई.शाद के प्रपौत्र डा० निसार अहमद, सैयद शकील अहमद एवं प्रपौत्री डॉ॰ शहनाज़ फातमी ने सरकार से शाद की मज़ार को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने, उनकी स्मृति में स्मारक डाक टिकट जारी करने, शाद अज़ीमाबादी पार्क को अतिक्रमणमुक्त कराने तथा शाद अज़ीमाबादी पथ का शिलापट्ट लगाने की मांग की.
 
समारोह की अध्यक्षता पूर्व जिला न्यायाधीश सैयद अकबर अली जमशेद ने की.कार्यक्रम का संचालन कमलनयन श्रीवास्तव ने किया और कहा कि शाद की नज़्मों में मुल्क का दिल धड़कता है। कार्यक्रम का आगाज़ डॉ० कलीम आजिज की इन पंक्तियों से हुआ- " आज बरसी है तुम्हारी आओ शाद / हम रयाकारो से भी मिल जाओ शाद / तुम बुझे और सारी महफिल बुझ गई, बज़्म ठण्ढ़ी है जरा गरमाओ शाद / कौन समझेगा तुम्हें इस दौर में, बन गये है हम तो लक्ष्मण साव शाद .

"इस अवसर पर कवयित्री डॉ० नीलम श्रीवास्तव (गोपालगंज) एवं शायर डॉ० कासिम खुर्शीद को " शाद अज़ीमाबादी सम्मान-2023" तथा कवयित्री डॉ॰ रूबी भूषण एवं शायर डॉ॰ ताहिरूद्दीन 'ताहिर' (मुजफ्फरपुर) को 'साहित्य एवं समाज सेवा सम्मान-2023' से शॉल, प्रतीक चिन्ह एवं प्रमाणपत्र देकर अतिथियों द्वारा अलंकृत किया गया.
 
कवयित्री डॉ. आरती कुमारी (मुफ्फरपुर) का उर्दू निदेशालय, बिहार द्वारा स्वीकृत गज़ल संग्रह 'मुंतजिर है दिल' का लोकार्पण किया गया.बिहार शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद ईरशाद अली आज़ाद ने शाद को एक मुकम्मल शायर बताया और शाद की स्मृति को जीवंत बनाए रखने की आवश्यकता बताई.
 
शाद के प्रपौत्र डा० निसार अहमद, सैयद शकील अहमद एवं प्रपौत्री डॉ॰ शहनाज़ फातमी ने सरकार से शाद की मज़ार को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने, उनकी स्मृति में स्मारक डाक टिकट जारी करने, शाद अज़ीमाबादी पार्क को अतिक्रमणमुक्त कराने तथा शाद अज़ीमाबादी पथ का शिलापट्ट लगाने की मांग की.