मुंबई
गणेश चतुर्थी के पावन पर्व की शुरुआत बुधवार से हो गई। इस अवसर पर मुंबई स्थित प्रसिद्ध श्री सिद्धिविनायक गणपति मंदिर में सुबह से ही हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे और बप्पा से सुख-समृद्धि की कामना की।
यह दस दिवसीय महापर्व आज से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त होगा। इसे विनायक चतुर्थी या विनायक चविथि भी कहा जाता है। यह पर्व भगवान गणेश की आराधना के लिए समर्पित है, जिन्हें ‘नई शुरुआत का देवता’, ‘विघ्नहर्ता’, बुद्धि और विवेक का देवता माना जाता है।
त्योहार के दौरान भक्त अपने घरों में गणपति की प्रतिमाएं स्थापित करते हैं, उपवास रखते हैं, लज़ीज़ पकवान बनाते हैं और बड़े-बड़े पंडालों में बप्पा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। देशभर में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन मुंबई और महाराष्ट्र में इसका उल्लास विशेष रूप से अद्वितीय है।
रविवार को मुंबई के प्रसिद्ध लालबागचा राजा की प्रथम झलक भक्तों के सामने आई। उत्कृष्ट कला और भव्य शिल्पकला से निर्मित यह मूर्ति केवल एक प्रतिमा नहीं, बल्कि आस्था, कला और मुंबई की जीवंत संस्कृति का प्रतीक मानी जाती है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।
लालबागचा राजा का इतिहास भी गौरवशाली है। लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना 1934 में पुतलाबाई चाल में की गई थी। तब से लेकर अब तक, इस प्रतिष्ठित गणपति प्रतिमा की देखरेख कांबली परिवार द्वारा की जा रही है।
गौरतलब है कि जुलाई में महाराष्ट्र सरकार ने सार्वजनिक गणेशोत्सव को राज्य का "महाराष्ट्र राज्योत्सव" घोषित किया था। विधान सभा में यह घोषणा करते हुए सांस्कृतिक कार्य मंत्री आशीष शेलार ने कहा था कि सार्वजनिक गणेशोत्सव की परंपरा 1893 में लोकमान्य तिलक ने शुरू की थी।
उन्होंने कहा था,“यह पर्व सामाजिक, राष्ट्रीय, स्वतंत्रता संग्राम, आत्मसम्मान और भाषाई गौरव से जुड़ा हुआ है। आज भी वही भावना कायम है। यह महाराष्ट्र के लिए गर्व और सम्मान की बात है।”
सरकार ने आश्वासन दिया है कि इस उत्सव की सांस्कृतिक महत्ता और इसकी वैश्विक पहचान को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे।