कराड में बाढ़ से ‘बप्पा’ को बचाने दौड़े हिंदू-मुस्लिम युवक, भाईचारे की बनी मिसाल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 27-08-2025
Hindu-Muslim youth in Karad carrying Ganesha idols to a safer place from the flood waters
Hindu-Muslim youth in Karad carrying Ganesha idols to a safer place from the flood waters

 

भक्ति चाळक

हाल ही में  महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के कराड शहर में मुसलाधार बारिश ने कहर बरपा दिया था. भारी बारिश के कारण कोयना नदी के किनारे बाढ़ जैसे हालात बन गए थे. गणेशोत्सव की तैयारियों में जुटे मूर्ति बनाने वाले कारीगरों के दिलों में यह देखकर दहशत भर गई. उन्हें डर सताने लगा कि महीनों की मेहनत से बनाई गईं भगवान गणेश की सैकड़ों मूर्तियां कहीं बाढ़ के पानी में बह न जाएं.

तभी, कराड के व्हाट्सएप ग्रुप पर यह खबर फैली और हिंदू-मुस्लिम नौजवान 'बप्पा' की मूर्तियों को बचाने के लिए दौड़ पड़े. कई महीनों की दिन-रात की मेहनत से तैयार की गई मूर्तियां पानी में न बह जाएं, यह सोचकर स्थानीय कार्यकर्ता एकजुट हो गए. इन हिंदू और मुस्लिम नौजवानों ने कंधे से कंधा मिलाकर बचाव का काम शुरू किया और सभी मूर्तियों को एक सुरक्षित जगह पर पहुंचाया. इस काम में सबसे बड़ी भूमिका निभाई मोहसिन कागदी ने, जिन्होंने मूर्तियों को रखने के लिए अपना गोदाम खोल दिया. 'ब्रदर्स फाउंडेशन' के इन सर्वधर्मी कार्यकर्ताओं के काम की हर तरफ तारीफ हो रही है.

उस दिन की पूरी घटना के बारे में बात करते हुए 'ब्रदर्स फाउंडेशन'के कार्यकर्ता जय सूर्यवंशी ने कहा, “2019 में कराड में आई बाढ़ की वजह से नदी किनारे बसे गांवों को बहुत परेशानी हुई थी. वहां कुम्हार समुदाय (मूर्ति बनाने वाले कारीगर) बड़ी संख्या में रहता है. उस बाढ़ में उनकी कई गणेश मूर्तियां बह गईं और कुम्हार समाज को भारी नुकसान हुआ था. गणेशोत्सव सिर पर था और वे ग्राहकों को बुक की हुई मूर्तियां भी नहीं दे पाए थे.”

जय ने आगे बताया, “इस बार भी कुछ वैसी ही स्थिति बन रही थी. तेज़ बारिश से पानी का स्तर लगातार बढ़ रहा था. जैसे ही हमें लगा कि 2019 जैसी घटना दोबारा हो सकती है, हम सभी कार्यकर्ता फौरन मौके पर पहुंचे और सभी गणेश मूर्तियों को सुरक्षित जगह पर ले गए. उस वक्त हम सभी हिंदू-मुस्लिम भाई एक साथ काम कर रहे थे. यही हमारे ग्रुप की खासियत है.”

जय कहते हैं, “हमारा कराड शहर कभी जात-पात की राजनीति का शिकार नहीं होता. हम सब अमन और भाईचारे के रास्ते पर चलने वाले लोग हैं. इसीलिए हमारे फाउंडेशन का कोई अध्यक्ष नहीं है. सभी धर्मों के कार्यकर्ता ही इस संगठन के प्रमुख हैं.”

गणेश मूर्तियों के लिए अपना गोदाम खाली करने वाले मोहसिन कागदी बताते हैं, “उस दिन कुम्हार समाज के हमारे दोस्तों ने मदद के लिए फोन किया. वहां करीब 300 गणेश मूर्तियां थीं. सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि मूर्तियों को सुरक्षित कहां रखा जाए. मेरी दुकान पास में ही थी, इसलिए मैंने एक पल भी सोचे बिना दुकान खाली कर दी और सैकड़ों गणेश मूर्तियों को वहां रखवा दिया.”

वह आगे कहते हैं, “हमारा ब्रदर्स फाउंडेशन हमेशा धार्मिक सद्भावना के लिए आगे रहता है. हम जात-पात नहीं मानते, सब मिलकर नेक काम करते हैं. इसलिए मुझे नहीं लगता कि यह काम करके हमने कुछ बहुत खास किया है. आगे भी अगर हमें ऐसा कोई काम करने का मौका मिला, तो हम उसे सम्मान के साथ करेंगे.”

इस घटना पर चिंता जताते हुए मोहसिन कहते हैं, “मैं बस यही चाहता हूं कि ऐसा मौका दोबारा कभी न आए. सरकार को भी कुम्हार समाज के नुकसान की भरपाई के लिए मदद करनी चाहिए. उस दिन उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा. तेज़ बारिश में ट्रैक्टर और क्रेन किराए पर लेने पड़े, जिसमें उनका बहुत पैसा खर्च हुआ. हम सब दोस्तों ने मिलकर उनके लिए गाड़ियों का भी इंतज़ाम किया, जिससे उन्हें थोड़ी राहत मिली.”

ब्रदर्स फाउंडेशन के मुस्लिम कार्यकर्ता, समीर पटवेकर ने कहा, “कोयना नदी के किनारे रहने वाला कुम्हार समाज कई सालों से गणेश मूर्तियां बना रहा है. गणेशोत्सव से पांच-छह महीने पहले ही उनका काम शुरू हो जाता है. इस साल भी मूर्तियों पर रंग-रोगन का काम पूरा हो चुका था और वे बिकने के लिए तैयार थीं. लेकिन अचानक हुई बारिश ने सब पर खतरा पैदा कर दिया. उनका नुकसान न हो और गणेशोत्सव खुशी से मने, इसी सोच के साथ हम सब काम पर लग गए.”

त्योहारों का असली मकसद समाज को एक साथ लाना था, लेकिन आज यह मकसद बदलता जा रहा है. कराड की इस घटना ने त्योहारों के उस सच्चे उद्देश्य को एक बार फिर ज़िंदा कर दिया. यह सिर्फ मूर्तियां बचाने की घटना नहीं थी, बल्कि इसने सतारा के सामाजिक भाईचारे को और भी मज़बूत कर दिया.