मुंबई
मुंबई उच्च न्यायालय के खिलाफ मंगलवार को ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने धार्मिक स्थलों पर अवैध स्पीकरों के समर्थन और गंभीर प्रयास किये हैं, इसलिए कोई भी मुक्ति कारवाई शुरू करने की आवश्यकता नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और रॉबर्ट मार्क संदीपने की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता संतोष पचलाग द्वारा 2018 की परत का फ़्लोरिडा कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय के अगस्त 2016 में ध्वनि प्रदूषण प्रदूषण का उल्लंघन करने वाले अवैध लाउडस्पीकरों के आदेश का अनुपालन नहीं करने के लिए सरकार के खिलाफ कंपनी कारवाई की मांग की गई थी।
कोर्ट ने महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक रश्मि शुक्ला द्वारा पूर्व में प्रस्तुत हाफनामे का आरोप लगाया जिसमें कहा गया था कि इस साल अप्रैल में 2,812 लाउडस्पीकरों पर विभिन्न धार्मिक स्थानों का प्रयोग किया जा रहा था।
इनमें से 343 को हटा दिया गया और 831 लाउडस्पीकरों को लाइसेंस दे दिया गया। 767 लान्ट्स को नोटिस जारी कर उन्हें 'डेसिबल' सीमा से अधिक शोर नहीं करने की चेतावनी दी गई और 19 मामलों में आबंटन दर्ज किए गए।
सरकारी वकील नोज़ फ़्ले ने अदालत को बताया कि अवैध लाउडस्पीकरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की निगरानी के लिए पुलिस महानिरीक्षक स्तर के एक मानक अधिकारी की शिकायत की गई है।
पृथिवी ने कहा कि वह इस बात से सहमत हैं कि उच्च न्यायालय के 2016 के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है।
अदालत ने कहा, "यह स्पष्ट है कि अधिकारियों ने आदेश का अनुपालन करने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं। इस अदालत के आदेश का अनुपालन करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है।"
कोर्ट ने कहा, इसलिए किसी भी दिवालियापन का मामला नहीं बनता है और दिवालियापन याचिका निस्तारित की जाती है।