महाराष्ट्र : मानव स्वास्थ्य पर कबूतरों के प्रभाव के अध्ययन के लिए सरकार ने समिति गठित की

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-08-2025
Maharashtra: Government formed a committee to study the impact of pigeons on human health
Maharashtra: Government formed a committee to study the impact of pigeons on human health

 

मुंबई, 

मुंबई में कबूतरखानों को बंद किए जाने को लेकर हाल ही में शुरू हुए विवाद के बीच, महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई उच्च न्यायालय के निर्देश पर मानव स्वास्थ्य पर कबूतरों के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया है।

मुंबई उच्च न्यायालय ने 13 अगस्त को तीन अलग-अलग रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह कबूतरों से उत्पन्न स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों और सार्वजनिक स्थलों पर लोगों द्वारा उन्हें दाना डालने की परंपरा के प्रभाव का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन करने हेतु एक समिति बनाए।

इस निर्देश के अनुपालन में राज्य के शहरी विकास विभाग ने 22 अगस्त को आदेश जारी कर पुणे स्थित जन स्वास्थ्य सेवा निदेशक विजय कांदेवाड की अध्यक्षता में 13 सदस्यीय समिति गठित की है। इस समिति में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, महाराष्ट्र पशु कल्याण बोर्ड, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नागपुर के प्रतिनिधि, मुंबई के श्वसन रोग विशेषज्ञ, सूक्ष्मजीव विज्ञानी (माइक्रोबायोलॉजिस्ट) और बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं।

यह समिति विशेष रूप से कबूतरों की बीट (मल) से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करेगी। साथ ही, यह भी जांच करेगी कि क्या सार्वजनिक स्वास्थ्य से समझौता किए बिना कबूतरों को सीमित और नियत स्थानों पर नियंत्रित रूप से दाना खिलाने की अनुमति दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त समिति को इस विषय पर उचित नियम एवं दिशानिर्देश तैयार करने की जिम्मेदारी भी दी गई है।

सरकारी आदेश के अनुसार, समिति को अपनी पहली बैठक के 30 दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।

गौरतलब है कि हाल ही में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) द्वारा स्वास्थ्य कारणों से दादर स्थित एक कबूतरखाना बंद करने का निर्णय लिया गया था, जिसका जैन समुदाय के कई सदस्यों ने व्यापक रूप से विरोध किया था। अब सरकार के इस कदम को विवाद के समाधान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नीति निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।