नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली के एक अस्पताल ने ‘लिविंग विल क्लिनिक’ की शुरुआत की है, जो लोगों को एडवांस केयर प्लानिंग (ACP) की प्रक्रिया से मार्गदर्शन देगा। इस पहल का उद्देश्य है कि लोग पहले से ही अपने चिकित्सा उपचार संबंधी निर्णय दर्ज कर सकें, भरोसेमंद प्रतिनिधि नियुक्त कर सकें और यह सुनिश्चित कर सकें कि यदि कभी वे अपनी इच्छा व्यक्त करने में असमर्थ हों, तब भी उनका इलाज उनकी व्यक्तिगत मान्यताओं और मूल्यों के अनुरूप ही हो।
यह क्लिनिक सितंबर से कार्य शुरू करेगा। यह पहल भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में एक सांस्कृतिक बदलाव का संकेत है, जहाँ करुणा, आत्मनिर्भरता और गरिमा को चिकित्सा निर्णयों का केंद्र बनाया जा रहा है।
डॉ. (प्रो.) सुषमा भटनागर, क्लिनिकल लीड और सीनियर कंसल्टेंट – पेन, पेलिएटिव मेडिसिन व सपोर्टिव केयर, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स, तथा पूर्व प्रमुख, एनेस्थीसियोलॉजी, पेन और पेलिएटिव केयर, AIIMS दिल्ली ने कहा:"स्वास्थ्य देखभाल केवल बीमारियों के इलाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की गरिमा, उसकी आवाज़ और उसके मूल्यों के सम्मान से भी जुड़ा है। अक्सर परिवार संकट के समय असमंजस में रहते हैं कि उनका प्रियजन क्या चाहता था। यही अंतर भरने के लिए ‘लिविंग विल क्लिनिक’ बनाया गया है। यह मरीजों को पहले से अपनी इच्छा दर्ज करने का अधिकार देता है, परिवार को मानसिक शांति प्रदान करता है कि वे सही निर्णय ले रहे हैं और डॉक्टरों को यह विश्वास दिलाता है कि वे चिकित्सा नैतिकता और मरीज की इच्छा दोनों के अनुरूप कार्य कर रहे हैं।"
क्लिनिक में व्यक्तिगत परामर्श, पारिवारिक बैठकें, कानूनी दस्तावेज़ों पर मार्गदर्शन और निर्णय लेने के लिए प्रतिनिधि नामित करने में सहायता जैसी सेवाएँ उपलब्ध होंगी। इसका मुख्य फोकस लोगों को ‘लिविंग विल’ या एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव तैयार करने में मदद करना है। यह कानूनी रूप से मान्य दस्तावेज़ जीवन-रक्षक उपचार, पुनर्जीवन (resuscitation) और देखभाल की गुणवत्ता संबंधी इच्छाओं को दर्ज कर व्यक्ति की स्वायत्तता सुरक्षित करता है।
यह क्लिनिक डॉ. (प्रो.) सुषमा भटनागर के नेतृत्व में चलेगा।यह पहल ऐसे समय आई है जब भारत में चिकित्सा निर्णय दिन-ब-दिन जटिल और भावनात्मक रूप से कठिन होते जा रहे हैं। पेशेवर, सहानुभूतिपूर्ण और संरचित मार्गदर्शन देकर अपोलो हॉस्पिटल्स का उद्देश्य परिवारों पर बोझ कम करना, संकट की स्थिति में विवाद घटाना और यह सुनिश्चित करना है कि चिकित्सा निर्णय केवल चिकित्सकीय रूप से उचित ही न हों, बल्कि मरीज की गरिमा और मूल्यों के अनुरूप भी हों।