आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
कॉर्नियल ब्लाइंडनेस, जिसे कभी बुजुर्गों की समस्या माना जाता था, अब भारत के युवाओं के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में उभर रही है. हाल के वर्षों में किशोरों और युवाओं में इसके मामलों में तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है, जो विशेषज्ञों के अनुसार एक चिंताजनक और बड़ी हद तक रोकी जा सकने वाली स्थिति है.
दिल्ली में हाल ही में आयोजित इंडियन सोसाइटी ऑफ कॉर्निया एंड केरेटो-रिफ्रेक्टिव सर्जन्स (ISCKRS) मीट 2025 में देशभर के प्रमुख नेत्र विशेषज्ञों ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर की आंखों की स्वास्थ्य आपात स्थिति के रूप में उठाया.
AIIMS, नई दिल्ली के नेत्र विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और ISCKRS के महासचिव डॉ. राजेश सिन्हा ने कहा कि अब भारत में 30 वर्ष से कम आयु के युवाओं में नए कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के मामले बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं. उन्होंने चेतावनी दी—"हम एक खतरनाक बदलाव देख रहे हैं. साधारण संक्रमण, चोट और जागरूकता की कमी जैसे पूरी तरह टाले जा सकने वाले कारण स्थायी दृष्टिहानि में बदल रहे हैं.
कॉर्नियल ब्लाइंडनेस तब होती है जब आंख का पारदर्शी आगे का हिस्सा यानी कॉर्निया संक्रमण, चोट या पोषण की कमी के कारण धुंधला या क्षतिग्रस्त हो जाता है. भारत में कॉर्नियल अपैसिटी अब अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन चुकी है. हर साल 20,000 से 25,000 नए मामले सामने आते हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है.
विशेषज्ञों के अनुसार, युवाओं में इस समस्या के पीछे कई वजहें हैं—कृषि, मैनुअल लेबर या औद्योगिक कार्य से जुड़ी चोटें, जिनका समय पर और सही इलाज न होना; गांवों में अब भी मौजूद विटामिन ए की कमी, जो बच्चों और किशोरों में गंभीर कॉर्नियल क्षति का कारण बनती है; और ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में विशेष नेत्र देखभाल की सीमित उपलब्धता.