चेहल्लुम का सफ़ेद ताज़िया: शोक में लिपटा अमन का जुलूस

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 13-08-2025
Chehalum: White Tazia will be taken out on 14th August
Chehalum: White Tazia will be taken out on 14th August

 

-फ़िरदौस ख़ान 

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त की वजह से इस बार दिल्ली में चेहल्लुम पर निकलने वाला सफ़ेद ताज़िया एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को निकाला जाएगा. यह ताज़िया पुरानी दिल्ली स्थित पहाड़ी भोजला से शुरू होगा और जामा मस्जिद के गेट नम्बर एक से होता हुआ दक्षिण दिल्ली के ज़ोर बाग़ स्थित दरगाह शाहे-मर्दां पहुंचेगा.  

चेहल्लुम क्या है?

चेहल्लुम अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे और हज़रत अली अलैहिस्सलाम व हज़रत बीबी फ़ातिमा ज़हरा सलाम उल्लाह अलैहा के प्यारे बेटे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत का चालीसवां दिन है.
 
उनकी याद में हर साल हिजरी माह सफ़र की 20 तारीख़ को सफ़ेद ताज़िया निकाला जाता है, लेकिन इस बार यह ताज़िया 19 तारीख़ को निकाला जाएगा. यह ताज़िया शहर के विभिन्न इलाक़ों से होता हुआ दरगाह शाहे-मर्दां पहुंचता है, जहां इसे दफ़नाया जाता है. ताज़िया के जुलूस में शामिल लोग मातम करते हुए चलते हैं.
 
क़ाबिले-ग़ौर है कि मुहर्रम का महीना शुरू होते ही इमामबाड़ों में मजलिसे शुरू हो जाती हैं, जो चेहल्लुम तक जारी रहती हैं. इस दौरान कर्बला के शहीदों को याद किया जाता है. मजलिसों में नोहे और मर्सिये भी पढ़े जाते हैं. इस दौरान तबर्रुक बांटा जाता है.     
 
 
दरगाह शाहे-मर्दां 

दरगाह शाहे-मर्दां शिया मुसलमानों की ज़ियारतगाह है. अहले-बैत में अक़ीदत रखने वाले सुन्नी मुसलमान भी यहां ख़ूब आते हैं. मुग़लकाल में इस जगह को अलीगंज के नाम से जाना जाता था. यह नाम अव्वल इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के नाम पर रखा गया है. यह उनकी उपाधि है. शाहे-मर्दां का मतलब है बहादुरों का बादशाह. यहां सफ़ेद संगमरमर का एक पत्थर है, जिस पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के क़दमों के निशान हैं. इसे क़दम-ए-मुबारक या क़दम शरीफ़ के नाम से जाना भी जाता है.
 
 
दरगाह के परिसर में बीबी का रौज़ा या बीबी की चक्की, नवाब क़ुदसिया मस्जिद, मजलिस ख़ाना, लाल मस्जिद, दरगाह आरिफ़ अली शाह और इमामबाड़ा भी है. इस इमामबाड़े को बारादरी के नाम से भी जाना जाता है. इसके आसपास नक्कार ख़ाना, ज़ीनत की मस्जिद, बावली, कनाती मस्जिद, कर्बला और छोटी कर्बला भी है.
 
साम्प्रदायिक सद्भावना का प्रतीक है सफ़ेद ताज़िया 

सफ़ेद ताज़िया हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जनाज़े का प्रतीक है. यह सफ़ेद रंग का होता है, इसलिए इसे सफ़ेद ताज़िया कहा जाता है. सफ़ेद रंग अमन, पाकीज़गी और शोक का प्रतीक भी है.
 
ताज़िया साम्प्रदायिक सद्भावना का भी प्रतीक है. ताज़िया के प्रति हिन्दू महिलाओं में भी बहुत श्रद्धा है. वे ताज़िया को प्रणाम करती हैं. बहुत से स्थानों पर वे इसकी पूजा-अर्चना भी करती हैं. वे अपने बच्चों से इसे स्पर्श करके आशीर्वाद लेने को कहती हैं. उनका मानना है कि ऐसा करने से उनके जीवन में सुख-समृद्धि आएगी और उनके दुख-दर्द ख़त्म हो जाएंगे.  
 
  
कर्बला का संदेश 

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यज़ीद के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की. उनकी क़ुर्बानी ने हमें ये सिखाया कि हक़ के लिए लड़ाई लड़ना ज़िन्दगी की सबसे बड़ी फ़तेह है, चाहे अंजाम शहादत की क्यों न हो. हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- “मेरी क़ुर्बानी का मक़सद समझो, वरना तुम्हारे ग़म और नोहागिरी का कोई फ़ायदा नहीं होगा, चाहे तुम लोग रो-रोकर ग़श खा जाओ.” आप अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- “अगर तुम हक़ पर हो, तो किसी को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है. वक़्त ख़ुद तुम्हारी गवाही देगा कि तुम हक़ पर हो.”  
 
 
कर्बला में यज़ीद के हमले से पहले हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने साथियों से कह दिया था कि जो उन्हें छोड़कर जाना चाहे वह जा सकता है. उनके साथियों ने अपनी जानें क़ुर्बान कर दीं, लेकिन अपने इमाम का साथ नहीं छोड़ा. आप अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- “बितहक़ीक़ मैं अपने असहाब से ज़्यादा वफ़ादार और बेहतर असहाब नहीं जानता.”
 
इससे यह सबक़ भी मिलता है कि किसी का साथ दो, तो अपनी आख़िरी सांस तक उसका साथ निभाओ. सच्चा दोस्त और साथी वही होता है, जो मुश्किल से मुश्किल वक़्त में भी तुम्हें अकेला न छोड़े.        
 
ग़म और अश्कबार
    
जो भी कर्बला का वाक़िया सुनता है, उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं. हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- “मैं आंसुओं का मारा हूं, जो भी मोमिन मुझे याद करे, उसके आंसू जारी हो जाएंगे.” 
 
हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम अपने वालिद पर इतना रोये कि उन्हें तारीख़ के पांच रोने वालों में रखा गया और जब भी आपसे इतना ज़्यादा रोने के बारे में पूछा जाता, तो आप कर्बला के वाक़िये को याद करते और फ़रमाते- “मुझे ग़लत न कहो.
 
हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने अपना एक बेटा खोया था. वे इतना रोये थे कि ग़म से उनकी आंखें सफ़ेद हो गई थीं, जबकि उन्हें यक़ीन था कि उनका बेटा ज़िन्दा है. मैंने अपनी आंखों से देखा कि आधे दिन में मेरे परिवार के चौदह लोगों का गला काट दिया गया, फिर भी तुम कहते हो कि मैं उनके ग़म को दिल से निकाल दूं. 
 
 
आप अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं- “मैं उनका बेटा हूं जिन पर आसमान के फ़रिश्तों ने आंसू बहाये. मैं उनका बेटा हूं जिन पर जिन्नात ने ज़मीन पर और परिन्दों ने हवा में आंसू बहाये. हज़रत शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार लिखते हैं- “रोने वाले वही हैं, जिनके दिल इश्क़ से लबरेज़ हैं. और जो हुसैन अलैहिस्सलाम पर रोते हैं, वही हक़ीक़त-ए-इश्क़ से आशना हैं.”      
 
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने नवासों हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से बेपनाह मुहब्बत करते थे. एक हदीस के मुताबिक़ कुछ लोग रसूल अल्लाह के साथ एक मेहमानी में गए. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन सब लोगों से आगे चल रहे थे. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रास्ते में हुसैन अलैहिस्सलाम को देखा. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चाहा कि उन्हें अपनी गोद में उठा लें, लेकिन हुसैन अलैहिस्सलाम एक तरफ़ से दूसरी तरफ़ भाग जाते थे.
 
यह देखकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराये और उन्हें अपनी गोद में उठा लिया. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक हाथ को उनके सिर के पीछे और दूसरे हाथ को ठुड्डी के नीचे लगाया और अपने पाक होठों से उन्हें चूमा और फ़रमाया- “हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं. जो भी हुसैन को दोस्त रखता है, अल्लाह उसे दोस्त रखता है.
 
कर्बला की सरज़मीन 

जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कर्बला से गुज़र हुआ तो रवायत ये है कि आपने मक़तल का तवाफ़ किया और फ़रमाया- “ये आशिक़ों की क़ुर्बानी की सरज़मीन है, जिनके मुक़ाम और मंज़िलात को न कोई पा सका है, और न बाद में आने वाले पा सकेंगे.”     
 
 
जब हज़रत नूह अलैहिस्साम की किश्ती गिर्दाब यानी भंवर में आई, तो उन्होंने अल्लाह तआला से इसका सबब पूछा. जवाब मिला कि ये सरज़मीन कर्बला है और जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने हज़रत इमाम हुसैन की शहादत और उनके अहल व अयाल के असीर बनाए जाने की ख़बर दी, तो किश्ती में गिरया-ए-मातम बरपा हो गया और आन हज़रत ने भी गिरया किया.
 
(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)