Increasing corneal blindness among youth: Experts' warning and preventive measures
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
नई दिल्ली में हाल ही में संपन्न इंडियन सोसाइटी ऑफ कॉर्निया एंड केरेटो-रिफ्रैक्टिव सर्जन्स (ISCKRS) की वार्षिक बैठक में एक चिंताजनक तथ्य सामने आया—कॉर्नियल अंधापन, जिसे अब तक ज्यादातर बुजुर्गों की समस्या माना जाता था, अब भारत के युवाओं में तेजी से फैल रहा है। यह न केवल आंखों की रोशनी छीन रहा है बल्कि लाखों परिवारों के भविष्य पर भी गहरा असर डाल रहा है.
क्या है कॉर्नियल अंधापन
कॉर्नियल अंधापन तब होता है जब आंख के पारदर्शी हिस्से—कॉर्निया—पर धुंधलापन या स्थायी निशान पड़ जाते हैं। इसका कारण संक्रमण, चोट, या पोषण की कमी हो सकती है. एक बार जब कॉर्निया गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाए, तो व्यक्ति की दृष्टि आंशिक या पूरी तरह से खत्म हो सकती है.
युवाओं में बढ़ने के कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि देश में हर साल लगभग 20,000 से 25,000 नए कॉर्नियल अंधापन के मामले सामने आते हैं, और अब इनमें बड़ी संख्या 30 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की है. इसके प्रमुख कारण हैं.
खेती, फैक्ट्री या निर्माण कार्य में लगी चोटें, जो अक्सर समय पर इलाज न मिलने से संक्रमण में बदल जाती हैं.
विटामिन ए की कमी, जो अब भी ग्रामीण और गरीब इलाकों में बच्चों और किशोरों को प्रभावित कर रही है.
आंखों की स्वच्छता और शुरुआती लक्षणों के प्रति जागरूकता की कमी.
ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में विशेषज्ञ डॉक्टर और आधुनिक इलाज की सीमित पहुंच.
डॉ. राजेश सिन्हा, प्रोफेसर (ऑप्थाल्मोलॉजी), एम्स, ने बैठक में कहा, “हम एक खतरनाक बदलाव देख रहे हैं. पहले यह समस्या बुजुर्गों में ज्यादा होती थी, लेकिन अब युवा पूरी तरह से बचाई जा सकने वाली वजहों से अपनी आंखों की रोशनी खो रहे हैं.
इलाज की चुनौती
भारत में हर साल एक लाख से ज्यादा कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन देश में केवल करीब 40,000 ट्रांसप्लांट ही हो पाते हैं. इस कमी का कारण है डोनर कॉर्निया की कमी, प्रशिक्षित डॉक्टरों की सीमित संख्या, और पर्याप्त सुविधाओं वाले आई बैंक का अभाव.
डॉ. इकेडा लाल, सीनियर कंसल्टेंट, सर गंगाराम हॉस्पिटल, का कहना है, “2025 में भी हम हज़ारों युवाओं की आंखें ऐसे कारणों से खो रहे हैं जिन्हें रोका जा सकता था। अब इसको पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी मानकर राष्ट्रीय स्तर पर रणनीति बनाने की जरूरत है.
बचाव ही सबसे बड़ा उपाय
विशेषज्ञों के मुताबिक, शुरुआती लक्षण जैसे आंखों में लालपन, धुंधला दिखना या जलन को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए. ग्रामीण और स्कूल स्तर पर स्वास्थ्य जांच जरूरी है, ताकि समय रहते इलाज हो सके.
ISCKRS की सिफारिशें
बैठक में कई अहम सुझाव रखे गए, जिनमें शामिल हैं
आंखों की स्वच्छता और चोट से बचाव पर राष्ट्रीय जागरूकता अभियान चलाना.
जोखिम भरे कामों में लगे लोगों के लिए सस्ती और सुलभ सुरक्षा चश्मे उपलब्ध कराना.
50 से 100 नए आई बैंक की स्थापना और अगले पांच साल में 1,000 नए कॉर्नियल विशेषज्ञ तैयार करना.
टेली-ऑप्थाल्मोलॉजी और मोबाइल आई केयर क्लीनिक के जरिए ग्रामीण इलाकों तक इलाज पहुंचाना.
स्कूलों में वार्षिक नेत्र-जांच और विटामिन ए सप्लीमेंटेशन कार्यक्रम को मजबूत करना.
कॉर्नियल अंधापन की बढ़ती दर यह चेतावनी है कि भारत को अब आंखों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी होगी. यह केवल चिकित्सा का विषय नहीं, बल्कि युवाओं के भविष्य और देश की कार्यक्षमता से जुड़ा मुद्दा है. समय रहते कदम उठाए गए, तो हज़ारों आंखें अंधेरे में जाने से बच सकती हैं.