The bond of humanity on Rakshabandhan: An emotional story of two families connected with organ donation
अर्सला खान/नई दिल्ली
त्योहार अक्सर रिश्तों और परंपराओं को और गहरा करने का अवसर बनते हैं, लेकिन इस बार का रक्षाबंधन एक ऐसी घटना का गवाह बना, जिसने न सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते की परिभाषा को नया अर्थ दिया बल्कि मानवता, प्रेम और इंसानियत की भी अद्भुत मिसाल पेश की. इस कहानी के केंद्र में हैं वलसाड की 9 वर्षीय बच्ची रिया बॉबी मिस्त्री और मुंबई की 15 वर्षीय अनामता अहमद, जिनका रिश्ता खून का नहीं, बल्कि जीवनदान के पवित्र बंधन का है.
कुछ समय पहले रिया बॉबी मिस्त्री एक हादसे का शिकार हो गईं, जिसके बाद उन्हें ब्रेनडेड घोषित कर दिया गया। परिवार के लिए यह पल बेहद दर्दनाक था, लेकिन उन्होंने अपने गहरे दुख के बीच एक बड़ा और साहसी फैसला लिया. रिया के अंगों को दान करने का. इस निर्णय ने न केवल कई ज़िंदगियों को नया जीवन दिया, बल्कि यह भी साबित किया कि इंसानियत हर दर्द से बड़ी होती है.
अंगदान पाने वालों में से एक थीं मुंबई की किशोरी अनामता अहमद, जो लंबे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं. रिया के हाथ का दान मिलने के बाद अनामता की ज़िंदगी में फिर से उम्मीद और खुशियां लौट आईं. अनामता और उनके परिवार के लिए यह उपहार अमूल्य था, और उन्होंने तय किया कि वे इस रिश्ते को हमेशा सम्मान देंगे.
रक्षाबंधन के अवसर पर अनामता ने यह विशेष दिन रिया के भाई शिवम के साथ बिताने का निर्णय लिया. अपने परिवार के साथ वे वलसाड पहुंचीं और शिवम की कलाई पर राखी बांधकर इस बंधन को और मजबूत कर दिया. यह क्षण सिर्फ एक त्योहार मनाने का नहीं था, बल्कि यह उन अदृश्य रिश्तों की पहचान था जो दिल से दिल को जोड़ते हैं.
राखी बांधते समय अनामता की आंखों में आभार और अपनापन झलक रहा था, वहीं शिवम और उनका परिवार भी इस gesture से भावुक हो उठा। वहां मौजूद सभी लोगों के लिए यह दृश्य बेहद मार्मिक था. एक ओर रिया की कमी का दर्द था, तो दूसरी ओर उनके अंगदान से मिली नई ज़िंदगी की खुशी। यह दो भावनाओं का ऐसा संगम था, जिसने हर किसी को गहराई से छू लिया.
यह घटना केवल दो परिवारों के मिलने की कहानी नहीं, बल्कि समाज के लिए एक बड़ा संदेश है. अंगदान आज भी हमारे देश में जागरूकता की कमी के कारण उतना व्यापक नहीं है जितना होना चाहिए. लाखों लोग हर साल अंग प्रत्यारोपण का इंतजार करते हैं, लेकिन दाताओं की कमी के कारण कई की जान चली जाती है। रिया के परिवार ने दिखाया कि अगर हम अपने दुख को किसी और की खुशी में बदल दें, तो हम अनगिनत जिंदगियां बचा सकते हैं.
रिया और अनामता की यह कहानी धर्म और समाज की सीमाओं को भी लांघ जाती है. एक हिंदू परिवार की बेटी का अंगदान एक मुस्लिम परिवार की बेटी को नया जीवन देता है—यह अपने आप में एक अद्भुत उदाहरण है कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है. इस मुलाकात में त्योहार का रंग, भाई-बहन का स्नेह और दिलों को जोड़ने वाली करुणा—सब कुछ एक साथ देखने को मिला.
रिया के माता-पिता ने इस मौके पर कहा कि वे चाहते हैं उनकी बेटी की याद सिर्फ एक दुखद घटना के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रेरणा के रूप में बनी रहे। वहीं, अनामता के माता-पिता ने रिया के परिवार का आभार जताते हुए कहा कि उनका यह कदम उनके लिए हमेशा आशीर्वाद की तरह रहेगा.
समाज के लिए यह घटना एक जागरूकता अभियान जैसी है. यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि त्योहार सिर्फ रस्मों तक सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि उन्हें ऐसे अवसरों में बदलना चाहिए जो दूसरों की जिंदगी में रोशनी और उम्मीद भर दें. अंगदान के बारे में जागरूकता फैलाना, अधिक से अधिक लोगों को इसके लिए प्रेरित करना. यही इस घटना का असली संदेश है.
अंत में, इस रक्षाबंधन ने साबित कर दिया कि भाई-बहन का रिश्ता सिर्फ जन्म से नहीं, बल्कि दिल से भी बनता है. शिवम और अनामता का यह बंधन आने वाले समय में न जाने कितनों को प्रेरित करेगा. यह कहानी हमें याद दिलाती है कि जब हम अपना थोड़ा सा भी हिस्सा किसी और को दे देते हैं. चाहे वह समय हो, मदद हो या जीवन का कोई अंग. तो हम सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत को मजबूत करते हैं.
इस साल का रक्षाबंधन इसलिए यादगार रहेगा, क्योंकि इसने हमें सिखाया कि असली बंधन वो है, जो किसी जाति, धर्म, भाषा या भौगोलिक सीमा से बंधा नहीं होता, बल्कि सिर्फ और सिर्फ प्रेम और त्याग से जुड़ा होता है. रिया और अनामता की कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसी मिसाल है, जिसे बार-बार दोहराया जाएगा.यह सिर्फ एक त्योहार की कहानी नहीं, बल्कि एक अमर बंधन की गाथा है, जिसने दो परिवारों को हमेशा के लिए एक साथ जोड़ दिया.