आवाज द वाॅयस /अलीगढ़
“यह अंत नहीं, शुरुआत थी.” – इन भावपूर्ण शब्दों के साथ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) ने मदरसा-उल-उलूम की 150वीं वर्षगांठ का भव्य आयोजन सर सैयद अकादमी परिसर में किया. यही वह संस्थान है, जिसकी नींव 24 मई 1875 को सर सैयद अहमद ख़ान ने डाली थी और जो आगे चलकर मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (1877) और फिर 1920 में AMU के रूप में स्थापित हुआ.
यह अवसर न केवल एक संस्थान की स्मृति का उत्सव था, बल्कि उस क्रांतिकारी विचारधारा का स्मरण था जिसने भारतीय मुस्लिम समाज को अंधकार से उजाले की ओर अग्रसर किया.
इस ऐतिहासिक आयोजन के मुख्य वक्ता और मुख्य अतिथि थे फैज़ अहमद किदवई, आईएएस, महानिदेशक नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) और एएमयू के पूर्व छात्र.
उन्होंने मदरसा-उल-उलूम की स्थापना को “राष्ट्रीय पुनर्जागरण की पहली कड़ी” बताया. कहा कि—“हम MAO कॉलेज और AMU के महत्व को नहीं समझ सकते जब तक हम उस छोटे से मदरसे की विनम्र शुरुआत की अहमियत को नहीं पहचानते..
उन्होंने यह भी कहा कि 1857 की क्रांति के बाद की परिस्थितियों, जैसे फारसी भाषा की समाप्ति, पारंपरिक शिक्षा का ह्रास और मुसलमानों की सरकारी सेवाओं में गिरती हिस्सेदारी ने सर सैयद को आधुनिक शिक्षा की ओर मोड़ा.
MAO कॉलेज: जहां ऑक्सफोर्ड-कैंब्रिज के विद्वान पढ़ाते थे
किदवई ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की वास्तुशिल्प सुंदरता और अकादमिक उत्कृष्टता को याद किया, जहां ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर भी पढ़ाने आते थे. उन्होंने बताया कि कैसे AMU का वातावरण ज्ञान, संवाद और समावेशन को बढ़ावा देने वाला रहा है.
उन्होंने सर सैयद द्वारा स्थापित कई संस्थानों और पत्रिकाओं का भी ज़िक्र किया —
Scientific Society (1864)
Loyal Mohammedan of India (1860)
Aligarh Institute Gazette (1866)
Tehzibul Akhlaq (1870)
Mohammedan Educational Conference (1886)
इन प्रयासों ने भारतीय मुस्लिम समाज को सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक जागरूकता की दिशा में अग्रसर किया.अपने समापन वक्तव्य में फैज़ किदवई ने कहा:“शिक्षा भी एक तरह की उड़ान है – यह क्षितिज को विस्तार देती है, कल्पना को आज़ाद करती है और मानवता को ऊंचा उठाती है. AMU ने हमें ऐसी उड़ानों का नैतिक, तकनीकी और सामाजिक नेतृत्व करना सिखाया है.”
समारोह की अध्यक्षता करते हुए AMU की कुलपति प्रो. नईमा ख़ातून ने मदरसा-उल-उलूम की स्थापना को 1857 के बाद मुस्लिम समुदाय की आत्मनिर्भरता की दिशा में पहला साहसिक कदम बताया.यह केवल एक शिक्षण संस्थान नहीं था, बल्कि एक आंदोलन था जो पूर्वी ज्ञान और पश्चिमी विवेक का संगम था.
उन्होंने साक्षरता, आलोचनात्मक सोच, धार्मिक सहिष्णुता और नागरिक नैतिकता को सर सैयद की शिक्षण विचारधारा का मूल बताया.
समारोह के दौरान सर सैयद के वंशजों — शेहरयार मसूद और शाहरनाज़ मसूद — ने सर सैयद और उनके परिवार की वैयक्तिक वस्तुएं AMU को भेंट कीं, जिन्हें विश्वविद्यालय द्वारा शोध और संग्रह के साथ सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया गया.
पूरे वर्ष चलेगा जश्न
प्रो. ख़ातून ने घोषणा की कि मदरसा-उल-उलूम की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में पूरे वर्ष विश्वविद्यालय में विभिन्न शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.
उन्होंने AMU में हाल ही में शुरू किए गए NEP आधारित पाठ्यक्रम, 75 SWAYAM कोर्स, GIAN प्रोग्राम्स, और उन्नत उपकरणों से युक्त प्रयोगशाला की भी जानकारी दी.
शिक्षा, नवाचार और परंपरा का संगम
प्रो. मोहम्मद मोहसिन ख़ान, कुलपति (प्रो) ने मदरसा-उल-उलूम को “वैश्विक परिवर्तन की चुनौती में शिक्षा की प्रासंगिकता और नवाचार” का प्रतीक बताया. उन्होंने कहा कि—“हमें परंपरा के संरक्षक के साथ-साथ नवाचार और समावेशन के वाहक बनना होगा.”प्रो. ज़किया सिद्दीकी, विशिष्ट शिक्षाविद्, ने AMU की यात्रा में महिला विद्वानों और समाजसेविकाओं के योगदान को रेखांकित किया.
सर सैयद अकादमी की ऐतिहासिक प्रस्तुति
प्रो. शफ़े किदवई, निदेशक, सर सैयद अकादमी ने मदरसा-उल-उलूम की ऐतिहासिक यात्रा पर प्रकाश डाला और बताया कि—“यह एक ऐसा बीज था, जिससे अलीगढ़ आंदोलन का वटवृक्ष फूटा। यह सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि एक सभ्यता का पुनर्जागरण था.”
इस अवसर पर फ़िरोज़ नक़वी द्वारा लिखित मोनोग्राफ “Sir Syed in Agra” का भी अनावरण किया गया. धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मोहम्मद शाहिद, उप निदेशक, सर सैयद अकादमी ने किया.