From darkness to light: Saqib Gore's campaign to spread light
महाराष्ट्र के बदलापुर से एक साधारण इंसान, साकिब गोरे, ने अपनी जिंदगी को एक असाधारण मिशन के लिए समर्पित कर दिया है — आंखों की रोशनी खो चुके लोगों को दोबारा दुनिया देखने का मौका देना. पिछले तीन दशकों में, उन्होंने 26 लाख से ज्यादा लोगों की आंखों की जांच करवाई, 17 लाख से अधिक लोगों को मुफ्त चश्मे बांटे और 63,000 से ज्यादा मोतियाबिंद के ऑपरेशन करवा कर लोगों की जिंदगी बदल दी.यहां प्रस्तुत है फजल पठान की साकिब गोरे पर एक विस्तृत रिपोर्ट
साकिब का यह सफर एक भावुक क्षण से शुरू हुआ, जब उन्होंने अपनी नानी ज़ोहरा को खोया. ज़ोहरा 35 वर्षों से मोतियाबिंद के कारण अंधी थीं. वह बताते हैं, “उनकी मौत के समय उनके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन मेरे मन में एक गहरी टीस थी कि मैं उनकी आंखों की रोशनी वापस नहीं ला सका.” इसी भावना ने उनके भीतर एक संकल्प को जन्म दिया — "लोगों को जीते जी मुस्कुराते हुए देखना है."
मामूली शुरुआत से असाधारण बदलाव तक
सातवीं तक पढ़े साकिब ने ट्रक क्लीनर और कुली के रूप में काम करना शुरू किया था. जैसे-जैसे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई, उन्होंने 1992 में पहला नेत्र जांच शिविर आयोजित किया.
उस समय ₹10 में चश्मे देने की योजना बनाई गई, लेकिन अधिकतर लोग इतना भी खर्च नहीं कर पाए. उन्हें समझ में आया कि गरीबी ही सबसे बड़ी बाधा है.
उन्होंने तुरंत अगला शिविर लगाया और चश्मे मुफ्त बांटे — 275 लोग आए, जिनकी आंखों में सालों बाद रोशनी लौटी.
'विजन फ्रेंड साकिब गोरे' बना उम्मीद की किरण
इस सफलता ने नींव रखी उनके संगठन “विजन फ्रेंड साकिब गोरे” की, जो अब ठाणे, पालघर और रायगढ़ के 1,750 गांवों में सक्रिय है. संगठन न केवल आंखों की जांच करता है बल्कि मोतियाबिंद के मरीजों को अस्पताल तक लाना, ऑपरेशन करवाना, रहना-खाना और दवाइयां — सब कुछ मुफ्त प्रदान करता है. वे कहते हैं, “जब पट्टी हटती है और मरीज दोबारा देखता है, उसकी आंखों के आंसू और गले लगना — यही मेरी असली कमाई है.”
भारत में अंधता की भयावह तस्वीर
भारत में हर साल 20 लाख से ज्यादा नए मोतियाबिंद के मामले सामने आते हैं. इनमें से 63% इलाज के अभाव में अंधे हो जाते हैं। देश में 80% दृष्टिहीनता का कारण सिर्फ मोतियाबिंद है. वहीं, पूरी दुनिया में 2.5 अरब लोग किसी न किसी रूप में दृष्टि हानि से पीड़ित हैं, और 1.1 अरब लोगों को बुनियादी चश्मे तक नहीं मिल पाते.
साकिब बताते हैं, 'मोतियाबिंद का इलाज बेहद आसान है, लेकिन जब इलाज नहीं हो पाता, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, तब परिणाम बेहद दर्दनाक होते हैं.'
घर-घर जाकर भरोसे का निर्माण
उनकी टीम गांवों में घर-घर जाकर लोगों से बात करती है, समझाती है, और विश्वास बनाती है. वे स्वीकार करते हैं कि उन्हें कई बार अस्वीकृति झेलनी पड़ती है, लेकिन उनका मिशन उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान
2016 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उनके शिविर का दौरा किया और सराहना की। बाद में साकिब को विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय अंधता निवारण एजेंसी के सम्मेलन में नेपाल आमंत्रित किया गया, जहां उनके ₹33 के चश्मे — "देवाभाऊ" — ने सबका ध्यान खींचा। 140 देशों के 700 प्रतिनिधियों में से उन्हें "सिस्टम लीडर अवॉर्ड" मिला — जो सिर्फ एक व्यक्ति को ही दिया गया.
आगे की योजनाएं
अब साकिब बदलापुर में एक सामाजिक केंद्र बना रहे हैं, जहां नेत्र स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाई जाएगी. वे सरकार की अंधता निवारण योजनाओं से जुड़कर एक कॉल सेंटर शुरू करना चाहते हैं, जहां कोई भी जरूरतमंद फोन कर मुफ्त मोतियाबिंद ऑपरेशन की सुविधा ले सके.
उनका मानना है कि affordability सबसे बड़ी चुनौती है. “भारत की 40% आबादी को चश्मों की जरूरत है, लेकिन वे खरीद नहीं पाते. मैंने ₹9 में चश्मा देना शुरू किया, लेकिन मेरा सपना है कि यह और भी सस्ता हो।” उनकी “विजन फ्रेंड आईवियर” दुकानों से चश्मे अब ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, श्रीलंका, ब्राज़ील, कनाडा, साउथ अफ्रीका, नेपाल और भूटान तक भेजे जा रहे हैं. हर कमाई का पैसा संगठन में लगाया जाता है ताकि और ज्यादा लोगों को मुफ्त आंखों की देखभाल मिल सके.
उम्मीद की रोशनी
साकिब गोरे की यात्रा एक जीवंत उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति की पीड़ा एक आंदोलन बन सकती है. उन्होंने न केवल आंखों की रोशनी लौटाई, बल्कि लोगों की ज़िंदगी में सम्मान, आत्मविश्वास और अवसर भी वापस दिए.
आज, जब देश और दुनिया में दृष्टिहीनता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, साकिब गोरे जैसे लोग रोशनी की एक नई राह दिखा रहे हैं — निस्वार्थ, अविचल और प्रेरणादायक.