आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
नागरकुरनूल जिले के बालमूर मंडल के कोंडानागुला गांव के चिन्ता परमेश ने अपने जीवन के संघर्षों को पीछे छोड़ते हुए एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. कभी महज ₹1500 सालाना की बाल मजदूरी करने वाले परमेश को उस्मानिया यूनिवर्सिटी (OU) ने पीएचडी की डिग्री से सम्मानित किया है. 14 साल की उम्र में पढ़ाई की शुरुआत करने वाले परमेश ने 35 साल की उम्र में अपनी थीसिस पूरी कर यह डिग्री प्राप्त की.
4 जुलाई को उनके गांव में उत्सव का माहौल था. गांव के लोगों और जिला प्रशासन ने मिलकर परमेश का जोरदार स्वागत किया. उन्हें पहले ग्राम पंचायत द्वारा सम्मानित किया गया और फिर नागरकुरनूल के कलेक्टर बदावथ संतोष ने अपने कार्यालय में उन्हें सम्मानित किया. शुक्रवार को, मुख्यमंत्री की शुभकामनाओं के अगले ही दिन, परमेश स्थानीय मीडिया में छाए रहे और बधाइयों में व्यस्त रहे.
परमेश के माता-पिता, चिन्ता माशन्ना और चिन्ता तिरुपथम्मा, दूसरों के खेतों में मजदूरी करते थे और उनके पास खुद की जमीन नहीं थी. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण बचपन में परमेश को छोटे भाई-बहनों की देखभाल के लिए स्कूल नहीं भेजा गया. बाद में उन्हें काम पर लगा दिया गया, लेकिन पढ़ाई के प्रति उनकी ललक कभी कम नहीं हुई.
परमेश बताते हैं, "मुझे पढ़ने का बहुत मन था। इसलिए मैंने स्कूल यूनिफॉर्म सिलवाई, जबकि मैं स्कूल नहीं जाता था।" यही पढ़ने की चाहत उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट बनी. एमवी फाउंडेशन के एक स्वयंसेवक ने उनकी स्थिति को समझा और उन्हें ब्रिज कोर्स में दाखिला दिलाया. इसके बाद उन्होंने सीधे 7वीं कक्षा की परीक्षा दी और फिर बालमूर स्थित जोडपीएचएस स्कूल में पढ़ाई शुरू की.
लगातार मेहनत और लगन से पढ़ाई करते हुए उन्होंने उच्च शिक्षा की राह पकड़ी और अंततः पीएचडी की डिग्री हासिल की। आज परमेश उन बच्चों के लिए प्रेरणा बन गए हैं जो किसी न किसी कारणवश पढ़ाई छोड़ देते हैं. उनका कहना है, "मैं चाहता हूं कि कोई बच्चा मेरी तरह संघर्ष न करे। वे पढ़ाई जारी रखें और अपने सपनों को पूरा करें."
चिन्ता परमेश की यह यात्रा इस बात की मिसाल है कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी बाधा रास्ता नहीं रोक सकती.