ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
"सावन में तो हम लहसन और प्याज़ तक का सेवन नहीं करते. भोले आ रहे हैं, अच्छा लग रहा है. भोले की सेवा करना अच्छा लगता है. हम लोग पुरे साल कांवड़ यात्रा का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं और भोले के भक्तों का दिल से स्वागत करते हैं. हमारा मुस्लिम परिवार पिछले 30 सालों से लगातार हर साल शिव भक्तों के लिए हरिद्वार में कांवड़ तैयार करते हैं." कांवड़ बनाने वाले मुस्लिम कारीगरों ने बताया.
कांवड़ यात्रा धार्मिक आस्था का प्रतीक है. यह हर साल सावन के पवित्र महीने में लाखों शिव भक्तों द्वारा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान शिव भक्त भोले बाबा के जयकारों के साथ भक्त विभिन्न पवित्र स्थानों से गंगाजल लेकर अपनी यात्रा शुरू करते हैं और इसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए पूरा करते हैं.
कांवड़ बनाने वाले मुस्लिम कारीगरों ने बताया कि ये कार्य उनके लिए आनंददायक भी है. और ये गंगा जमुनी तहजीब का प्रतीक है. हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की निशानी भी है. श्रावण मास के पावन अवसर पर जब देश भर के शिवभक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं, तब उनके लिए जो कांवड़ें बनाई जाती हैं, उनमें एक खास योगदान मुस्लिम कारीगरों का भी होता है.
उत्तर भारत के कई हिस्सों में विशेष रूप से मेरठ, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर और मुरादाबाद जैसे शहरों में मुस्लिम कारीगर पीढ़ियों से कांवड़ बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. इन कारीगरों का कहना है कि, "हमारे लिए ये काम सिर्फ रोज़गार का जरिया नहीं है, बल्कि इसमें हमें आत्मिक सुख मिलता है. जब हम देखते हैं कि हमारे हाथों से बनी कांवड़ को लेकर श्रद्धालु ‘बोल बम’ के जयघोष के साथ यात्रा पर निकलते हैं, तो हमें गर्व होता है कि हमने इस धार्मिक यात्रा में अपनी भूमिका निभाई."
कई कारीगरों ने यह भी बताया कि उनके परिवार में यह परंपरा वर्षों से चलती आ रही है. पिता से बेटे तक यह हुनर हस्तांतरित होता गया और अब नई पीढ़ी भी इस काम में रुचि ले रही है. वे कहते हैं कि यह गंगा-जमुनी तहजीब का सजीव उदाहरण है – जहां धर्म और जात-पात की सीमाओं को लांघकर लोग एक-दूसरे की आस्थाओं का सम्मान करते हैं.
एक कारीगर ने मुस्कुराते हुए कहा, "हम रमज़ान में रोज़े रखते हैं, और सावन में कांवड़ बनाते हैं. यही तो असली भारत है – जहां एकता और भाईचारा हर रंग में नजर आता है." कांवड़ यात्रा में इन मुस्लिम कारीगरों का योगदान केवल भौतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. यह भारत की उस साझा संस्कृति की मिसाल है, जो विविधताओं के बावजूद एकता में विश्वास रखती है.
एक पारंपरिक कांवड़ बांस से बनी होती है और इसके पांच मुख्य घटक होते हैं: टोकरी (टोकरी), ढक्कन (ढक्कन), तिपाई (तिपाई), कम्मच (कांवड़ के दोनों सिरों पर बांस से बना एक मेहराब) और डंडा (हाथ के घड़े और कांवड़ ले जाने के लिए लकड़ी की छड़ी). हरिद्वार में कांवड़ कारीगरों की दिल को छू लेने वाली कहानी जानें, जो अपने सावधानीपूर्वक तैयार किए गए कांवड़ों के माध्यम से हिंदू-मुस्लिम सद्भाव को बढ़ावा देते हैं. विवादों के बावजूद, उनका काम वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान एकता और भाईचारे का प्रतीक है.