समारोह की शुरुआत प्रो. नुसरत नबी ने की, जिन्होंने श्रोताओं को उर्दू साहित्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं सांस्कृतिक महत्व से परिचित कराया. उसके बाद मंच पर शांतमनु आए, जो समय की मांग और समकालीन शिक्षा में भाषाई एवं सांस्कृतिक संवेदनशीलता की आवश्यकता पर बलपूर्वक बोले.
उन्होंने उर्दू को केवल एक भाषा कहकर सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे भावनात्मक गहराई, काव्यात्मक कल्पना और सामाजिक जागरूकता का द्योतक बताया. साथ ही कॉलेज और उर्दू विभाग की भूमिका और मैत्रीपूर्ण प्रयासों की प्रशंसा करते हुए, उन्होंने ऐसी अंतरराष्ट्रीय पहल को प्रेरणादायी और दूरदर्शी बताया.
जीडीसी गांदरबल की प्रधानाचार्या, प्रो. (डॉ.) फौज़िया फातिमा ने स्वागत भाषण में महाविद्यालय के विकास, संकाय-विस्तार और अकादमिक उपलब्धियों का परिचय दिया. 2002 में मात्र 335 छात्र-छात्राओं से शुरू हुआ यह संस्थान आज 2100 से अधिक नामांकनों वाला एक बहु-विषयक केंद्र बन चुका है, जहां 35 सामान्य पाठ्यक्रम के साथ-साथ 38 कौशल आधारित कार्यक्रम भी उपलब्ध हैं.
182 पुरातन चिनार के वृक्षों से सुसज्जित हरे-भरे परिसर ने इसे ग्रीन चैंपियन पुरस्कार से सम्मानित किया है, जिसका उल्लेख उन्होंने गर्व के साथ किया.आयोजन का प्रबंधन करने वाली डॉ. जमशीदा अख्तर ने सम्मिलन की विषयगत संरचना पर प्रकाश डाला.
उन्होंने बताया कि सम्मेलन ने 120 से अधिक शोध-सार संकलित किए, जिसमें दो अंतर्राष्ट्रीय प्रविष्टियाँ भी शामिल हैं. चयन प्रक्रिया के बाद 82 शोधपत्र तीन तकनीकी सत्रों में प्रस्तुत किये जाएंगे. प्रत्येक सत्र में दो अकादमिक पर्यवेक्षक और एक अध्यक्ष होंगे, और चुने गए शोध-पत्रों को संपादित संस्करण में प्रकाशित करने की योजना है.
सम्मेलन का मुख्य भाषण प्रो. ख्वाजा मोहम्मद इकरामुद्दीन (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली) ने दिया, जिसमें उन्होंने उर्दू शायरी की परंपरा एवं नवीनता के बीच के अंतरसंबंध को स्पष्ट किया. उन्होंने दिखाया कि कैसे सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलाव उर्दू कविता के स्वरूपों को प्रभावित करते रहे हैं — एक ऐसा मोहक विश्लेषण जिसने श्रोताओं को गहराई तक प्रभावित किया.
इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में उज्बेकिस्तान के ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रो. मुहय्यो अब्दुर अखमोनोव ने भी ऑनलाइन अपने विचार साझा किए. उन्होंने उर्दू शायरी की वैश्विक अपील पर विचार रखते हुए कहा कि यह भाषा-सेवा और सांस्कृतिक संचार का एक शक्तिशाली माध्यम बन चुकी है, जिसने विभिन्न भौगोलिक एवं सांस्कृतिक सीमाओं को पार किया है.
उद्घाटन समारोह का समापन डॉ. उल्फत के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिन्होंने सभी अतिथियों, वक्ताओं, आयोजन समिति के सदस्यों, तकनीकी टीम और सहायक कर्मचारियों को हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने विशेष रूप से प्रबंधन के सहयोग और आयोजन की सफलता के लिए उनकी सराहना की.
इस प्रकार, उद्घाटन सत्र ने दो दिवसीय सम्मेलन की एक प्रेरक शुरुआत की — एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म जिसने उर्दू शायरी की विरासत और समकालीन आवश्यकताओं को एक नई दिशा में देखना संभव बनाया. युवा प्रतिभागियों और विद्वानों के बीच रस—बद्ध चर्चा और अकादमिक आदान-प्रदान की उम्मीद से, यह आयोजन सांस्कृतिक साक्षरता और साहित्यिक समृद्धि के एक नए अध्याय की ओर अग्रसर प्रतीत होता है.